सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तो क्या भोलेनाथ ने मुजरा सुना?

23 मार्च को शाम साढ़े सात बजे न्यूज़ २४ पर एक खबर दिखाई जा रही थी...खबर के शीर्षक को देख मन में एक अजीब सी बेचैनी हुयी.... खबर मेरे अपने शहर बनारस से जुडी थी लिहाजा नज़र जाना लाज़मी था...मुझे उम्मीद भी थी कि आज कल के खबरिया चैनल इस खबर को अपने तरह से ही उठाएंगे....चलिए पहले आप को खबर का शीर्षक बता देता हूँ....खबर का शीर्षक था 'शमशान पर मुजरा'........टीआरपी के नज़रिए से यह स्लग अच्छा था.....किसी भी आम आदमी को आकर्षित करने के लिए लिखा गया यह शीर्षक अपने मकसद में कामयाब ही काग रहा था...लेकिन इसके साथ एक खटकने वाली बात भी थी.....दरअसल खबर का शीर्षक खबर के साथ इन्साफ नहीं कर raha था....न्यूज़ वैल्यु और सरोकार भी कम ही था...दरअसल यह खबर काशी के महाश्मशान पर वर्ष में एक बार होने वाले नगर वधुओं के नृत्य से जुडी थी.....काशी के महाशमशान पर साल में एक बार एक ऐसा आयोजन होता है जिसके तर्क को समझ पाना अक्सर नयी पीढ़ी के लिए मुश्किल होता है.....काशी के मशम्शान पर साल के एक दिन सामाजिक रूप से बहिष्कृत मानी जाने वाली नगर वधुएँ नृत्य करती हैं.....महाशमशान पर बने शिव मंदिर में पूजन अ

मैं आज भी खुद कि तलाश में रहा

मैं आज भी खुद कि तलाश में रहा मेरा अक्श कभी किसी टहनी से टूटी मुरझाई पत्ती तो कभी किसी खिलखिलाते पलाश में रहा ले गए वोह मेरा नाम, मेरा सामान मुझसे जुडी हर चीज़ कि शुरुआत हर अंजाम पर मैं पास मेरे एहसास में रहा ना जाने कितने मंदिरों, कितनी मस्जिदों में कच्चे धागे बाँध डाले अब जाना कि मेरा खुदा हर बार मेरे पास में रहा इल्ज़ाम मत देना कि मैं नहीं आया एक धूप का गुजरना इस साए के साथ में रहा .....