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सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शुक्रिया शशि जी, आपने याद दिलाया हम युवा हैं

एक सुबह जीमेल और ऑरकुट पर लोगिन करते ही फ्रेंड लिस्ट में जुड़े उदय गुप्ता जी ने मुझसे मेरा फ़ोन नंबर पूछा, मैंने दे दिया. इसके थोड़ी देर बाद मुझे लखनऊ से एक फ़ोन आया. इस फ़ोन पर मुझसे कहा गया कि आपके पास थोड़ी देर में देहरादून से फ़ोन आएगा. इतनी देर में मेरे मन में कौतूहल आ चुका था. दो लगभग अनजान फ़ोन और तीसरे का इंतज़ार. हालाँकि ये इंतज़ार लम्बा नहीं चल सका और जल्द ही एक फ़ोन और आया. फ़ोन पर शशि भूषण मैथानी जी थे देहरादून से. कुछ देर कि बातचीत के बाद मुझे पता चल गया कि शशि कि मुझसे उम्र में बड़े और अनुभव में सम्पन्न हैं. शशि जी के हाथ मेरा एक लेख लगा था. शशि जी उसे अपनी पत्रिका' यूथ आईकॉन' में प्रकाशित करना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने कई माध्यमों से होते हुए मेरा फ़ोन नंबर प्राप्त किया था. शशि जी युवाओं को ध्यान में रखकर एक पत्रिका का प्रकाशन करते हैं लिहाजा सोच भी युवा थी. मन में कुछ करने की ख्वाहिश और अन्याय के प्रति बागी तेवर. शशि जी के साथ मेरी बातचीत बहुत लम्बी नहीं थी लेकिन इस अल्प अवधि की बातचीत के दौरान मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैं आज भी युवा हूँ. किसी मुद्दे प
O! Childhood, Sometimes beginning the day with a whisper, sometimes with a cry Sometimes gaping in the void, at times beginning it with an innocent invite The sudden trance that it takes me into away from the colossal clutches of the trite Dragging away, disconnected, liberating to the elementary momentary amnesia Cruising to the myopic state of bionic reflections jaded by the hyperemia The ephemeral circumvention of the moment drawn away from the empirical hysteria To the cerebral existence of the self-efficacious creation, to that fleeting vision There comes a time, When debates become primordial, when the need of solutions become unreal O! Childhood, Why don't you stay forever transcending me to the realms of that fading Ideal from my friend santosh

बारात में बसिऔरा

मैं ये दावा तो नहीं करता कि इस शीर्षक को पढ़ने वालों की बड़ी तादात शायद इस शीर्षक का मतलब ना समझ पाए लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि एक आदमी तो कम से कम होगा ही जिसे शायद इसका अर्थ समझने में कुछ परेशानी हो तो साहब बारात का मतलब आप जानते ही होंगे(नहीं जानते तो डूब मरिये कहीं, आजकल नालों में भी इतना पानी है कि काम हो जायेगा) और जहाँ तक बात बसिऔरा कि है तो जब घर मैं खाना बच जाता है तो उसे बासी कहते हैं और जब बारात या किसी अन्य बड़े आयोजन में बचा खाना फिर से परोसा जाता है तो उसे बसिऔरा कहते हैं.....अब समझ गए होंगे आप(नहीं समझे तो......) वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक मीडिया की भी हालत कुछ ऐसी ही हो गयी है..पूरी बारात है लेकिन परोसा जा रह है वही बासी भोजन. दूरदर्शन का एक अपना ज़माना था. सधी हुयी भाषा में किसइ सरकारी प्रेस विज्ञप्ति की तरह ख़बरें पढ़ दी जाती थी. धीरे धीरे परिदृश्य बदलने लगा और निजी क्षेत्र में मीडिया का पदार्पण हुआ. बुद्धू बक्सा समझदार होने लगा. अब टीवी पर ऐसी ख़बरें बोलने और दिखने लगी जिनके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया था. एदुम से लगा कि इस देश में गरीबों और दलितों का न