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सितंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐ समय

कहो तो  ऐ समय तुम क्यों हुए इतने अधीर तुम तो क्षण क्षण देखते हो ना परकोटे से भविष्य को मैं भी तो देख रहा हूं लिए तुम्हारी दृष्टि संजय तो नहीं हां यह कोई महाभारत भी तो नहीं फिर भी जीवन के कुरुक्षेत्र में मैं चक्रव्यूह में घिरा हूं अठ्ठाहस न करो विकल वेदना का उपहास न करो गर्भस्थ ज्ञान नहीं तो क्या अभिमन्यु सा द्वार तो खुलते और बंद होते रहते हैं मोह और मोक्ष से परे होते हैं उर की विह्वलता मार्ग प्रशस्त करती है युद्ध की व्याकुलता ही जीत का हर्ष करती है जीवन व्योम का तल नहीं है स्पंदनों का धरातल नहीं है आलम्ब है अविलम्ब है तुम पर आवृत है तुम से ही निवृत है वंदन और वरण की चाह में कब कहां कोई अश्रु छलका स्पर्श हुआ तो होगा तुमको भी बोलो अलका अभिसिंचित मन का संकल्प पढ़ लो हे समय अधीरता छोड़ दो मेरी दृष्टि का भविष्य तुम गढ़ लो।

हम लाचार साबित हो जाएंगे

एक बार अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ था। इसके बाद पिछले दस सालों में एक बार भी वहां कोई हमला नहीं हुआ जबकि अमेरिका खुले आम आतंकियों के खिलाफ जंग लड़ रहा है। ब्रिटेन में भी एक बार कई साल पहले हमला हुआ था। वहां भी इसके बाद आतंकी हमले की कोई घटना नहीं सुनाई दी। भारत में महज तीन महीनों के भीतर एक ही स्थान पर आतंकी दो बार हमला कर चुके हैं। वह भी देश की राजधानी दिल्ली में। पहले आतंकी हमले का नमूना पेश करते हैं और उसके बाद हमला करते हैं। साफ है कि हमने साबित कर दिया है कि हम आतंकियों के सामने लाचार हैं। संकीर्ण सोच वाली राजनीति हमें एक ऐसे देश का दर्जा दिला रही है जहां आम नागरिक स्वयं को सुरक्षित नहीं महसूस करता है। पूरा विश्व समुदाय अब यह मान चुका है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का दावा पिलपिला है। आतंक पर लगाम लगाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।  देश की सरकार के पास ऐसे कई मंत्री हैं जो किसी भी आतंकवादी हमले के बाद राजनीतिक चाशनी में डुबोया हुआ बयान दे सकते हैं। इनका पूरा फायदा भी उठाया जाता है। नेताओं के बयान आते हैं और घटना स्थल पर उनके दौरे होते हैं लेकिन इन सबके बीच आम नागरिक

अफ़सोस हम लाचार हैं, हम भारतीय जो हैं

आतंकवाद के खिलाफ भारत की जंग अब दिशाहीन हो चली है। पाकिस्तान को हर बार दोषी ठहरा कर अपनी गरदन बचा लेने का नतीजा है कि देश के अलग अलग हिस्सों में पिछले 10 सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकवादी हमले हुए हैं और इनमें 1000 से अधिक लोगों की मौत हुईं हैं। देश का कोई कोना ऐसा नहीं बचा है जहां आतंकवादियों ने अपनी दहशत न फैलायी हो। दिल्ली से लेकर बंगलुरू तक, आसाम से लेकर अहमदाबाद तक दहशतगर्दों ने आतंक फैला रखा है। इन आतंकियों के आगे देश का नागरिक लाचार है। वह जानता है कि उसकी जान खतरे में है।  सुरक्षा एजेंसियों की एक बड़ी फौज है देश के पास लेकिन इनका काम त्यौहारों पर एलर्ट जारी करने से अधिक कुछ भी नहीं रह गया है। यह बात सुनने में अच्छी भले ही न लगे लेकिन देश की आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन एजेंसियों पर है वो आम नागरिकों का विश्वास खो चुकी हैं। धमाके दर धमाके होते रहते हैं और सुरक्षा एजेंसियों को भनक तब तक नहीं लगती जब तक किसी न्यूज चैनल पर विस्फोट की खबर न चलने लगे। सवाल पैदा होता है कि क्या भ्रष्टाचार का घुन इन एजेंसियों को भी लग चुका है। क्या इन एजेंसियों के अफसरों ने मान लिया

रोजाना बुनता हूँ एक ख़्वाब नया

रोजाना बुनता हूँ एक ख़्वाब नया  रख देता हूँ उसे  तुम्हारी आँखों में तुम सो जाते हो देखता हूँ तुम्हे  या शायद अपने ख्वाबों को  आँखे खोलती हो तुम  अंगडाई लेते हुए फिर मुस्कुराती हो  नज़र भर के देखती हो मुझे सिर हिला देती हो हौले से  मानो कुछ पूछ रही हो  मैं क्या जवाब दूं बस मुस्कुरा भर देता हूँ एक ख़्वाब पूरा हो गया.