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कश्मीर को ज्यादा ज़रुरत है अन्ना की

पिछले दिनों कश्मीर के मुद्दे पर प्रशांत भूषण के बयान से अन्ना का किनारा कसना इस बात की ताकीद करता है कि अन्ना हजारे कश्मीर के बारे में उसी तरह से सोचते हैं जिस तरह से सरहद पर अपने मुल्क की सलामती के लिए खड़ा एक सिपाही सोचता है। यही वजह रही होगी कि प्रशांत भूषण पर हमले के कुछ देर बाद जब पत्रकारों ने अन्ना से इस संबंध में प्रतिक्रिया लेनी चाही तो वह चुप लगा गये। साफ है कि आदर्श बुद्धिजीविता का वह स्तर जहां कश्मीर को भारत से अलग कर देने की सलाह दी जाती है अन्ना वहां नहीं पहुंचे हैं। अन्ना हजारे अब भी एक सैनिक की तरह सोचते हैं जो कश्मीर को कभी इस देश से अलग रख कर नहीं सोच सकता। अन्ना हजारे का मौन व्रत भी इस बारे में उठने वाले सवालों से बच निकलने का एक जरिया हो सकता है। अन्ना हजारे देश से भ्रष्टाचार खत्म करने की कोशिश में लगे हुये हैं और उनका एक सहयोगी भ्रष्टाचार से परेशान प्रदेशों को ही खत्म कर देना चाहता है। कश्मीर समस्या से जुड़े कई पहलुओं में एक भ्रष्टाचार का पहलू भी है। केंद्र सरकार ने अपनी प्राथमिकता की सूची में कश्मीर को सबसे उपर रखा है। देश के वार्षिक बजट का एक बड़ा हिस्सा कश्म

तन का बढ़ना ठीक, मन का बढ़ना नही

दिल्ली में प्रशांत भूषण पर हुआ हमला निंदनीय है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन हमले के पीछे की वजहों को भी तलाशना बेहद जरूरी है। आखिर क्या वजह रही होगी कि इंदर वर्मा को ऐसा दुःसाहस करना पड़ा। क्या टीम अन्ना को लगने लगा है कि अब वो जो चाहेगी वो करवा सकती है ? क्या टीम आत्ममुग्धता की स्थिती में आ चुकी है ?   कोर्ट में किसी वकील को उसी के चैंबर में घुस का मारना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन इंदर वर्मा और उसके साथियों की नाराजगी इस कदर रही होगी कि उन्हें इस बात का भी डर नहीं रहा कि प्रशांत भूषण पर हमला करने के बाद उनके साथ क्या होगा। साफ है कि टीम अन्ना के व्यवहार से देश का एक वर्ग दुखी है। उसे लगने लगा है कि टीम अन्ना का मन बढ़ गया है। हालांकि टीम अन्ना ने हमेशा से इस बात का हवाला दिया है पूरा देश उनके साथ खड़ा है। अगर ऐसा है तो इंदर कहां रह गया था। इंदर इस देश में नया तो नहीं आया है। इंदर का गुस्सा शब्दों में बयां नहीं हो सकता था। ऐसा इंदर को लगा होगा। तभी तो उसने यह रास्ता चुना। अन्ना और उनकी टीम देश में व्याप्त प्रशासनिक भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहती है। देश के लोग भी यही चाहते हैं

वो आवाज जो हर पल साथ रहती है

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे आप ताजिंदगी नहीं मिलते हैं लेकिन वो लोग आपकी रोजाना की जिंदगी का हिस्सा होते हैं। जगजीत सिंह भी ऐसे ही थे। किसी नाजुक सी शायरी को जब वो अपने सुरीले गले से गाते थे तो लफ्ज मानों जिंदा हो उठते थे। आपकी जिंदगी में किसी बेजान से शब्द का कोई खास मोल नहीं होता लेकिन जब शब्द जगजीत सिंह के गले से निकल रहे हों तो एक-एक लाइन आपको जिंदगी का सच बताने लगती है। गजलें आमतौर पर इश्क का फलसफां बताती हैं। दिल कच्चा होता है और जब मोहब्बत की मझधार में उतरता है तो जगजीत सिंह की गजलें हर उतार-चढ़ाव में आपके साथ खड़ी नजर आती हैं। प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है, नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है। यह लाइनें किसी ऐसे जोड़े के लिए बेहद मायने रखती हैं जिसने प्यार की दुनिया में पहला कदम रखा हो। जगजीत सिंह की गाई यह गजल आज भी जेहन में इतनी खलिस के साथ कौंधती है मानों कल ही सुनी हो। जगजीत सिंह की गजलों में किसी तेज झरने के करीब खड़े होने पर मिलनी वाली ताजगी का एहसास होता है। कुछ सालों पहले उन्होंने गाया था- इश्क कीजिए फिर समझिये। इन लाइनों को समझने के लिए आपके दिल मे