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रहें होंगे पत्रकार कभी नारद लेकिन अब शकुनि हो गए हैं

जरूरी नहीं है कि जिसकी उम्र और अनुभव अधिक हो जाए वो अपने बाल्यकाल की तुलना में अधिक पूजनीय हो जाए। भारतीय पत्रकारिता के साथ भी कमोबेश यही स्थिती है। 30 मई 1826 में कोलकाता के कालू टोला मोहल्ले में पंडित जुगल किशोर ने जब उदन्त मार्तण्ड शुरु किया तो उन्हें नहीं पता रहा होगा कि 188 साल बाद उनका अखबार मीडिया की शक्ल ले लेगा। सामाजिक विमर्श से आगे बढ़कर कॉपरेट कल्चर में बदल जाएगा। खबरें पेड होंगी। सत्ता के समीप और जनता से दूरी बढ़ती जाएगी। प्रेस कॉउंसिल ऑफ इंडिया भले कहे कि अखबारों में विज्ञापन का अनुपात खबरों से कम होना चाहिए लेकिन कौन कहा माने। टीवी चैनल वाले तो उदंत मार्तण्ड की जयंती को पुण्यतिथि में ही बदल देंगे। दरबार और दरबारी काल की मूल प्रेरणा से लबालब चैनल वाले सिर्फ वही गाएंगे और बजाएंगे तो उनके आका को पंसद होगा। लाइजनिंग के लिए बकायदा पूरी एक टीम रखी जाएगी और कॉरपोरेट लॉबी और सरकारी गलियारों के बीच संबंधों की कड़ी बनाई जाएगी। इसके बदले मोटी रकम वसूली जाएगी। राजनीतिक पार्टियों की सैंद्धांतिक विचार विमर्श के आधार पर आलोचना की पंरपरा को त्याग कर पैकेज के आधा

सुनो प्रदीप, अब तुम मार्क्स की सोच नहीं, पूंजीवाद के वाहक हो

ये शीर्षक न सिर्फ एक प्रदीप के लिए है बल्कि उन जैसे और मुझ जैसे तमाम प्रदीपों के लिए हैं जो ये सोचते हैं कि पत्रकार बन कर समाज को एक नई दिशा देंगे। अपनी बात लेकर आगे बढ़ूं इससे पहले आपको बता दूं कि आखिर ये प्रदीप हैं कौन। सामान्य कद, गोरा रंग, गोल चेहरा, गालों पर चिपकी ढाढ़ी, सदरी और जींस। इसके साथ ही आजकल मोटे फ्रेम का चश्मा आंखों पर है। ये हुलिया हम तमाम पत्रकारों को अपना सा लगता है। शायद हम ऐसा ही होना चाहते हैं। मन की बेचैनी आंखों के साथ साथ हाव भाव में भी झलक ही जाती है। दरअसल प्रदीप एक पत्रकार बनने की कोशिश में लगे हैं। प्रदीप को उनके सहयोगी कामरेड कहते हैं। प्रदीप को इस लेखन का आधार बनाने के पीछे एक नहीं कई वजहें हैं। प्रदीप युवा हैं, बेचैन हैं, जागरुक हैं। जैसे हम कभी हुआ करते थे। आठ साल के सफर में कई विशेषताएं दब सी गईं हैं। प्रदीप फिलहाल एक अखबार के नए संस्करण के साथ आगे बढ़ रहे हैं। जैसे कभी हम बढ़े थे। पत्रकारिता को मिशन मान कर प्रोफेशन के तौर पर अपनाया और फिर देखा कि अब सब कुछ कमीशन बेसिस पर हो गया है। हम जिस अखबार के साथ बढ़े, वो अखबार आगे बढ़ गया है और हम पीछे रह गए। प