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विकल्प देते देते प्रधानमंत्री विकल्प क्यों तालाश रहे हैं

विकल्प देते देते प्रधानमंत्री विकल्प क्यों तालाश रहे हैं Posted: 10 Nov 2009 10:45 PM PST नक्सलियों के हिमायतियों ने भी ग्रामीण-आदिवासियों के विकास का कोई वैकल्पिक समाधान नहीं दिया है। यह बात और किसी ने नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कही है। दिल्ली में आदिवासियों के मसले पर जुटे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को विकास और कल्याण का पाठ पढ़ाते हुये पहली बार प्रधानमंत्री फिसले और माओवादियों के खिलाफ आखिरी लड़ाई का फरमान सुनाने वाले वित्त मंत्री की बनायी लीक छोड़ते हुये उन्होंने आदिवासियों के सवाल पर सरकार को घेरने वाले और माओवादियो के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का विरोध करने वालों पर निशाना साधते हुये कहा कि आदिवासियों के लिये वैकल्पिक अर्थव्यवस्था या सामाजिक लीक किस तरह की होनी चाहिये इसे भी तो कोई सुझाये। जाहिर है, इस वक्तव्य को आसानी से पचाना मुश्किल है क्योंकि आदिवासियो के लेकर बीते साठ वर्षों में हर सरकार दावा करती रही है कि उसकी समझ आदिवासियो को लेकर ना सिर्फ संवेदनशील है बल्कि जो नीतियां वह बना रही है, उससे आदिवासी मुख्यधारा से जुड़ जायेंगे । नेहरु का पहला प्रया

राखी सावंत और भारतीय महिला

अभी हाल ही में भारतीय टीवी जगत के एक अजीबो गरीब शो ख़त्म हुआ है....इस शो का क्या कांसेप्ट क्या था, क्यों था मुझे कुछ समझ नहीं आया.मैन यह नहीं कहता की आपको भी नहीं आया होगा.... दरअसल मै बात कर रहा हूँ राखी के स्वयंवर की.अब यह स्वयंवर हो चुका है राखी सावंत ने अपना दूल्हा चुन लिया है......लेकिन अभी शादी नहीं करेंगी...बाद में करेंगी या नहीं पता नहीं...लेकिन इस तरह से एक मीडिया पुत्री की शादी का ड्रामा देखकर हैरानी हुयी....मुझे लगता है की यह ड्रामा पूरी तरह से खुद को औरों की नज़रों में लाने के लिए किया गया...चाहें वोह चैनल रहा हो या फिर राखी सावंत...हैरानी है की राखी को जिस दिन अपना दूल्हा चुनना था उस दिन चैनल की टी आर पी सबसे अधिक रही..चैनल का तो काम हियो गया...पूरे प्रोग्राम के दौरान भी राखी ऐसी उलजुलूल हरकतें करती रहीं जिसके चलते राखी और चैनल दोनों जनता की नज़रों में बने रहे....कुछ लोग इस तरह के प्रोग्राम्स को नारी सशक्तिकरण से जोड़ कर भी देख रहें हैं....उनका मानना है की राखी एक खुले विचारों वाली लड़की हैं...और वोह अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने में यकीन रखती हैं....और उन्होंने अगर अपना स

कर्नाटक में पूजा, मुंबई में बारिश

आजकल पूरे देश में बारिश के लिए यज्ञ और हवन का दौर चल रहा है......पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक और आन्ध्र में बहुत बड़े स्टार पर पूजा पाठ हो रहें हैं....ताकि भगवान खुश हो और बारिश हो...लेकिन बारिश हो कहाँ रही है मुंबई में...वोह भी इतनी की लोगों का जीना मुहाल हो जा रहा है.....अब इसे आप क्या कहेंगे? भगवान से मांग कोई रहा है भगवान दे किसी को रहा है.....वोह भी इतना की रखने की जगह ही नहीं मिल रही है यानि छप्पर फाड़ के.....अब डेल्ही हाई कोर्ट के फैसले को ही ले लीजिये...मैं कोर्ट का पूरा सम्मान कर रहा हूँ उसके निर्णय को सिर चूका कर मान रहा हूँ...लेकिन फिर भी देखिये न अधिकार चाहिए किसे और मिला किसे......अब भला समलैंगिक, वैधानिक मान्यता पाकर क्या नया करेंगे.... बलात्कार कानून में बदलाव की गुंजाईश है..पर मामला ठंडे बस्ते में है....माँगा किसने मिला किसे...बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई में लगने वाली देरी और तमाम परेशानियाँ कब ख़तम होंगी कौन जाने? यहाँ तो पूरा इंडिया को समलैंगिकों को कानूनी मान्यता मिलने पर यूं खुश दिखाया जा रहा है मनो हर नागरिक वही है.....बालीवुड की ख़ुशी तो बेहद अजीब है....नाचो इंडि

उम्र का क्या दोष

क्यों हवाला देते हो उम्र का उम्र का क्या दोष आखिर इसे भी तो बचपन पसंद है यह मजबूरी इसकी भी तो है यह खुद को बढ़ने से रोक नहीं सकती हर वक़्त हर पल यह बढ़ रही है इसमें क्या गलती है इसकी हाँ तुम चाहो तो खुद को अपनी उम्र से अलग कर लो फिर तुम्हे बूढे होने का डर नहीं होगा लेकिन रुको जरा यह भी तो सोचो इसी उम्र ने ही तो तुम्हे सुख दिया है बचपन का फिर कैसे अलग करोगे रहने दो इस उम्र को अपने साथ शायद फिर बचपन लौट आये....... आशीष तिवारी

ज्ञानमती का हौसला

यूँ तो ज़िन्दगी हर कदम एक नई ज़ंग होती है... लेकिन इस ज़ंग को जीत पाने का हौसला कम ही लोगों में होता है..वोह भी तब जब ज़िन्दगी कि ज़ंग को लड़ने वाला कोई महिला हो.... उससे उसके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया हो और वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो... हाँ ठीक पढ़ा आपने वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो....यह दांस्ता है बनारस के ज्ञानमती की.... ज्ञानमति युवा हैं...उच्च शिक्षा प्राप्त है...ज्ञानमती ने एमएस सी किया उसके बाद एम बी ए भी कर चुकी हैं....देखने में ज्ञानमती कहीं से भी किसी आम लड़की से अलग नही लगती हैं...लेकिन हमारा सभ्य समाज इन्हे अलग मानता है... जानते हैं क्यों क्योंकि ज्ञानमती को एड्स है .... ज्ञानमती को एड्स कैसे हुआ यह एक दर्दभरी कहानी है..दरअसल ज्ञानमती को सिजोफेर्निया कि बीमारी हो गई थी.... ..इसी बीमारी में ज्ञानमती के साथ हुयी एक दुर्घटना ने ज्ञानमती को एच आई वी पोजिटिव बना दिया...(पत्रकारिता के धर्मं को मानते हुए में ज्ञानमती के साथ हुए अपने समस्त वार्तालाप को यहाँ नही लिख सकता हूँ) जब बिमारी के इलाज के दौरान ज्ञानमती को यह पता चला कि वोह एच आई वी पोजिटिव हो गई हैं तो उनके ऊपर मानो पहाड़ ट

इंसानियत की इबादतगाह

आज आपको एक ऐसी इबादतगाह के बारे मैं बताता हूँ जहाँ दरअसल इंसानियत की पूजा होती है....यह इबादतगाह है हमेशा से अपनी गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाने जाये वाले शहर बनारस में है....बनारस के चौक इलाके की एक तंग गली...इसी गली में है यह इबादतगाह....मैं बात कर रहा हूँ अनार वाली मस्जिद का.....इसको अनार वाली वाली मस्जिद कहने के पीछे कारण है इस मस्जिद में लगा अनार का पेड़....इसी पेड़ के चलते इस मस्जिद का नाम अनार वाली मस्जिद पड़ गया......यह एक छोटी सी मस्जिद है.....एक तरफ नमाज़ अदा करने के लिए एक छूता सा कमरा बना है तो वहीँ दूसरी ओर चार दरवेश को जगह मिली हुई है.......एक छोटा सा ही आँगन जहाँ किनारे में लगा अनार का पेड़ पूरी मस्जिद को अपने साये तले लिए हुए है.....इस मस्जिद के साथ जुडी हुई एक ख़ास बात यह है की इस पूरी मस्जिद की देखभाल एक हिन्दू के हाथ में है....लम्बी दाढी और लम्बे लम्बे बाल वाले बेचन बाबा....यही नाम है उस शख्स का जो इस मस्जिद की देखरेख करता है....बेचन बाबा यहाँ झाडू लगाने से लेकर नमाज़ अदा करने तक की हर जिम्मेदारी को उठातें हैं.......बेचन बाबा इस काम को पिछली चार पीढियों से कर रहें

बाल संसद

आज आपको एक ऐसी संसद के बारे में बता हूँ जिसके बारे में आपने कभी नही सुना होगा....बात कर रहा हूँ दुनिया की पहली और एकलौती बाल संसद के बारे में....यह बाल संसद वाराणसी में है...इसके निर्माण में एक एन. जी.ओ. विशाल भारत संस्थान की मुख्य भूमिका है ...साथ ही वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश दुबे और अजय सिंह ने भी इस बाल संसद की अवधारणा को ज़मीन पर उतारने में प्रमुख रोल अदा किया है.... वाराणसी की यह बाल संसद पूरी तरह से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को पर आधारित है...इस बाल संसद में ६ से १३ साल का कोई भी बच्चा सम्मिलित हो सकता है...इस संसद की सभा में वाराणसी क्षेत्र से तीन विधयक और एक सांसद चुना जाता है....बाल संसद का प्रतिनिधत्व करने वालों को एक आचार संहिता को मानना पड़ता है..जैसे उसकी उम्र ६ से १३ साल के बीच हो..वोह अपने घर और क्षेत्र में ब्लैक लिस्टेड नही होना चाहिए...इसी तरह के कुछ और नियम है जिन्हें मनने वाला ही इस बाल संसद में सांसद या विधायक के लिए अपनी दावेदारी कर सकता है...जब इस संसद का चुनाव होता है तो लोकतान्त्रिक प्रणाली का पूरा ध्यान रखा जाता है....बच्चे अपने वोट से अपने विधायक और सां

सवाल है जवाब नही

आज मन बहुत परेशान है.....बार बार पुण्य प्रसून बाजपाई का एक इंटरव्यू जेहन में आ रहा है...यह इंटरव्यू उन्होंने हालाँकि लगभग एक साल पहले एक वेब मैगजीन को दिया था.....लेकिन उसकी याद आज भी मुझे एकदम ताज़ा है...दरअसल उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था की आज के पत्रकारों को शीशे के ऑफिस में बैठकर दुनिया देखने की आदत है....उन्हें अच्छी सैलरी चाहिए लेकिन पत्रकारिता नही करनी है.....मैं अभी नेशनल मीडिया में नया हूँ..हालाँकि जिस मीडिया में मैं हूँ वोह भी अभी इस देश के लिए पुराणी नही कही जा सकती है....जाहिर है बात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हो रही है....मैंने एस पी सिंह को बहुत नही जाना लेकिन पुण्य प्रसून बाजपाई को थोड़ा बहुत देख रहा होऊँ...भी एस पी सिंह के सहयोगी रहें हैं....सो इन्ही से कुछ पुरानी होती इस नई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखने के प्रयास कर रहा हूँ.....खैर बात दूसरी ओरे ले चलता हूँ....मुझे नेशनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जितना भी अनुभव हुआ उसमे मुझे अच्छे कम बुरे अनुभव अधिक मिले...इससे मेरा सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर वाराणसी में अपना पहला एक्सपेरिएंस लिया...जिस चैनल में थ

गंगा में रेत के टीले

देव नदी गंगा को लेकर मेरी चिंता बढती जा रही है.कम से कम बनारस की जो स्तिथि मैं देख रहा हूँ वोह इस गंगा की दुर्दशा को साफ़ बयां करता है-लेकिन अफ़सोस की बात है की इस तरफ़ जितना ध्यान होना चाहिए उतना है नही.....गंगा में रेत के टीले निकल आयें हैं...गंगा की छाती पर निकले यह बड़े बड़े टीले गंगा को मिले घाव की तरह हैं......दरअसल गंगा के प्रवाह से हुए छेड़छाड़ और अत्यधिक पानी निकाले जाने से गंगा की यह दुर्दशा हो है....बात बनारस की ही ले ली जाए तो गंगा की हालत समझ में आ जायेगी....गंगा बनारस में जैसे ही प्रवेश कर रही है वहां पर गंगा मुडती है....यहाँ गंगा का प्रवाह बिना किसी बाधा के होना चाहिए था लेकिन यहाँ बना दिए गएँ पुल हैं...एक पुल तो बन चुका है और दूसरा अभी निर्माणाधीन है..इन दो पुलों के कारन गंगा का प्रवाह बाधित हो रहा है..नतीजा गंगा में आने वाला बालू यहाँ पर आकर इकट्ठा होता जा रहा है...बालू यह टीले अब बेहद बड़ा आकर ले चुके हैं..इन टीलों ने गंगा की धारा को दो भागों में बाँट दिया है.....अपने पुराने घाटों से गंगा लगातार दूर होती जा रही है....अब बनारस के बेहद महत्वपूर्ण और प्रशिध घाट को ही ले