मुझे यह तो नहीं पता कि मै यह क्यों लिख रहा हूँ...लेकिन मन कर रहा है सो लिख रहा हूँ....हाल ही में एक फिल्म देखी.. थ्री इडियट ...बहुत सुना था इस फिल्म के बारे में....या यह कहूँ कि इस फिल्म के बारे में सुनाया बहुत गया था....तीन घंटे कि इस फिल्म में ऐसा एक बार भी महसूस नहीं हुआ कि जो सुना था वही देख रहा हूँ......दरअसल एक साधारण सी कहानी को कोई बहुत ख़ास तरीके के बिना भी फिल्माए बगैर बेच दिया गया था.....इस फिल्म को देखने का मुझे जब मौका मिला तो फिल्म को रिलीज़ हुए दो हफ्ते हो चुके थे.....लेकिन इसके बाद भी मल्टीप्लेक्स में इसे देख पाना मेरे लिए संभव नहीं था...कारण था बॉक्स ऑफिस के बाहर लगी लम्बी लाइन....लिहाजा मैं एक सिंगल स्क्रीन सिनेमा में पहुंचा...भीड़ तो वहां भी बहुत थी....भीड़ देख के मुझे लगा कि मैंने देर कर दी.....मन में ख्याल आया कि फिल्म को देखने के बाद यही सोचूंगा कि ओह इतनी बढ़िया फिल्म को देखने में इतनी देर क्यों लगायी.....लेकिन दोस्तों सच मानिये फिल्म को देखने के बाद मेरे मन में एक भी ऐसा ख्याल नहीं आया...यह ज़रूर समझ गया कि इडियट बन गया हूँ...... एक साधारण सी कहानी...साधारण सा कथ
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर