आतंकवाद के खिलाफ भारत की जंग अब दिशाहीन हो चली है। पाकिस्तान को हर बार दोषी ठहरा कर अपनी गरदन बचा लेने का नतीजा है कि देश के अलग अलग हिस्सों में पिछले 10 सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकवादी हमले हुए हैं और इनमें 1000 से अधिक लोगों की मौत हुईं हैं। देश का कोई कोना ऐसा नहीं बचा है जहां आतंकवादियों ने अपनी दहशत न फैलायी हो। दिल्ली से लेकर बंगलुरू तक, आसाम से लेकर अहमदाबाद तक दहशतगर्दों ने आतंक फैला रखा है। इन आतंकियों के आगे देश का नागरिक लाचार है। वह जानता है कि उसकी जान खतरे में है। सुरक्षा एजेंसियों की एक बड़ी फौज है देश के पास लेकिन इनका काम त्यौहारों पर एलर्ट जारी करने से अधिक कुछ भी नहीं रह गया है। यह बात सुनने में अच्छी भले ही न लगे लेकिन देश की आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन एजेंसियों पर है वो आम नागरिकों का विश्वास खो चुकी हैं। धमाके दर धमाके होते रहते हैं और सुरक्षा एजेंसियों को भनक तब तक नहीं लगती जब तक किसी न्यूज चैनल पर विस्फोट की खबर न चलने लगे। सवाल पैदा होता है कि क्या भ्रष्टाचार का घुन इन एजेंसियों को भी लग चुका है। क्या इन एजेंसियों के अफसरों ने मान लिया
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर