tag:blogger.com,1999:blog-8568599894492168269.post1190031501647558668..comments2024-01-13T13:55:13.011+05:30Comments on Agnivaarta: Unknownnoreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8568599894492168269.post-24281555523569485102011-08-23T02:24:29.430+05:302011-08-23T02:24:29.430+05:3015 अगस्त और 26 जनवरी के उत्सवों में अब आम जनता की ...15 अगस्त और 26 जनवरी के उत्सवों में अब आम जनता की रुचि लगभग समाप्त सी हो गयी है। अब यह उत्सव मनाने का ‘काम’ स्कूलों और फ़ौजियों-पुलिसवालों को सौंप दिया गया है। उनके लिए भी यह ‘उत्सव’ न होकर ‘काम’ हो गया है। शेष बचे कर्मचारियों के लिए ये दिन छुट्टी के दिन के रूप में अधिक महत्त्व रखते हैं। एक-दो दिन आगे पीछे की दूसरी छुट्टियां जुड़ जायें, तो मजे ही मजे। मजे की इस महफिल में ‘राज’ में जमे नेता और अफसर अलग ढंग से भाग लेते हैं। उनके लिए यह अपना ‘रुतबा’ दिखाने का वक्त होता है। दिल्ली से लेकर ज़िलों तक, गाँवों तक झण्डे फहराते ‘राज’ में भागीदार लोग दिखाई दे जाते हैं। उनकी उपलब्धियों के आंकड़े देश-विदेश में आजकल खूब चर्चा में है। ये आंकड़े विदेशी बैंकों में जमा धन के रूप में सामने आ रहे हैं। इन सबसे ऊब चुकी जनता ने भ्रष्टाचार को हर स्तर पर स्वीकार कर लिया है तथा सरकारी उत्सवों से मुंह मोड़ लिया है। स्वशासन का, गणतंत्र का, अपने जनपद का भाव ही नहीं है। क्या आपको यह भाव आया कि यह स्कूल, यह थाना, यह तहसील, यह कलेक्ट्रेट, यह सचिवालय, यह नेता , अधिकारी, कर्मचारी आपके अपने हैं। जैसा भाव आपके अपने मकान के प्रति है, वह अस्पताल भवन के बारे में क्यों नहीं है? तभी तो हम अस्पताल के एक कोने में थूक लेते हैं। घर में तो नहीं थूकते हैं। तभी तो नेताओं व अधिकारियों के हवाई जहाजों में घूमने पर हम आपत्ति नहीं करते हैं। हमको लगता है कि हमारा क्या, सरकार का पैसा खराब हो रहा है। तभी तो हमको देश के, प्रदेश के बजट में कोई रुचि नहीं है। योजनाओं में कोई रुचि नहीं है। हम तो 64 वर्षों के बाद भी इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि खजाने की लूट में हमको हिस्सा कितना मिल सकता है। हिस्सा नहीं मिल रहा है, तो हम परेशान हैं। यही तो है हमारी असली परेशानी। कभी तो लगता है कि जनता उस बिगड़ैल बच्चे की तरह है जो घर के पैसे को अपनी मौज पर खर्च करने को तुला हुआ है। उसे क्या फर्क पड़ता है कि घर में पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है? <br />राष्ट्रप्रेम किसी भी राष्ट्र की पहली आवश्यकता है। और वह संस्कार तथा स्वशासन से ही पनप सकता है। और इसके लिए जागृति की अभी भी उतनी ही आवश्यकता है, जितनी 1947 में थी। स्वशासन का भाव जगेगा, तो आम जनता का व्यवहार बदल कर रहेगा। जिम्मेदारी का अहसास बढ़ेगा। वोट देने का कारण समझ आयेगा। वोट सही भी पड़ेगा, क्योंकि अब इससे हमारा ‘नोट’ भी जुड़ गया है जो हर प्रकार के कर के रूप में हम दे रहे हैं। अभी तक जो हम ‘अमूल्य’ वोट देते आ रहे हैं, वह वाकई में अमूल्य है! उसका कोई मूल्य नहीं है! न हम उसका मूल्य समझते हैं और न हमारे नेता। लेकिन जनजागरण के बाद उसका मूल्य भी समझ में आ जायेगा। <br />और शासन में बैठे लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कई मित्र निराशाजनक बात कह सकते हैं। अजी, उन पर कहाँ असर होगा। यह प्रवृत्ति सही नहीं है। मानकर चलिए कि जब आपके अंदर बैठा ‘स्वामी’ जगेगा, तो स्वामित्व का प्रभाव सब तरफ पड़ने लगेगा। इस प्रभाव के प्रकाश में चोरियां बंद हो जायेगी। फिर आपको अनशन के चक्कर में भी पड़ने में शर्म आयेगी! आप अपनी कार के ड्राइवर के सामने अनशन करेंगे, तो मूर्खता नहीं लगेगी? कार आपकी, ड्राइवर आपने रखा है और कहते हो कि वे आपको गाड़ी में नहीं बैठा रहा है। आप अपने परिवार के साथ पैदल चल रहे हैं! और ड्राइवर मजे कर रहा है। नहीं। यह सब अब नहीं। हमारी इस बड़ी कार ‘सरकार’ के ड्राइवरों के सामने कोई बाबा या अन्ना अनशन नहीं करेंगे। हमारी आंखों में जागरण की चमक ही समाधान के लिए काफी है।सुभाष झाझड़ियाhttp://www.abhinavrajasthan.org/noreply@blogger.com