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बस बीत गया साल......

पूरा एक साल बीत गया....क्या नया पाया यह तो नहीं बता सकता लेकिन हाँ इतना ज़रूर है कि खोया बहुत कुछ...भले खोने वाली चीज़ों कि संख्या कम हो लेकिन दर्द बहुत है...और जो चीजें पाई उनकी तुलना में यह अधिक मायने रखती है.....यही ज़िन्दगी है इसे देखना हो तो नज़रिया सड़क पर चलते लोगों को गिनने के नजरिये से अलग रखना पड़ता है.....खैर छोडिये ....देश के सबसे पहले भोजपुरी न्यूज़ चैनल हमार टीवी में काम करते हुए एक साल से अधिक हो गएँ हैं....जिस भाषा को रोज बोलता था.... सुनता था उसे खबर के नजरिये से देख रहा हूँ....रोज़ कुछ नया सिखा...लेकिन ना जाने क्यों साल के अंत में लगता है कि साल बस यू ही गुज़र गया......डे प्लान, फ़ील्ड रिपोर्ट, लाइव, एंकर यही रहा.....अपने लिए सोचने क मानो वक़्त ही नहीं मिला....सुबह सात बजे से लेकर रात कि दस बजे तक बस बाईट और पैकज में समय गुज़र गया और इस सब के बाद भी यही दर मन में रहा कि कहीं मंदी के दौर में मिली नौकरी चली ना जाये......इस बात क भी गिला कम ही रहा कि आप जिन लोगों से काम और योग्यता में कम नहीं हैं लेकिन सेलेरी में कम हैं.....यही एक नौकरी पेशा आदमी कि आदर्श ज़िन्दगी है.....

“थ्री ईडियट्स” में आमिर खान है कहाँ?

जीनियस जीनियस होता है... उसके जरिये या उसमें अदाकारी का पुट खोजना बेवकूफी होती है। शायद इसीलिये थ्री ईडियट्स आमिर खान के होते हुये भी आमिर खान की फिल्म नहीं है। थ्री ईडियट्स पूरी तरह राजू हिराणी की फिल्म है। वही राजू जिन्होने मुन्नाभाई एमबीबीएम के जरीये पारंपरिक मेडिकल शिक्षा के अमानवीयपन पर बेहद सरलता से अंगुली उठायी। यही सरलता वह थ्री ईडियट्स में इंजीनियरिंग की शिक्षा के मशीनीकरण को लेकर बताते हुये प्रयोग-दर-प्रयोग समझाते जाते हैं। राजू हिराणी नागपुर के हैं और नागपुर शहर में नागपुर के दर्शको के बीच बैठ कर फिल्म देखते वक्त इसका एहसास भी होता है कि थ्री ईडियट्स में चाहे रेंचो की भूमिका में आमिर खान जिनियस हैं, लेकिन सिल्वर स्क्रिन के पर्दे के पीछे किसी कैनवस पर अपने ब्रश से पेंटिंग की तरह हर चरित्र को उकेरते राजू हिराणी ही असल जिनियस हैं। यह नजरिया दिल्ली या मुबंई में नहीं आ सकता। नागपुर के वर्डी क्षेत्र में सिनेमा हाल सिनेमैक्स में फिल्म रिलिज के दूसरे दिन रात के आखरी शो में पहली कतार में बैठकर थ्री इडियट्स देखने के दौरान पहली बार महसूस किया कि आमिर खान का जादू या उनका प्रचार चाहे दर्

आडवाणी युग के बाद की भाजपा

नागपुर में पहली बार सीमेंट की सड़क 1995 में बनी तो रिक्शे वालों ने आंदोलन छेड़ दिया । रिक्शे वालों का कहना था कि नागपुर में जितनी गर्मी पड़ती है उससे सीमेंट की सड़क में टायर चलते नहीं हैं। लेकिन कार वाले खुश हो गये कि अब गड्ढ़े में हिचकोले नहीं खाने होंगे। बरसात में अंदाज रहेगा कि सड़क अपनी है, परायी हुई नहीं है। आखिरकार रिक्शे वाले आंदोलन कर थक गये तो फिर पुराने नागपुर में संघ मुख्यालय के बाहर सीमेंट की सड़क बनाने की तैयारी शुरु हो गयी, जहां ज्यादा रिक्शे ही चलते हैं। इस बार आंदोलन हुआ नहीं। और फिर सीमेंट की सड़क बनाने का सिलसिला समूचे महाराष्ट्र में शुरु हुआ। सीमेंट की यह सड़क और कोई नहीं बल्कि भाजपा के अध्यक्ष पद को संभालने जा रहे नीतिन गडकरी ही बनवा रहे थे, जो उस वक्त महाराष्ट्र के पीडब्ल्‍यूडी मंत्री थे। कुछ इसी तरह की सड़क भाजपा के भीतर संघ बनवाना चाहता है और उसका विरोध दिल्ली की आडवाणी चौकड़ी करेगी, लेकिन भविष्य में कहा जायेगा कि नागपुर के गडकरी तब भाजपा अध्यक्ष थे। और उनके पीछे नागपुर के ही सरसंघचालक भागवत का हाथ था। असल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गडकरी के जरिये जो राजनीतिक प्

"20 साल पहले राजीव गांधी का अपहरण करना चाहते थे नक्सली और 20 साल बाद मनमोहन सिंह के अपहरण की जरुरत नहीं समझते माओवादी

ठीक बीस साल पहले 1989 नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप के महासचिव सीतारमैय्या से जब यह सवाल किया गया था कि अगर आपको मौका लगेगा तो क्या आप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का भी आपहरण कर लेंगे । जवाब मिला था कि जरुरत पड़ी और परिस्थितियां अनुकूल हुईं तो जरुर करना चाहेंगे। यह सवाल 1987 में आंध्रप्रदेश के सात विधायकों के अपहरण के बाद पूछा गया था । और बीस साल बाद जब बंगाल के एक पुलिसकर्मी का अपहरण कर उसपर पीओडब्ल्यू यानी प्रिजनर ऑफ वार लिखकर रिहा किया गया...तो अपहरण करने वाले सीपीआई माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य किशनजी उर्फ कोटेश्वर राव से मैंने यही सवाल पूछा कि अगर आपको मौका लगेगा तो क्या आप प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अपहरण कर लेंगे। जवाब मिला बिलकुल नहीं। इसकी जरुरत है नहीं और परिस्थितियां ऐसी हैं कि प्रधानमंत्री की नीतियों से ही हमारा सीधा टकराव देखा जाने लगा है तो जनता खुद तय करेगी, हमें पहल करने की जरुरत नही है। बीस साल के दौर में राजनीतिक तौर पर नक्सलियों में कितना बड़ा परिवर्तन आया है, यह जवाब उसका बिंब भर है। लेकिन इन बीस वर्षो में राजनीतिक तौर पर नक्सली कितना बदले है और उनकी राजनीत

विकल्प देते देते प्रधानमंत्री विकल्प क्यों तालाश रहे हैं

विकल्प देते देते प्रधानमंत्री विकल्प क्यों तालाश रहे हैं Posted: 10 Nov 2009 10:45 PM PST नक्सलियों के हिमायतियों ने भी ग्रामीण-आदिवासियों के विकास का कोई वैकल्पिक समाधान नहीं दिया है। यह बात और किसी ने नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कही है। दिल्ली में आदिवासियों के मसले पर जुटे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को विकास और कल्याण का पाठ पढ़ाते हुये पहली बार प्रधानमंत्री फिसले और माओवादियों के खिलाफ आखिरी लड़ाई का फरमान सुनाने वाले वित्त मंत्री की बनायी लीक छोड़ते हुये उन्होंने आदिवासियों के सवाल पर सरकार को घेरने वाले और माओवादियो के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का विरोध करने वालों पर निशाना साधते हुये कहा कि आदिवासियों के लिये वैकल्पिक अर्थव्यवस्था या सामाजिक लीक किस तरह की होनी चाहिये इसे भी तो कोई सुझाये। जाहिर है, इस वक्तव्य को आसानी से पचाना मुश्किल है क्योंकि आदिवासियो के लेकर बीते साठ वर्षों में हर सरकार दावा करती रही है कि उसकी समझ आदिवासियो को लेकर ना सिर्फ संवेदनशील है बल्कि जो नीतियां वह बना रही है, उससे आदिवासी मुख्यधारा से जुड़ जायेंगे । नेहरु का पहला प्रया

राखी सावंत और भारतीय महिला

अभी हाल ही में भारतीय टीवी जगत के एक अजीबो गरीब शो ख़त्म हुआ है....इस शो का क्या कांसेप्ट क्या था, क्यों था मुझे कुछ समझ नहीं आया.मैन यह नहीं कहता की आपको भी नहीं आया होगा.... दरअसल मै बात कर रहा हूँ राखी के स्वयंवर की.अब यह स्वयंवर हो चुका है राखी सावंत ने अपना दूल्हा चुन लिया है......लेकिन अभी शादी नहीं करेंगी...बाद में करेंगी या नहीं पता नहीं...लेकिन इस तरह से एक मीडिया पुत्री की शादी का ड्रामा देखकर हैरानी हुयी....मुझे लगता है की यह ड्रामा पूरी तरह से खुद को औरों की नज़रों में लाने के लिए किया गया...चाहें वोह चैनल रहा हो या फिर राखी सावंत...हैरानी है की राखी को जिस दिन अपना दूल्हा चुनना था उस दिन चैनल की टी आर पी सबसे अधिक रही..चैनल का तो काम हियो गया...पूरे प्रोग्राम के दौरान भी राखी ऐसी उलजुलूल हरकतें करती रहीं जिसके चलते राखी और चैनल दोनों जनता की नज़रों में बने रहे....कुछ लोग इस तरह के प्रोग्राम्स को नारी सशक्तिकरण से जोड़ कर भी देख रहें हैं....उनका मानना है की राखी एक खुले विचारों वाली लड़की हैं...और वोह अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने में यकीन रखती हैं....और उन्होंने अगर अपना स

कर्नाटक में पूजा, मुंबई में बारिश

आजकल पूरे देश में बारिश के लिए यज्ञ और हवन का दौर चल रहा है......पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक और आन्ध्र में बहुत बड़े स्टार पर पूजा पाठ हो रहें हैं....ताकि भगवान खुश हो और बारिश हो...लेकिन बारिश हो कहाँ रही है मुंबई में...वोह भी इतनी की लोगों का जीना मुहाल हो जा रहा है.....अब इसे आप क्या कहेंगे? भगवान से मांग कोई रहा है भगवान दे किसी को रहा है.....वोह भी इतना की रखने की जगह ही नहीं मिल रही है यानि छप्पर फाड़ के.....अब डेल्ही हाई कोर्ट के फैसले को ही ले लीजिये...मैं कोर्ट का पूरा सम्मान कर रहा हूँ उसके निर्णय को सिर चूका कर मान रहा हूँ...लेकिन फिर भी देखिये न अधिकार चाहिए किसे और मिला किसे......अब भला समलैंगिक, वैधानिक मान्यता पाकर क्या नया करेंगे.... बलात्कार कानून में बदलाव की गुंजाईश है..पर मामला ठंडे बस्ते में है....माँगा किसने मिला किसे...बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई में लगने वाली देरी और तमाम परेशानियाँ कब ख़तम होंगी कौन जाने? यहाँ तो पूरा इंडिया को समलैंगिकों को कानूनी मान्यता मिलने पर यूं खुश दिखाया जा रहा है मनो हर नागरिक वही है.....बालीवुड की ख़ुशी तो बेहद अजीब है....नाचो इंडि

उम्र का क्या दोष

क्यों हवाला देते हो उम्र का उम्र का क्या दोष आखिर इसे भी तो बचपन पसंद है यह मजबूरी इसकी भी तो है यह खुद को बढ़ने से रोक नहीं सकती हर वक़्त हर पल यह बढ़ रही है इसमें क्या गलती है इसकी हाँ तुम चाहो तो खुद को अपनी उम्र से अलग कर लो फिर तुम्हे बूढे होने का डर नहीं होगा लेकिन रुको जरा यह भी तो सोचो इसी उम्र ने ही तो तुम्हे सुख दिया है बचपन का फिर कैसे अलग करोगे रहने दो इस उम्र को अपने साथ शायद फिर बचपन लौट आये....... आशीष तिवारी

ज्ञानमती का हौसला

यूँ तो ज़िन्दगी हर कदम एक नई ज़ंग होती है... लेकिन इस ज़ंग को जीत पाने का हौसला कम ही लोगों में होता है..वोह भी तब जब ज़िन्दगी कि ज़ंग को लड़ने वाला कोई महिला हो.... उससे उसके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया हो और वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो... हाँ ठीक पढ़ा आपने वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो....यह दांस्ता है बनारस के ज्ञानमती की.... ज्ञानमति युवा हैं...उच्च शिक्षा प्राप्त है...ज्ञानमती ने एमएस सी किया उसके बाद एम बी ए भी कर चुकी हैं....देखने में ज्ञानमती कहीं से भी किसी आम लड़की से अलग नही लगती हैं...लेकिन हमारा सभ्य समाज इन्हे अलग मानता है... जानते हैं क्यों क्योंकि ज्ञानमती को एड्स है .... ज्ञानमती को एड्स कैसे हुआ यह एक दर्दभरी कहानी है..दरअसल ज्ञानमती को सिजोफेर्निया कि बीमारी हो गई थी.... ..इसी बीमारी में ज्ञानमती के साथ हुयी एक दुर्घटना ने ज्ञानमती को एच आई वी पोजिटिव बना दिया...(पत्रकारिता के धर्मं को मानते हुए में ज्ञानमती के साथ हुए अपने समस्त वार्तालाप को यहाँ नही लिख सकता हूँ) जब बिमारी के इलाज के दौरान ज्ञानमती को यह पता चला कि वोह एच आई वी पोजिटिव हो गई हैं तो उनके ऊपर मानो पहाड़ ट