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तो क्या भोलेनाथ ने मुजरा सुना?

23 मार्च को शाम साढ़े सात बजे न्यूज़ २४ पर एक खबर दिखाई जा रही थी...खबर के शीर्षक को देख मन में एक अजीब सी बेचैनी हुयी.... खबर मेरे अपने शहर बनारस से जुडी थी लिहाजा नज़र जाना लाज़मी था...मुझे उम्मीद भी थी कि आज कल के खबरिया चैनल इस खबर को अपने तरह से ही उठाएंगे....चलिए पहले आप को खबर का शीर्षक बता देता हूँ....खबर का शीर्षक था 'शमशान पर मुजरा'........टीआरपी के नज़रिए से यह स्लग अच्छा था.....किसी भी आम आदमी को आकर्षित करने के लिए लिखा गया यह शीर्षक अपने मकसद में कामयाब ही काग रहा था...लेकिन इसके साथ एक खटकने वाली बात भी थी.....दरअसल खबर का शीर्षक खबर के साथ इन्साफ नहीं कर raha था....न्यूज़ वैल्यु और सरोकार भी कम ही था...दरअसल यह खबर काशी के महाश्मशान पर वर्ष में एक बार होने वाले नगर वधुओं के नृत्य से जुडी थी.....काशी के महाशमशान पर साल में एक बार एक ऐसा आयोजन होता है जिसके तर्क को समझ पाना अक्सर नयी पीढ़ी के लिए मुश्किल होता है.....काशी के मशम्शान पर साल के एक दिन सामाजिक रूप से बहिष्कृत मानी जाने वाली नगर वधुएँ नृत्य करती हैं.....महाशमशान पर बने शिव मंदिर में पूजन अ

मैं आज भी खुद कि तलाश में रहा

मैं आज भी खुद कि तलाश में रहा मेरा अक्श कभी किसी टहनी से टूटी मुरझाई पत्ती तो कभी किसी खिलखिलाते पलाश में रहा ले गए वोह मेरा नाम, मेरा सामान मुझसे जुडी हर चीज़ कि शुरुआत हर अंजाम पर मैं पास मेरे एहसास में रहा ना जाने कितने मंदिरों, कितनी मस्जिदों में कच्चे धागे बाँध डाले अब जाना कि मेरा खुदा हर बार मेरे पास में रहा इल्ज़ाम मत देना कि मैं नहीं आया एक धूप का गुजरना इस साए के साथ में रहा .....

होली तो बाज़ार मांगती है

फाल्गुन के बारे में जितना कहा जाये उतना कम ही होता है ...... अभी तक न जाने कितने कवियों ने अपनी लेखनी को इस फल्गुम के मौसम के नाम कर दिया है ...... फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का जो त्यौहार मनाया जाता है वोह अब महज रंग लगाने का एक दिन रह गया है .... होली पर अब होलियार्रों की टोली गली मोह्हलों में नहीं दिखती है ...... घर के बड़े बूढ़े नुक्कड़ पर होलियाना अंदाज़ में नहीं दिखाई देते ..... होरी गाने की तो परंपरा भी मानो ख़त्म सी हो गयी है ..... होली ना सिर्फ एक त्योहार है बल्कि एक उत्सव है ..... मनुष्य जीवन में उल्लास के क्षणों को भरने का एक जरिया है ...... स्वंतंत्र और स्वछंद होने के बीच के महीन से अंतर को बताने का माध्यम भी है होली .... पहले कि होली तो अपनों का प्यार मांगती थी .... बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और दुलार मांगती थी लेकिन आज कि होली तो बाज़ार मांगती है .... आज होली कि ख़ुशी तो बाज़ार में मिलती है ... गुझिया , पापड़ , चिप्प्स स

ज़रुरत भूतवाद कि है

यह एक अजीब नज़ारा था....यह वही शहर है जिसे लोग आधुनिक इतिहास के लिहाज से सबसे पुराना जीवंत शहर कहतें हैं... वही शहर जो कई मायने में बेहद खूबसूरत है.....कहतें हैं शिव के त्रिशूल पर बसा है.....यहीं माँ गंगा उलटी बहती है....यही एक ऐसा शमशान है जहाँ कभी भी चितायों कि आग नहीं बुझती लिहाजा इसे महाशमशान भी कहतें हैं.....बहुत कुछ जो इस शहर को और शहरों से अलग बना देता है...अलग इस लिहाज से नहीं कि यहाँ रहने वालो लोग कुछ अलग हैं बल्कि इस शहर कि पूरी कि पूरी आबो हवा ही अजीब है...मेरी एक मित्र हैं जो देहरादून मेंएक प्रोडक्शन हाउस में प्रोग्राम डारेक्टर हैं..उन्होंने कहा कि बनारस घूमने आना चाहती हैं....मैंने पूछा कि क्या कोई ख़ास वजह है...उन्होंने कहा नहीं बस यूं ही ....ज्यादातर लोग आज बनारस को महज घूमने के नज़रिए से ही देखने आते हैं....यह एक अच्छा सन्देश नहीं है....बनारस को समझना होगा .....दरअसल तीर्थाटन और पर्यटन के अंतर को समझना होगा.....हाँ पहले आप को उस शुरूआती वाक्य पर लिए चलता हूँ जहाँ से बात शुरू कि थी....दरअसल मैं बनारस के एक बेहद पॉश मने जाने वाले इलाके सिगरा से गुजर रहा हूँ....यह

कुछ उधार के मौसम ले आयो..

कुछ उधार के मौसम ले आयो.. बहुत दिन हुए यहाँ कोई मौसम नहीं आया.... ना कभी जेठ कि दोपहर से बचने के लिए किसी नीम का सहारा लिया..... ना कभी बारिश में भीगने को मैदान में नंगे पाँव दौड़ा खुले आकाश से सीधे बदन पर पड़ती बूंदों क स्पर्श भूल सा गया हूँ.. ठिठुरती ठण्ड में आज भी आग के सामने बैठने क़ा मन करता है बहुत दिनों से एहसास नहीं किया उन हवायों को जिनके बीच हर दर्द दूर हो जाता है क्या वोह भी मुझे याद करती होंगी क्या बूंदों को भी अच्छा लगा होगा स्पर्श मेरा यह पूछना है मुझे उनसे जायो उधार ही सही लेकिन कोई मौसम ले आयो.........

बचपना छोड़ दीजिये.......

मैं जब यह पोस्ट टाइप कर रहा हूँ उस वक़्त सभी न्यूज़ चैनल्स पर पुणे में हुए आतंकवादी धमाकों के बारे में ख़बरें दिखाई जा रही हैं....महज कुछ देर पहले तक यह सभी चैनल्स प्यार के परिभाषा बता रहें थे...एक ऐसी बहस ka झंडा बुलंद किये हुए थे जिसका कोई राष्ट्रीय सरोकार नहीं था...एक चैनल तो अपने न्यूज़ रूम से ही प्यार प्यार खेल रहा था.....कितना अजीब देश है ना.....और कितनी अजीब मीडिया है यहाँ कि...प्यार प्यार का खेल पिछले कुछ सालों से इन न्यूज़ चैनल्स पर बदस्तूर जारी है.....स्पेशल प्रोग्राम बनाये जाते हैं ......पूरा दिन इसी पर खेलने कि कोशिश कि जाती है...मानो बहुत बड़ा पर्व आ गया हो.....उसकी कवरेज को लगभग सभी चैनल वाले बेहद बड़ी खबर के रूप में दिखातें हैं......शायद टी आर पी के चक्कर में.....शायद क्या यकीनन.....दरअसल प्यार वोह एहसास है जो हमेशा जवान रहता है....महबूब का साथ हो तो जवानी कब बचपने में बदल जाती है पता ही नहीं चलता.....किसी ने इसी मौके के लिए कहा है कि दिल तो बच्चा है जी ....सच ही कहा है हुज़ूर मान लीजिये....लेकिन पिछले कुछ सालों में इस बच्चे कि हालत बहुत ख़राब हो चली है.....इन मुएँ चैनल वा

समय भी पुरुष

सुना है समय हर जख्म भर देता है तुम्हे भी तो एक जख्म मिला था तुम सिसक के रोई थी आँखों में कुछ बूँदें ठहर कर पलकों से नीचें ढलक गयीं थी बेसुध सी तुम वक़्त का ख्याल भी नहीं रख पाई थी तुम्हारे दोनों हाथ खाली थे सिवाय हवा के उनमे कुछ कैद नहीं रह पाया था हर रिश्ता तो दूर ही था लोग कहते रहे वक़्त हर जख्म भर देगा पर क्या भर गया हर जख्म ? नहीं ना शायद समय भी पुरुष है ।

खेलना है तो खेलो

हमारे देश में कहा जाता है कि राष्ट्रीय खेल हाकी है...लेकिन ऐसा लगता नहीं है.....उम्र के इस पड़ाव पर हूँ कि अपने देश में किसी खेल को लेकर कोई प्रतिक्रिया दे सकूं...... मेरा यकीन करिए हाकी को हम सब जिस जगह लेकर आयें हैं वो वहीँ है....वहां से कहीं नहीं गयी....हम का मतलब है हम...सरकार नहीं...सरकार और हाकी इंडिया को दोष शायद हमलोगों को नहीं देना चाहिए....मुझे याद आता है कि जिंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं किया करती....लेकिन हमने तो हाकी को दशकों इंतज़ार करा दिया.....आखिर बेचारी हाकी यहाँ आ गयी तो इसमें दोष किसका.....अब आप ही सोचिये कि हममे में से कितने लोग अपने घर के बच्चों को हाकी कि स्टिक पकड़ने देते हैं.....हाँ बचपन में बैट और गेंद का गिफ्ट अपने घर के बच्चों को ज़रूर देते हैं...कुछ लोग तो यूं ही दे देते हैं कुछ यह सोच कर कि बड़ा होकर कहीं क्रिकेटर बन गया तो घर में पैसे ही पैसे होंगे......अब ऐसे में गरीब देश का अमीर खेल क्रिकेट आगे जायेगा कि हाकी.....हाकी इंडिया ने जब देश के खिलाडियों को खेलने के लिए पैसा ना देने कि बात कही तो साथ ही यह भी बोला कि खेलना है तो देश हित में खेलें...मैं थोड़ा

आईये जश्न मनाये इडियट होने का

मुझे यह तो नहीं पता कि मै यह क्यों लिख रहा हूँ...लेकिन मन कर रहा है सो लिख रहा हूँ....हाल ही में एक फिल्म देखी.. थ्री इडियट ...बहुत सुना था इस फिल्म के बारे में....या यह कहूँ कि इस फिल्म के बारे में सुनाया बहुत गया था....तीन घंटे कि इस फिल्म में ऐसा एक बार भी महसूस नहीं हुआ कि जो सुना था वही देख रहा हूँ......दरअसल एक साधारण सी कहानी को कोई बहुत ख़ास तरीके के बिना भी फिल्माए बगैर बेच दिया गया था.....इस फिल्म को देखने का मुझे जब मौका मिला तो फिल्म को रिलीज़ हुए दो हफ्ते हो चुके थे.....लेकिन इसके बाद भी मल्टीप्लेक्स में इसे देख पाना मेरे लिए संभव नहीं था...कारण था बॉक्स ऑफिस के बाहर लगी लम्बी लाइन....लिहाजा मैं एक सिंगल स्क्रीन सिनेमा में पहुंचा...भीड़ तो वहां भी बहुत थी....भीड़ देख के मुझे लगा कि मैंने देर कर दी.....मन में ख्याल आया कि फिल्म को देखने के बाद यही सोचूंगा कि ओह इतनी बढ़िया फिल्म को देखने में इतनी देर क्यों लगायी.....लेकिन दोस्तों सच मानिये फिल्म को देखने के बाद मेरे मन में एक भी ऐसा ख्याल नहीं आया...यह ज़रूर समझ गया कि इडियट बन गया हूँ...... एक साधारण सी कहानी...साधारण सा कथ

भोजपुरी एक पूरी संस्कृति है......

देश के पहले भोजपुरी न्यूज़ चैनल में काम करते हुए एक साल से अधिक का समय बीत चुका है....इस दौरान मैंने इस भाषा को बेहद करीब से देखने कि कोशिश भर कि है..साथ ही यह भी जान गया कि यह ना सिर्फ उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में प्रमुखता से बोली जाने वाली एक मीठी बोली है बल्कि इस भाषा के इर्द गिर्द एक पूरी संस्कृति ही लिपटी है.....ख़ास बात यह है कि इस चैनल में ना सिर्फ उत्तर प्रदेश कि भोजपुरी बल्कि बिहार और झारखण्ड कि मैथली, छोटा नागपुरी, अंगिका जैसी भाषायों को भी जगह दी जाती है....यह अपने आप में एक नया और मेरी समझ से अच्छा प्रयोग है..इस चैनल ने उत्तर प्रदेश, बिहार , झारखण्ड जैसे इलाकों के लोगों को उनकी ही भाषा में उनसे जुडी ख़बरें दिखायीं हैं....एक सबसे बड़ी बात जो शायद इन इलाके के लोगों को बेहद अच्छी लगेगी वोह है ख़बरों को प्रोफाइल के नजरिये से ना देखने कि आज़ादी....अक्सर ऐसा होता है कि हिंदी भाषी न्यूज़ चैनल्स पर इन इलाकों कि दास्ताँ बयां करने वाली ख़बरें प्रोफाइल के अभाव में गिर जाती हैं.....लेकिन हमार टीवी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड कि जमीं से जुडी ख़बरें दिखा रहा है.....गाँव गिराव कि ख़बरें