पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से मीडिया ने अपने पाँव पसारे हैं उससे साथ ही लोगों की मीडिया से उम्मीदें बढ़ी हैं ... अब मीडिया को ख़बरों को दिखाने के साथ कुछ और जिम्मेदारियों को भी उठाना होगा ... पिछले दिनों एक सवाल सामने आया कि क्या मीडिया भाषाई आन्दोलन खड़ा करने का माध्यम बन सकती है ? हालाँकि इस सवाल का जवाब ढूँढने से पहले हमें इस बात पर ज़रूर विमर्श कर लेना चाहिए कि आखिर भाषा है क्या ? क्या भाषा महज अपनी भावनाओ को व्यक्त करने का जरिया मात्र है ? प्रख्यात साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने अपने उपन्यास ' अपना मोर्चा ' में इस बारे में कुछ लाईने लिखी हैं उनका यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा ...' भाषा का अर्थ हिंदी या अंग्रेजी नहीं है ... भाषा का अर्थ है जीने कि पद्यती , जीने का ढंग ..... भाषा यानि जनतान्त्रिक अधिकारों कि भाषा , आज़ादी और सुखी जिंदगी के हक कि भाषा ... ..' यह पंक्तियाँ बताती हैं हैं कि किसी समाज के लिए भाषा का क्या महत्व है ...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर