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जून, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जनता करेगी फाइव फिंगर टेस्ट, तब देखेंगे केजरी बाबू...

मा निए या न मानिए लेकिन एहसास दिल्ली को हो रहा होगा कि अरंविद केजरीवाल को इतना बड़ा जनमत देना उनकी भूल थी। दिल्ली के विकास के लिए छटपटाने का दावा कर रहे अरविंद केजरीवाल का जितना ध्यान मनपसंद अफसरों की तैनाती करने, कांग्रेस की गलतियां गिनने और उपराज्यपाल से विवाद में है उसका आधा भी वो सही माएने में दिल्ली पर देते तो सूरत के बदल जाने का एहसास होने लगता। हैरानी होती है अरविंद केजरीवाल को देखकर। दिल्ली अपनी आने वाली पीढ़ियों को ये कैसे बता पाएगी कि उसके अरविंद केजरीवाल को चुनने की वजह क्या थी। सवाल ये भी उठेगा कि अरविंद केजरीवाल को बदलने से दिल्ली क्यों नहीं रोक पाई और इस प्रयोग से दिल्ली को मिला क्या। सरकार में आते ही अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पूरा ध्यान कांग्रेस सरकार की गलतियों तलाशनें में लगा दिया। हालात ये हैं कि अभी तक दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान होने वाले विकास कार्यों का खाका सार्वजनिक नहीं कर पाई है। अफसरों की तैनाती के विवाद इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की सरकार का ध्यान अपने मुताबिक अफसरों की तैनाती पर अधिक है। ह

कहानी मैगी से आगे भी है, जो अनसुनी है

मै गी पर देश भर में बैन लग जाने के बाद ये लग रहा है मानों पूरे देश में खाद्य पदार्थ पूरी तरह से सुरक्षित हो गए हैं लेकिन सच इससे परे है। इस देश में एक संस्था काम करती है जिसका नाम है, भारतीय खाद्य सरंक्षा एवं मानक प्राधिकरण। अंग्रेजी में इसे ही फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑफ इंडिया कहते हैं। संक्षेप में fssai । भारत सरकार के इस प्राधिकरण का काम देश भर में खाद्य पदार्थों के लिए मानक तय करना और ये सुनिश्चित करना है कि मानकों का पूरा अनुपालन हो। अब ये संस्था करती क्या है हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे बल्कि हम आपको ये बताना चाहते हैं कि ये संस्था जो कुछ भी करती है वो भी इस देश के काम नहीं आ रहा है। ऐसा नहीं है कि fssai ने देश में सिर्फ मैगी की ही जांच की है और उसे ही खाद्य मानकों के विपरीत पाया है। मैगी से अलावा भी इस देश में हजारों ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो मानकों पर खरे नहीं पाए गए हैं लेकिन दुर्भाग्य से उनपर कभी चर्चा नहीं हुई। ऐसा क्यों हुआ इस पर चर्चा करना जरूरी है लेकिन उससे पहले आपको ये बताते हैं कि देश में मिलावट का जाल कितना बड़ा हो चुका है। fssai के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। आंकड़

गंगा के लिए अब कोई भगिरथ नहीं...

कै सी विडंबना है कि इस देश की जिस जलधारा में करोड़ों सनातनियों की सहर्ष आस्था हो....जिसकी एक बूंद पर लौकिक जगत के भंवर से पार अलौकिक आनंद का मार्ग प्रशस्त करती हो....उसी जलधारा को भौतिक जगत में पैसों के जरिए साफ करने की दो दशकीय व्यवस्था के असफल होने के बाद एक बार फिर वैसी ही कोशिशें हो रहीं हैं.... गंगा में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने नमामि गंगे नाम से एक योजना शुरू की है...ऐसी कोशिशों की शुरुआत राजीव गांधी ने की थी और उसके बाद कई और प्रधानमंत्रियों ने इस कोशिश को कोशिश के तौर पर बरकरार रखा...भले ही आप जुमले के तौर पर ये मानते हों कि कोशिशें कभी बेकार नहीं जाती लेकिन यहां आपको कोशिशों के बेकार होने का पता चल जाता है....दरअसल 1984 में राजीव गांधी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गंगा एक्शन प्लान शुरू तो किया लेकिन बेहद अनप्लैन्ड रूप में...राजीव गांधी से लगायत मनमोहन सिंह तक गंगा को साफ करने की कोशिश ही करते रह गए और गंगा हर आज में बीते कल से कहीं अधिक गंदी होती रही...गंगा एक्शन प्लान के चरण एक और दो खत्म हो गया...गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिय