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केदारघाटी में अब उम्मीदें भी चीखने लगीं

इस मुल्क के रहनुमाओं से जितनी भी उम्मीदें थीं वह सब केदारघाटी के सैलाब में बह गईं। इंसानों की लाशों के बीच अब हमारी उम्मीदों की चीख भी सुनाई देने लगी है। इतना तो हमें पहले से पता था कि खद्दर पहनने वालों की सोच अब समाजिक उत्थान से बदलकर व्यक्तिगत उत्थान तक पहुंच गई है। लेकिन केदार घाटी में सैलाब के आने से लेकर अब जो कुछ भी सामने आ रहा है उससे लगता है कि इन रहनुमाओं को मौका मिले तो लाशों के अंगूठे पर स्याही लगाकर अपने नाम के आगे ठप्पा लगवा लेंगे। घिन आने लगी है अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नुमांइदो से।  ‘देश‘ की जनता पत्थरों के नीचे दब रही है और नेता अपने ‘राज्य‘ के लोगों को बचाने के लिए कुत्तों की तरह लड़ रहे हैं। देहरादून मंे सिस्टम के सड़ने की बू तो बहुत पहले से आ रही थी लेकिन हमारे सिस्टम में कीड़े पड़ चुके हैं यह केदारघाटी में आए सैलाब के बाद पता चला। उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आने के बाद एक-एक करके सियासी चोला ओढ़े कुकरमुत्ते देहरादून में पहुंचने लगे। उत्तराखंड में आपदा राहत के लिए भले ही इनके राज्यों ने हेलिकाप्टर न भेजे हों लेकिन चुनावी तैयारी को ध्यान में रखकर अपने अपने

पहले आपदा ने मारा, अब सिस्टम मार रहा।

यह सच है कि उत्तराखंड में जिस तरह से प्राकृतिक आपदा आई है उसके  आगे सभी आपदा राहत के काम बौने ही है। आपदा प्रबंधन मंत्रालय की सोच से भी कहीं भयावह है यह आपदा। इसमें भी किसी को दो राय नहीं होगी कि इस आपदा से निबटने का काम अकेले उत्तराखंड की सरकार नहीं कर सकती है। पूरे देश को इस घड़ी में साथ खड़ा होना पड़ेगा। लेकिन इसी सब के बीच एक बात साफ है कि जितनी मौतें आपदा से नहीं हुई उससे कहीं अधिक मौतें हमारे अव्यवहारिक सिस्टम से हो रही है। सरकारें संवेदनशून्य होती जा रही हैं और मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के पास आपदा प्रभावित लोगों के साथ वक्त बिताने का समय नहीं है। साफ है कि हमारा सिस्टम अगर ईमानदार कोशिश करता तो इस तबाही में मरने वालों का आंकड़ा बहुत कम होता।  उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जो प्राकृतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। उत्तराखंड को यूपी से अलग होकर अलग राज्य बने हुए लगभग 12 साल हो रहे हैं। इन बारह सालों में बनी सरकारों को सूबे का विकास करने के लिए एक ही माध्यम दिखा और वो है राज्य की लगभग 65 फीसदी क्षेत्र में फैली वन व अन्य प्राकृतिक संपदा। जमकर और बेहद अवैज्ञानिक तरीके से प्रदेश म