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बिना प्रोटोकॉल के जलती चिताएं और प्रोटोकॉल निभाने की सीख देता देश का चौकीदार

क्या होता है प्रोटोकॉल, जानते हैं आप? नहीं जानते न? बहुत सी लाशें हैं जो बिना प्रोटोकॉल के ही श्मशान तक पहुंच गईं। यूं तो लाशों की बात लिखनी तो सबसे अंत में चाहिए थी लेकिन नथुनों में भरी इंसानी लाशों की गंध आपको रुकने नहीं देती तो कलम अपने आप सबसे पहले यही पंक्ति लिख देती है। कलम को भी शायद प्रोटोकॉल नहीं आता।  आप जानते हैं लाशें कैसे जलाई जाती हैं? कभी किसी जलती चिता के पास खड़े होकर इंसानी लाश से उठती गंध को जाना है आपने? यही वो अंतिम एहसास होता है जो आपके अपने आपके साथ छोड़ जाते हैं। बिना किसी प्रोटोकॉल के। अच्छा आप इतना तो जानते ही होंगे कि लाशों का भी अपना सम्मान होता है। वही सम्मान जो हम उन्हें अनंत यात्रा पर विदा करने से पहले देते हैं। लेकिन आप ये भी जानते होंगे कि मौजूदा वक्त में वो सम्मान भी हम अपने अपनों को देना चाहते हैं उसमें भी ‘प्रोटोकॉल’ ही आड़े आता है।  अच्छा बताइए, आपका कोई अपना ऑक्सीजन की कमी से तड़प रहा हो, तिल तिल कर मरने की तरफ बढ़ रहा हो तो आप कौन सा प्रोटोकॉल फॉलो करते हैं। या फिर कौन सा प्रोटोकॉल फॉलो करना चाहिए? अपने परिजन को गोद में लिए धीरे धीरे...