महाराष्ट्र का माटुंगा रेलवे स्टेशन हाल में पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में दे दिया गया। ये देश का ऐसा पहला रेलवे स्टेशन है जिसकी सभी व्यवस्थाएं महिलाओं के हाथ में होंगी। स्टेशन में गाड़ियों के आने जाने के समय के एनाउंसमेंट्स से लेकर यात्रियों के टिकट चेक करने तक के सभी काम महिलाओं के ही जिम्मे हैं। स्टेशन का कंट्रोल रूम भी महिलाएं संभालती हैं। टिकट काटने का काम भी महिलाओं के ही जिम्मे है। ये एक सुखद एहसास है। जिस देश में बच्चियों को गर्भ में मारने की प्रवृत्ति भी समाज में व्याप्त हो उसी देश में जब ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं तो किसी को भी सुखद एहसास स्वाभाविक है। माटुंगा को दिमाग में जब हरियाणा का ख्याल आता है तो मानों दिल ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि यदि वहां गर्भ में मरने वाली बच्चियों को बचा लिया जाता तो शायद वो भी किसी 'माटुंगा' को संभाल रहीं होती। देश में महिला और पुरुषों में कई स्तरों में असंतुलन है। बच्चियों के साथ भेदभाव मां के गर्भ में ही शुरु हो जाता है। बच्चियों की स्कूलिंग का हाल भी देश में बुरा है। आंकड़े देने की आवश्यकता नहीं है। ये अब इतना गूढ़ विषय भी नह...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर