मोहल्ला अस्सी की शूटिंग के दौरान काशी नाथ सिंह के लिए आई ये अभिव्यक्ति बता रही है की फिल्म में अस्सी की आत्मा मरी नहीं है. कुछ ऐसे ही वाक्य का प्रयोग किया था उसने उन महानुभाव के लिए। वही जिन्होंने गालियों के प्रति एक ऐसा नजरिया पेश कर दिया कि अब गाली खाना सभी के लिए सम्मान का विषय हो गया। हालांकि उन्होंने कभी ये नहीं सोचा होगा कि कभी इस तरह से कोई उनका सम्मान करेगा। इससे पहले कि आप मुझे गरियाने के मूड में आ जाये मैं आपको बता ही देता हूं कि माजरा क्या है। दरअसल पूरा वाक्या बनारस के अस्सी घाट का है जहां डाक्टर चंद्र प्रकाष द्विवेदी अपनी फिल्म मोहल्ला अस्सी की शूटिंग कर रहे हैं। फिल्म की कहानी प्रख्यात हो चले साहित्यकार काशीनाथ सिंह की अनुपम रचना काषी का अस्सी पर आधारित है। शूटिंग के दौरान ही एक दिन मैं भी वहां पहुंचा। काशी नाथ सिंह जी भी वहीं मौजूद थे। उनके आस-पास कुछ लोग टहल रहे। कुछ ऐसे भी थे जो उनका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते थे। दुर्भाग्य से काशी नाथ सिंह ने उनकी ओर ध्यान दिये बिना ही पास खड़ी वैनिटी वैन की ओर कदम बढ़ा दिये। ये बात पास खड़े कुछ लोगों को नागवार गुजरी और उन्होंने बेहद...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर