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फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धूल चेहरे पर होती तो क्या करते?

देश के सबसे विशाल प्रदेश की सबसे ताकतवर महिला के जूते पर धूल जमी थी। ये देख मैडम के साथ चल रहे एक अफसर से रहा नहीं गया। उसने तुरंत रुमाल निकाली और मैडम की जूतियों को साफ कर दिया। ये देख विपक्ष से रहा नहीं गया, लगे हल्ला मचाने। शाम तक सरकार ने एक बिल्कुल सोलिड कारण पेश कर दिया। बताया गया कि जूतियों पर जो धूल जमी थी उससे मैडम की सुरक्षा को खतरा था। लिहाजा सुरक्षा में लगे अफसरों का फर्ज बनता है कि धूल साफ करें। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मैं भी तो यही कह रहा हूं। इसमें गलत कुछ भी नहीं है। अब भला देश के इतने बडे राज्य का कोई मुख्यमंत्री है। उसके जूते पर धूल लगी रहे और सुरक्षा में लगे अधिकारी देखते रहें। नहीं, बिलकुल नहीं। भले ही सूबे का मुखिया दलितों का सबसे बडा रहनुमां होने का दावा करता हो। सूबे में दलितों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं का जायजा लेने निकला हो। वो तो बस उड.न खटोले में बैठकर दूसरों पर धूल उड़ाता है। अपने जूते धूल में नहीं डालता। अगर गलती से जमीन पर पड.ी धूल ने उसकी जूती तक को छू लिया तो हमारे अफसर उसे कहीं का नहीं छोडगे। प्रदेश की धूल को समझ लेना चाहिए कि वो सिर्फ आम

न जाने वो क्या था.

न जाने वो क्या था. एक रेशमी एहसास था, एक ज़िम्मेदारी थी, एक ख़्वाब था, किसी कहानी कि शुरुआत थी, किसी दास्तान का आखिरी हिस्सा था, किसी बगीचे में खिले पहले गुलाब की महक थी, किसी पहाड़ से लिपटी कोई पवन थी, चांदनी रात में रात रानी का खिलना था, किसी लम्बी और सुनसान सड़क में किसी सड़क का आकर मिलना था, किसी रेगिस्तान में कोई घना पेड़ था, ठण्ड की सुबह में निकली सूरज की पहली किरण थी, दूर तक देख कर लौटी एक नज़र थी, ज़िन्दगी को हर हाल में जी लेने का हौसला था, हाथ कि हर लकीर से अपनी खुशी की इबारत लिखवा लेने का ज़ज्बा था, किसी अँधेरी रात को सुबह होने की उम्मीद थी, सागर में उड़ते किसी परिंदे को मिला कोई ठौर था, पुरानी डायरी के पन्नों पर यूं ही बनी तस्वीरों का कोई साकार रूप था, बादलों के बीच बना कोई मुकाम था, किसी से मन की बात कह पाने का साहस था, किसी के कंधो पर सिर रख बतियाने का अधिकार था, मन्दिर में भगवान के सामने हाथ जोड़े खड़े हुए तो मन में आई कोई तस्वीर थी, दूर तक बिखरी धूप में साथ चलता साया था, किसी नदी के किनारे पानी में पैर डाले मिला सुकून था, दिन भर ज़िन्दगी की ज़द्दोजहद के बाद शाम को घर लौ