सटीक तो नहीं पता है लेकिन शायद दुनिया में तीसरे या चौथे नंबर की अर्थवस्वस्था वाले देश का अर्धसत्य यही है कि यहां अस्पताल के बाहर बारह साल का एक बच्चा मर जाता है लेकिन उसे इलाज नहीं मिल पाता है। मुझे ये भी सटीक नहीं पता लेकिन शायद दुनिया में पांचवे या छठे नंबर पर अरबपतियों वाले देश में एक शख्स को अपनी पत्नी का शव अपने कांधे पर लादकर 13 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है और उसे एंबुलेंस नहीं मिल पाती। देश के स्क्रैमजेट इंजन की तकनीक विकसित कर लेने का एक पहलु ये भी है कि ट्रेन एक्सीडेंट में मरी एक वृद्धा का शव पोस्टमार्टम हाउस तक पहुंचाने के लिए उसकी लाश की हड्डियों को पहले तोड़ा जाता है और फिर गठरी बना कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है। यकीनी तौर पर देश में ये मुद्दे बहस के लिए पसंद ही नहीं किए जाते। हमारी संवेदनाएं ऐसे मुद्दों पर तब तक नहीं जागती जब तक ऐसी कोई घटना न हो जाए और वो टीवी पर न दिए जाए। ये बात दीगर है कि हम ऐसी हर बहस के बीच में इस बात को स्वीकार करते हैं कि ऐसी न जाने कितनी घटनाएं होती हैं और हमें पता नहीं चलता। देश में स्वास्थ सेवाओं के हाल बेहद खर...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर