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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हे भी तो प्रेम है

अक्सर तुम्हारे बिम्ब का आकार उतर आता है मुझमे निराकार साकार क्या है कुछ भी तो नहीं कह सकता हाँ यह ज़रूर है कि आकार तुम से ही है कभी व्योम का कोई सिरा तलाशते जब दूर निकाल जाता हूँ आक़र तुम्हारे इसी स्वरुप में सिमट जाता हूँ मैं जानता हूँ तुम स्वतंत्र हो पर बंधन भी तुम्हे प्रिय हैं अधिकार और स्वीकार भाव मेरे हैं यह अनुबंध भी तो मेरे हैं तुम तो हमेशा से मुक्त रहे हो रूई के फाहे पर चलने की कोशिश ओह देखो तो, क्या स्वप्न है नहीं आह्लाद से विपन्न है खिलखिलाकर हंस रहे हो ना तुम? हंसो और हंसो कभी कभी विपन्न के लिए भी हँसना चाहिए किसी स्वप्न के लिए भी हँसना चाहिए तभी अचानक रूई के फाहे बदल बन गए ओह नहीं वाह अब बारिश होने वाली है देखना प्रेम बरसेगा तुम भी आना रससिक्त हो जाना आखिर तुम्हे भी तो प्रेम है.

लाहौर पर ही तिरंगा फहरा दोगे क्या?

समझ में नहीं आता कि इस देश के लोगों को हो क्या गया है? आखिर वो करना क्या चाहते हैं? तिरंगा फहराना चाहते हैं. वो भी लाल चौक पर. हद ही तो है. भला ऐसा करने का हक उन्हें किसने दिया? केंद्र सरकार उन्हें रोकने की तैयारी में है तो कोई गलत नहीं है. सीआरपीएफ लगा कर सरकार उन्हें रोकने की तैयारी में है तो रोकने दो. मुझे इसमें कोई गलत बात नहीं नज़र आती. एक भारतीय होने का मतलब ये कतई नहीं है तुम श्रीनगर की लाल चौक पर जा कर तिरंगा फहरा दो. तुम अपनी गली में फहरा लो, बालकनी में फहरा लो. क्या कम जगहें हैं? लेकिन श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहर सकता, सुना तुमने. केंद्र सरकार अपने विज्ञापनों में कहती है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और अरुणाचल से गुजरात तक भारत एक है. अब कहने का क्या है? बहुत सी बातें कही जातीं हैं सब की सब सही ही होती है क्यां? यह सब तो कहने भर के लिए है. कश्मीर तो .....है किसी का, मुझे पता करने पड़ेगा. किसी पुरानी किताब में पढ़ा था कि कश्मीर भारत का है. अब पता नहीं ऐसा है या नहीं? हाँ, कन्याकुमारी तो खालिस अपना ही है अभी तक. जहाँ तक बात अरुणांचल कि है तो शायद यह भी भारत का ही

अब तो सपने में भी फुटकर दिखता है

बहुत लोगों को देखा साल के पहले दिन बनारस के संकट मोचन मंदिर के बाहर अपना सिर पटक रहे थे. ठण्ड से परेशान भगवान से चीख चीख कर कह रहे थे की आज साल का पहला दिन है. हम आपके दर्शन करने आयें हैं. हमारा पूरा साल अब आप के जिम्मे है. हम चाहे जो करे हमारा कुछ बिगड़ना नहीं चाहिए. कुछ बिगड़ा तो आप समझिएगा. उसके बाद मंदिर नहीं आयेंगे. भक्तो की प्रार्थना में भाव ऐसा की वो प्रार्थना कम और मांग ज्यादा लग रही थी. गोया भगवान को भगवान उन्होंने ही बनाया हो जैसा हर पांच साल में वोट देकर एक भगवान चुनते हैं. खैर भगवान को इन सब बातों की आदत हो चली है. लेकिन एक बात उन्हें परेशान कर गयी. संकट मोचन भगवान सोचने लगे कि आखिर यह साल नया कैसे हो गया. यह संवत बदला कब. कानो कान ख़बर तक नहीं हुयी. लेकिन अब इतने लोग बाहर जमा है तो सचमुच साल बदल ही गया होगा. फिर भी तसल्ली करने के भगवान ने अपने एक सेवक को बाहर भेजा कि पता लगा कर आयो कि माजरा क्या है. सेवक ने क्या बताया यह आपको उसके लौट कर आने के बाद पता चलेगा. तब तक आपको एक और दृश्य सुनाता हूँ. एक जनवरी को एक मित्र के घर एक काम से एक मिनट के लिए गया. उसके घर पहुंचा तो