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गौरी लंकेश को मार दिया गया, फिर बोधिसत्व की ये कविता क्या कह गई

गौरी लंकेश की हत्या के बाद बोधिसत्व की एक कविता  अपना   शुभ   लाभ   देख   कर   मैं   चुप   हूँ   गौरी   लंकेश एक   एक   कर   मारे   जा   रहे   हैं   लोग और   मैं   चुप   हूँ मैं   चुप   हूँ इसीलिए   किसी   भी खतरे   में   नहीं   मैं   गौरी   लंकेश  ? मैं   देख   नहीं   रहा   उधर लोग   मारे   जा   रहे   हैं   जिधर जिधर   जहाँ   आग   लगी   है जिधर   संताप   का   सुराज   है वह   दिशा   ओझल   है   मुझसे   । सुनों   गौरी   लंंकेश   । मैं   बोलूँगा   तो पद्मश्री   नहीं   मिलेगा   मुझे मैं   बोलूँगा   तो पुरस्कार   नहीं   मिलेगा   मुझे मैं   बोलूँगा   तो भारत   रत्न   नहीं   बन   पाऊँगा   । देखो   गौरी कितना सुखी   हूँ   और   सुरक्षित   हूँ   मैं   चुप   रह   कर कितना   उज्जवल   भविष्य   है   मेरा हर   दिशा   से   शुभ   और   लाभ   से   घिरा   हूँ   । और   कितना   बोलूँंगा हर   दिन   होगी   हत्या हत्यारे   कितने   कितने   हैं कितने   रूप   में अनूठे   और   सर्वव्यापी कण - कण   में   है   उनका   प्रभाव उत्तर   दक्षिण