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संत तोड़े बाँध, सिस्टम तोड़े आस्था

गंगा की निर्मलता को लेकर इस देश में आज तक जितना पैसा खर्च हुआ है उसमें शायद उत्तराखंड में लगभग दस बड़े बांध बनाए जा सकते थे। इन बांधों से न्यूनतम 100 मेगावाट की बिजली भी पैदा होती तो कुल 1000 मेगावाट की बिजली इस प्रदेश को मिलती। इतनी बिजली के उत्पादन से उर्जा के क्षेत्र में उत्तराखंड को काफी हद तक निर्भरता मिल जाती। इसके बाद न सिर्फ हरिद्वार में बल्कि उत्तराखंड के कई और क्षेत्रों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को चलाने के लिए पर्याप्त बिजली मिल जाती और गंगा को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। इससे पहाड़ के लोगों को रोजगार भी मिलता और पलायन पर रोक भी लगती। यही नहीं सिंचाई और पेयजल की समस्या से भी बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती थी। जरा एक नजर डालते हैं गंगा एक्शन प्लान के दो चरणों में खर्च हुई रकम पर   1984 में शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान के पहले चरण में 462 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया।  1993 में मंजूर हुये गंगा एक्शन प्लान के दूसरे चरण में लगभग 22 सौ करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया  सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा एक्शन प्लान के पहले चरण मे...

माँ तो यह भी है...

गंगा का पानी स्थिर है. किनारों पर जमी काई बयां कर रही है माँ की दशा.  आज भी हम सही अर्थों में उसे माँ का दर्जा नहीं दे पायें हैं. हाँ यह कहते नहीं थकते की यह तो हमारी माँ है. भारतीय समाज में आ रहा बदलाव हमें स्पष्ट रूप से वहां भी दिखता है. अर्थ प्रधान होते भारतीय समाज के लिए शब्दों का भावनात्मक स्वरुप बाज़ार भाव से निर्धारित होता है. हम पैसे खर्च कर अपनी माँ को माँ बनाये रखना चाह रहें हैं.  कलेजा मुंह  को आता हैं जब आप गंगा की स्थिति से रूबरू होते हैं. लगभग ढाई हज़ार किलोमीटर के अपने लम्बे और कठिन सफ़र में गंगा एक नदी की तरह नहीं बल्कि एक माँ की तरह व्यवहार करती आगे बढती है. जिस तरह से माँ के आँचल में हर संतान के लिए कुछ न कुछ होता है वैसा ही गंगा के साथ है. गंगा कभी अपने पास से किसी को खाली हाथ नहीं लौटाती. जो भी आता है कुछ लेकर ही जाता है. इतने के बावजूद अब गंगा हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती. हमने उसे मल ढोने  वाली एक धारा बना कर छोड़ा है.  राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के अनुसार गंगा बेसिन में रोजाना १२,००० मिलियन लीटर सीवेज उत्...

तो गंगा को राष्ट्रीय नाला घोषित कर दे सरकार

समझ में नहीं आता की केंद्र सरकार अब इस काम में इतनी देर क्यों कर रही है. बिना देर किये केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर सदानीरा को राष्ट्रीय नाला घोषित कर देना चाहिए. गंगा की लगातार बिगड़ती सेहत और केंद्र सरकार के प्रयासों को देखते हुए आम जन को इस बात की पूरी उम्मीद है कि जल्द ही गंगा नदी नहीं रह जाएगी बल्कि मल जल ढ़ोने वाले एक नाले के स्वरुप में आ जाएगी. यह दोनों तस्वीरें वाराणसी के रविदास घाट की हैं घाट के करीब ही अस्सी नाला सीधे गंगा में गिरता है  गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक लगभग २५२५ किलोमीटर का सफ़र तय करने वाली गंगा अपने किनारों पर बसे करोड़ों लोगों को जीवन देती है. देव संस्कृति इसी के किनारे पुष्पित पल्लवित होती है तो दुनिया का सबसे पुराना और जीवंत शहर इसी के किनारे बसा है. माँ का स्थान रखने वाली गंगा भारतीय जनमानस के लिए अत्यन्त आवश्यक है. मोक्ष की अवधारणा में गंगा है. मृत्यु शैया पर पड़े जीव के मूंह में गंगा जल की दो बूंदे चली जाएँ तो उसको मोक्ष मिलना तय माना जाता है लेकिन अब यह अवधारणा बदलने का वक़्त आ गया है. सदानीरा अब...

गंगा में रेत के टीले

देव नदी गंगा को लेकर मेरी चिंता बढती जा रही है.कम से कम बनारस की जो स्तिथि मैं देख रहा हूँ वोह इस गंगा की दुर्दशा को साफ़ बयां करता है-लेकिन अफ़सोस की बात है की इस तरफ़ जितना ध्यान होना चाहिए उतना है नही.....गंगा में रेत के टीले निकल आयें हैं...गंगा की छाती पर निकले यह बड़े बड़े टीले गंगा को मिले घाव की तरह हैं......दरअसल गंगा के प्रवाह से हुए छेड़छाड़ और अत्यधिक पानी निकाले जाने से गंगा की यह दुर्दशा हो है....बात बनारस की ही ले ली जाए तो गंगा की हालत समझ में आ जायेगी....गंगा बनारस में जैसे ही प्रवेश कर रही है वहां पर गंगा मुडती है....यहाँ गंगा का प्रवाह बिना किसी बाधा के होना चाहिए था लेकिन यहाँ बना दिए गएँ पुल हैं...एक पुल तो बन चुका है और दूसरा अभी निर्माणाधीन है..इन दो पुलों के कारन गंगा का प्रवाह बाधित हो रहा है..नतीजा गंगा में आने वाला बालू यहाँ पर आकर इकट्ठा होता जा रहा है...बालू यह टीले अब बेहद बड़ा आकर ले चुके हैं..इन टीलों ने गंगा की धारा को दो भागों में बाँट दिया है.....अपने पुराने घाटों से गंगा लगातार दूर होती जा रही है....अब बनारस के बेहद महत्वपूर्ण और प्रशिध घाट को ही ले...