कै सी विडंबना है कि इस देश की जिस जलधारा में करोड़ों सनातनियों की सहर्ष आस्था हो....जिसकी एक बूंद पर लौकिक जगत के भंवर से पार अलौकिक आनंद का मार्ग प्रशस्त करती हो....उसी जलधारा को भौतिक जगत में पैसों के जरिए साफ करने की दो दशकीय व्यवस्था के असफल होने के बाद एक बार फिर वैसी ही कोशिशें हो रहीं हैं.... गंगा में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने नमामि गंगे नाम से एक योजना शुरू की है...ऐसी कोशिशों की शुरुआत राजीव गांधी ने की थी और उसके बाद कई और प्रधानमंत्रियों ने इस कोशिश को कोशिश के तौर पर बरकरार रखा...भले ही आप जुमले के तौर पर ये मानते हों कि कोशिशें कभी बेकार नहीं जाती लेकिन यहां आपको कोशिशों के बेकार होने का पता चल जाता है....दरअसल 1984 में राजीव गांधी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गंगा एक्शन प्लान शुरू तो किया लेकिन बेहद अनप्लैन्ड रूप में...राजीव गांधी से लगायत मनमोहन सिंह तक गंगा को साफ करने की कोशिश ही करते रह गए और गंगा हर आज में बीते कल से कहीं अधिक गंदी होती रही...गंगा एक्शन प्लान के चरण एक और दो खत्म हो गया...गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिय...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर