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नवंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अद्भुत और अलौकिक

वो दृश्य अद्भुत और अलौकिक होता है उसकी कल्पना मात्र भी आप को रोमांचित कर देती है. वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाना वाला उत्सव देव दीपावली देश के भयातम आयोजनों में से एक है. जाह्नवी के तट पर बसे काशी में घाटो पर असंख्य दीये एक साथ जल उठते हैं. देवताओं के लिए मनाई जा रही ये देव्पावाली देश का एकमात्र ऐसा धार्मिक आयोजन है जिसमे देश प्रेम की भावना दिखती है. इस दिन कार्यक्रम की शुरुआत अमर शहीदों को नमन करने के बाद होती है. इसी आयोजन की कुछ तस्वीरें आपके लिए...

how long will it survive?

its a story that i covered in varanasi. it tell us the dangerous results of throwing soil that has been collected in flood at riverbank of ganga ghats, again in ganga. river scientists telling this continue process will change the flow of ganga in varanasi. this change of flow in ganga will dangerous for many ghats like panchganga, scindhiya and some others. these ghats may be in ganga in few years. the one of most important thing is that all this cleaning process is done by local andimistration.

अब तो गरियाने से भी नहीं फरियाता

मीडिया के बढ़ते कदमो ने कई बदलाव लायें हैं. लेकिन कुछ बदलाव तो ऐसे हैं जिनके बारे में आमतौर पर सोचा नहीं जा सकता है. अब गालियों को ही ले लीजिये. गालियों में कितना कुछ बदल गया है. नयी नयी तरह की गालियाँ आ गयी हैं. जिन्हें सुनकर आप अपने को आनंदित महसूस करते हैं. गालियों के साथ सबसे बड़ी खासियत ये है कि किसको कौन सी गाली कब लग जाएगी, यह आप पहले से नहीं तय कर सकते. कोई साले से ही बिदक जाता है और कोई माँ बहन करने पर भी नहीं संभलता. ये गाली की माया है. देश के जाने- माने सहित्यकार काशीनाथ सिंह ने इन गालियों को अपनी किताब में भी बेधड़क प्रयोग किया है. किताब के पन्नों पर आने के बाद इन गालियों ने ऐसा चोला बदला कि सामाजिक परिवेश इनके बिना अधूरा लगेगा. ये है गालियों की विशेषता. लेकिन आजकल यही गालियाँ अपने मौलिक स्वरुप को बचाने के लिए गुहार लगा रहीं हैं. वह चाह रहीं हैं कि लोग इन गालियों का सही उच्चारण शुरू करे ताकि इनका आस्तित्व बना रहे. गालियों के स्वरुप में परिवर्तन का एहसास तब से हुआ जब से छोटे पर्दे पर लाफ्टर शो शरू हुए. गंभीर अर्थो वाली गालियों के साथ प्रयोग शुरू हुए और गालियाँ बिगड़ गयीं.

हे आज तक ये 'धर्म' है 'वारदात' नहीं...

धनतेरस के दिन दोपहर में आज तक ने ' धर्मं ' कार्यक्रम में वाराणसी में माँ अन्नपूर्णा मंदिर से जुड़ी एक ख़बर दिखाई. बिल्कुल इण्डिया टीवी वाले तरीके से. ख़बर में दिखाया जा रहा था कि वाराणसी में स्थित माँ अन्नपूर्णा का मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो वर्ष में सिर्फ एक दिन धनतेरस के दिन खुलता है. ये तथ्य पूरी तरह गलत है. माँ अन्नपुर्णा का मंदिर तो हर रोज़ खुलता है. ख़ास बात ये है कि धनतेरस वाले दिन माँ अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा के दर्शन होते हैं. यह वर्ष में सिर्फ एक दिन धनतेरस के दिन ही होता है. माँ अन्नपुर्णा की स्वर्ण प्रतिमा बेहद भव्य और आकर्षक है. इसीलिए इस दिन माँ के दरबार में भक्तों का सैलाब उमड़ता है. यही नहीं इस दिन माँ का खजाना भी भक्तों के बीच बांटा जाता है. इसके तहत माँ को दान में मिले धन को भक्तों के बीच में वितरित किया जाता है. इस धन को लेने के लिए माँ के दरबार में जबरदस्त भीड़ उमड़ती है. ऐसा नहीं है कि धन कोई बहुत अधिक होता है. फुटकर पैसे होते हैं जिन्हें भक्तों के बीच उछाला जाता है. मान्यता है कि जिसके पास माँ का ये खजाना होता है वो हमेशा धन धान्य से परि

देश का भविष्य बोस कि कुर्बानी तय करेगी, गिलानी नहीं

विरोध प्रदर्शन की यह तस्वीर है बनारस की. यहाँ बच्चों ने अरुंधती रॉय के उस बयान की खिलाफत की है जिसमे उन्होंने कहा था कि कश्मीर कभी भारत का हिस्सा रहा ही नहीं. देश में अलगाववाद का समर्थन करने वाली अरुंधती के इस बयान का विरोध करते वक़्त विशाल भारत संस्थान के इन बच्चों ने सुभाष चन्द्र बोस की पोशाक पहन रखी थी. इन बच्चों की कोशिश है कि अरुंधती बौद्धिकता के नाम पर वर्तमान के प्रति जो नजरिया रख रहीं हैं उसमे भारत के इतिहास को भी शामिल करें. क्योंकि इस देश के लिए सुभाष चन्द्र बोस. आज़ाद और बिस्मिल ने कुर्बानी दी है. किसी गिलानी ने नहीं. लिहाजा देश का भविष्य यह कुर्बानियां तय करेंगी, बंटवारे की राजनीती करने वाला गिलानी नहीं.