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ये सोनम तो बेवफा नहीं है, चाहे तो अपनी आंखों से देख लो।

क्या करिएगा, आपको ये पता चल सके कि आप इंटरनेट के जिस वायरल मैसेज वाले मायावी दुनिया में रहते हैं उससे आगे भी दुनिया है, इस तरह की हेडिंग लगानी पड़ गई। हालांकि ये भी लगे हाथ साफ कर देना जरूरी है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आगे से ऐसा नहीं होगा। धोखा आपको कभी भी किसी भी रूप में दिया जा सकता है। फिलहाल अब नोट वाली सोनम गुप्ता की याद को अपने दिमाग से निकाल दीजिए और सोनम वांगचुक के बारे में जानिए। सोनम वांगचुक विज्ञान और व्यावहारिकता के बीच की एक कड़ी हैं। लद्दाख में जन्मे और प्रारंभिक जीवन लद्दाख में शुरु करने वाले सोनम वांगचुक एक संगठन चलाते हैं जिसका नाम एजुकेशनर एंड सोशल मूवमेंट ऑफ लद्दाख है। सोनम इस संगठन के जरिए न सिर्फ लद्दाख में बल्कि कई अन्य जगहों पर सामाजिक और शिक्षा क्षेत्र में बदलाव लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। सोनम वांगचुक की सबसे अधिक चर्चा उनके कृत्रिम ग्लेशियरों के लिए हो रही है। दरअसल लद्दाख के पानी की कमी से जूझ रहे इलाकों के लिए सोनम वांगचुक ने बेहद नया प्रयोग किया है जो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। सोनम वांगचुक ने लद्दाख में वि

हम बुलेट ट्रेन में बैठकर पुखरायां से होकर गुजर जाएंगे, मरने वाले तो मर ही गए।

ये अच्छा है कि देश बुलेट ट्रेन में बैठकर रेल का सफर करने के सपने देख रहा है या शायद राजनीतिक नींद या राजनीतिक बेहोशी के हाल में देश को ये सपना दिखाया जा रहा है। अच्छा है कि देश सपना देख रहा है। हालांकि ऐसे सपने देखने के लिए आंखों की जरूरत नहीं होती और आंखों में रोशनी की जरूरत भी नहीं होती है। लिहाजा अंधे भी ऐसे सपनों को बिना भेदभाव के देख सकते हैं। हम अक्सर इस बात को लेकर खुशी से फूले नहीं समाते हैं कि हमारे पास दुनिया के बड़े रेल नेटवर्क में से एक नेटवर्क है। हालांकि ये बात भी सच है कि दुनिया के किसी देश के प्लेटफार्म पर आपको जानवरों में सांड, कुत्ता, गाय, बंदर और इंसानों में भिखारी, कुष्ठ रोगी, पागल सबके दर्शन एक साथ हो जाएं। आप चाहें तो इस उपलब्धि के लिए भी अपना हाथ अपनी पीठ पर ले जाकर उसे थपाथपा सकते हैं। हाथ न पहुंचे तो किसी दोस्त का सहयोग ले सकते हैं। दुनिया के इस बड़े रेल तंत्र की तल्ख सच्चाई यही है कि यहां रेल दुर्घटनाओं के बाद सिर्फ और सिर्फ जांच कमेटी बैठाई जाती है। ये जांच कमेटी बैठ कर कब उठती है, क्या करती है, कितने लोगों को उठाती है, कितनों को बैठाती है य

उठती आवाजों से तसल्ली, वक्त बदलेगा जरूर

ये अच्छा है कि हमारा समाज महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए चर्चा तो कर रहा है लेकिन दुखद ये है कि हमारी चर्चाओं औऱ कोशिशों के बावजूद हमारे ही समाज का एक हिस्सा महिलाओं के साथ अत्याचार करता ही आ रहा है। पता नहीं लेकिन कभी कभी लगता है कि ये अत्याचार पारंपरिक रवायतों के हिस्से तो नहीं हो गए। या फिर पुरुषवादी मानसिकता को ऊपर रखने की कोशिश। कुछ भी हो लेकिन समाज को बदलने में वक्त लगेगा और उम्मीद ही कर सकते हैं कि समाज बदलेगा तो जरूर। सुखद लगता है कि जब महिलाएं इस बारे में मुखर होकर बोलती और आवाज उठाती हैं। पूजा बतुरा भी आवाज उठाने वालों में से एक हैं। एक छोटी सी फिल्म और एक लंबी कहानी। यू ट्यूब लिंक साझा कर रहा हूं शायद आपका देखना भी महिला अधिकारों का समर्थन करना होगा।  

माफ करना बिटिया रानी, हमारे पास रॉकेट है लेकिन एंबुलेंस नहीं

एक तरफ सोमवार को आंध्रप्रदेश के श्री हरिकोटा से पीएसएलवी सी – 35 की सफल लांचिंग की तस्वीरें आईं तो इसके ठीक 24 घंटे बाद उसी आंध्र प्रदेश से ऐसी तस्वीरें भी आईं जिन्होंने इस देश की चिकित्सा सेवाओं की पोल खोल कर रख दी। श्रीहरिकोटा के लांच पैड पर वैज्ञानिक अपने अब तक के सबसे लंबे मिशन की सफलता की खुशी मना रहे थे तो इसके 24 घंटे बाद यहां से तकरीबन 800 किलोमीटर दूर एक शख्स बारिश से लबालब अपने गांव में अपनी छह महीने की बच्ची की जान बचाने की जद्दोजहद में लगा था। आंध्र के चिंतापल्ली मंडल के कोदुमुसेरा (kudumsare) गांव से आईं इन तस्वीरों में एक सतीबाबू नामक शख्स छह महीने की अपनी बीमार बच्ची को कंधे तक पानी में किसी तरह डाक्टर तक लेकर जा रहा है। दरअसल इस इलाके में भारी बारिश की वजह से पूरा गांव तालाब में तब्दील हो गया है। ऐसे में बुखार में तप रही सतीबाबू की छह महीने की बच्ची को कोई चिकित्सकीय सहायता नहीं उपलब्ध हो पाई। आखिरकार कहीं से कोई रास्ता न निकलता देख ये शख्स खुद ही अपनी बच्ची को लेकर डाक्टर के पास रवाना हो गया। हालांकि गांव के लोगों ने सतीबाबू को ऐसा दुस्साहस करने से रोकने

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा, मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

Kejriwal knew 15 days back abt the scandal bt only took action whn d CD reached LG & news agencies #AAPMantriScandal pic.twitter.com/XhOgzYEfsX — Sabyasachi Banerjee (@MrAmbiDexter) September 1, 2016 आम आदमी पार्टी के मंत्री संदीप कुमार को लेकर पार्टी के भीतर कुछ ऐसी चर्चाएं चल रहीं हों तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुमार विश्वास की कविताओं में यकीन रखने वाली पार्टी के नेताओं से यही उम्मीद की जा सकती है। आम आदमी पार्टी के शैशवकाल में ही उसके जन्मदाताओं ने पार्टी की ऐसी की तैसी कर ऱखी है और इसके बाद सुनने सुनाने के लिए पहले से ही कविता तैयार रखी है। संदीप कुमार, सोमनाथ भारती, जितेंद्र तोमर जैसे नाम न सिर्फ आम आदमी पार्टी के लिए कलंक बन गए हैं बल्कि उस पूरे मिडिल क्लास को तकलीफ दे रहें हैं जो अन्ना के आंदोलन से उम्मीद बांधे हुए थे। अन्ना आंदोलन की बाईप्रोडक्ट आम आदमी पार्टी ने देश के नब्बे फीसदी लोगों की उम्मीदों को यमुना के काले पानी में डुबा कर खत्म कर दिया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जिस तरह से सुचिता और पारदर्शिता के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी उन स