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फ़रवरी, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सत्ता सिर्फ बंदूक की नली से नहीं निकलती

संसदीय राजनीति युवा तबके के जरिए अपनी पस्त पड़ती राजनीति को ढाल बनाना चाहती है। वहीं एक दौर में युवाओं के सपनों को हवा देने वाली वामपंथी समझ थम चुकी है। और इन सबके बीच अपनी जमीन को लगातार फैलाने का दावा करने वाली नक्सली राजनीति के पास वैकल्पिक व्यवस्था का कोई खाका नही है। कुछ ऐसी ही वैचारिक समझ लगातार उभर रही है, जिसमें पहली बार माओवादियों की चिंता अपने घेरे में उभर रही है कि उनकी समूची राजनीति व्यवस्था का बुरा असर उन पर भी पड़ा है। और इसकी सबसे बड़ी वजह विकल्प की स्थितियों को सामने लाने के लिये सकारात्मक प्रयोग की जगह राज्य से दो-दो हाथ करने में ही ऊर्जा समाप्त हो रही है। खासकर पिछड़े और ग्रामीण इलाकों के लोगों को जिन वजहों से सत्तर-अस्सी-नब्बे के दशक तक साथ में जोड़ा जाता था, अब वह सकारात्मक प्रयोग संगठन में समाप्त हो गये है।वह दौर भी खत्म हो गया जब क्रांतिकारी कवि चेराबंडु राजू से लेकर गदर तक का साहित्य भी आम लोगों की जुबान में आम लोगों की परेशानियों को व्यक्त करता था। जिससे ग्रामीण आदिवासी खुद को अभिव्यक्त करने के लिये आगे आते थे। लेकिन गदर के गीत क्रांतिकारी गीतों की शृंखला में आख...

'जो अपराधी नहीं होंगे मारे जाएंगे'

कौन है महारथी। प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक। अखबार या न्यूज़ चैनल। बहस करने वाले और कोई नहीं खुद मीडियाकर्मी हैं। हर जेहन में यही है कि खबरें जब अखबार के पन्ने से लेकर टीवी स्क्रीन तक से नदारद है तो ऐसी बहस के जरिये ही अपने होने का एहसास कर लिया जाये। लेकिन पत्रकार के लिये एहसास होता क्या है, संयोग से इसी दौर में खुलकर उभरा है। ताज-नरीमन हमला, आम लोगों का आक्रोष, पाकिस्तान से लेकर तालिबान और ओबामा।इन सब के बीच लिट्टे के आखिरी गढ़ का खत्म होना। 27 जनवरी को जैसे ही श्रीलंकाई सेना के लिट्टे के हर गढ़ को ध्वस्त करने की खबर आयी दिमाग में कोलंबो से निकलने वाले 'द संडे' लीडर के संपादक का लेख दिमाग में रेंगने लगा। हर खबर से ज्यादा घाव किसी खबर ने दिया तो पत्रकार की ही खबर बनने की। पन्द्रह दिन पहले की ही तो बात है। लासांथा विक्रमातुंगा का आर्टिकल छपा । कोलंबो से निकलने वाले द संडे लीडर का संपादक लासांथा विक्रमातुंगा। जिसने अपनी हत्या से पहले आर्टिकल लिखा था। और हत्या के बाद छापने की दरखास्त करके मारा गया। बतौर पत्रकार तथ्यों को न छिपाना और श्रीलंका को पारदर्शी-धर्मनिरपेक्ष-उदार लोकतांत्रिक दे...