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मई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बाल संसद

आज आपको एक ऐसी संसद के बारे में बता हूँ जिसके बारे में आपने कभी नही सुना होगा....बात कर रहा हूँ दुनिया की पहली और एकलौती बाल संसद के बारे में....यह बाल संसद वाराणसी में है...इसके निर्माण में एक एन. जी.ओ. विशाल भारत संस्थान की मुख्य भूमिका है ...साथ ही वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश दुबे और अजय सिंह ने भी इस बाल संसद की अवधारणा को ज़मीन पर उतारने में प्रमुख रोल अदा किया है.... वाराणसी की यह बाल संसद पूरी तरह से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को पर आधारित है...इस बाल संसद में ६ से १३ साल का कोई भी बच्चा सम्मिलित हो सकता है...इस संसद की सभा में वाराणसी क्षेत्र से तीन विधयक और एक सांसद चुना जाता है....बाल संसद का प्रतिनिधत्व करने वालों को एक आचार संहिता को मानना पड़ता है..जैसे उसकी उम्र ६ से १३ साल के बीच हो..वोह अपने घर और क्षेत्र में ब्लैक लिस्टेड नही होना चाहिए...इसी तरह के कुछ और नियम है जिन्हें मनने वाला ही इस बाल संसद में सांसद या विधायक के लिए अपनी दावेदारी कर सकता है...जब इस संसद का चुनाव होता है तो लोकतान्त्रिक प्रणाली का पूरा ध्यान रखा जाता है....बच्चे अपने वोट से अपने विधायक और सां...

सवाल है जवाब नही

आज मन बहुत परेशान है.....बार बार पुण्य प्रसून बाजपाई का एक इंटरव्यू जेहन में आ रहा है...यह इंटरव्यू उन्होंने हालाँकि लगभग एक साल पहले एक वेब मैगजीन को दिया था.....लेकिन उसकी याद आज भी मुझे एकदम ताज़ा है...दरअसल उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था की आज के पत्रकारों को शीशे के ऑफिस में बैठकर दुनिया देखने की आदत है....उन्हें अच्छी सैलरी चाहिए लेकिन पत्रकारिता नही करनी है.....मैं अभी नेशनल मीडिया में नया हूँ..हालाँकि जिस मीडिया में मैं हूँ वोह भी अभी इस देश के लिए पुराणी नही कही जा सकती है....जाहिर है बात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हो रही है....मैंने एस पी सिंह को बहुत नही जाना लेकिन पुण्य प्रसून बाजपाई को थोड़ा बहुत देख रहा होऊँ...भी एस पी सिंह के सहयोगी रहें हैं....सो इन्ही से कुछ पुरानी होती इस नई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखने के प्रयास कर रहा हूँ.....खैर बात दूसरी ओरे ले चलता हूँ....मुझे नेशनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जितना भी अनुभव हुआ उसमे मुझे अच्छे कम बुरे अनुभव अधिक मिले...इससे मेरा सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर वाराणसी में अपना पहला एक्सपेरिएंस लिया...जिस चैनल में थ...

गंगा में रेत के टीले

देव नदी गंगा को लेकर मेरी चिंता बढती जा रही है.कम से कम बनारस की जो स्तिथि मैं देख रहा हूँ वोह इस गंगा की दुर्दशा को साफ़ बयां करता है-लेकिन अफ़सोस की बात है की इस तरफ़ जितना ध्यान होना चाहिए उतना है नही.....गंगा में रेत के टीले निकल आयें हैं...गंगा की छाती पर निकले यह बड़े बड़े टीले गंगा को मिले घाव की तरह हैं......दरअसल गंगा के प्रवाह से हुए छेड़छाड़ और अत्यधिक पानी निकाले जाने से गंगा की यह दुर्दशा हो है....बात बनारस की ही ले ली जाए तो गंगा की हालत समझ में आ जायेगी....गंगा बनारस में जैसे ही प्रवेश कर रही है वहां पर गंगा मुडती है....यहाँ गंगा का प्रवाह बिना किसी बाधा के होना चाहिए था लेकिन यहाँ बना दिए गएँ पुल हैं...एक पुल तो बन चुका है और दूसरा अभी निर्माणाधीन है..इन दो पुलों के कारन गंगा का प्रवाह बाधित हो रहा है..नतीजा गंगा में आने वाला बालू यहाँ पर आकर इकट्ठा होता जा रहा है...बालू यह टीले अब बेहद बड़ा आकर ले चुके हैं..इन टीलों ने गंगा की धारा को दो भागों में बाँट दिया है.....अपने पुराने घाटों से गंगा लगातार दूर होती जा रही है....अब बनारस के बेहद महत्वपूर्ण और प्रशिध घाट को ही ले...
स्वर्ग से धरती पर उतरी देव नदी गंगा अब अपनी दयनीय स्थिती पर रो रही है...धर्मं और समाज के ठेकेदार इस देव नदी की सुध लेने की कौन कहे उसके नाम पर लूट खसोट में लिप्त हैं....आप को बनारस की बात बताता हूँ....बनारस यानि काशी॥यानि वाराणसी....यानि आनंदवन....इस बनारस में गंगा उलटी बहती है.....जी हाँ बनारस में गंगा उलटी बहती है..यहाँ गंगा उत्तर की ओ़र बहती है यहाँ गंगा का आकर भी बहुत खूबसूरत है..बनारस में गंगा अर्धचन्द्राकार रूप में है.....यानि एक छोर से खड़े होके अगर देखा जाए तो दूर तक गंगा और उसके किनारे बने लगभग ८० घाट एक पंक्ति में दिखाई देते हैं.....यही खूबसूरत नज़ारा देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं.....देशी विदेशी पर्यटक इन पक्के घाटों का मनोरम नज़ारा देख आशर्यचकित हो जाते हैं....वास्तु की दृष्टि से भी यह घाट बेहद महत्वपूर्ण हैं...लेकिन अब इन घाटों पर अब एक बड़ा खतरा आन पड़ा है....नदी वैज्ञानिक मान रहें हैं की यह घाट अब धीरे धीरे धंसते चले जायेंगे....यानि आनेवाला समय इन घाटों के लिये भयावह साबित हो सकता है .....गौर करने वाली बात यह है की इन घाटों की दुश्मन बनी है गंगा...वही गंगा जो कभी इन घाटों...

यही है बनारस