क्यों हवाला देते हो उम्र का उम्र का क्या दोष आखिर इसे भी तो बचपन पसंद है यह मजबूरी इसकी भी तो है यह खुद को बढ़ने से रोक नहीं सकती हर वक़्त हर पल यह बढ़ रही है इसमें क्या गलती है इसकी हाँ तुम चाहो तो खुद को अपनी उम्र से अलग कर लो फिर तुम्हे बूढे होने का डर नहीं होगा लेकिन रुको जरा यह भी तो सोचो इसी उम्र ने ही तो तुम्हे सुख दिया है बचपन का फिर कैसे अलग करोगे रहने दो इस उम्र को अपने साथ शायद फिर बचपन लौट आये....... आशीष तिवारी
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर