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मई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ख़ामोशी

अक्सर चुप सी बैठ जाती है ख़ामोशी  और मुझसे कहती है  बतियाने के लिए  कहती कि आज तुम बोलो  मैं सुनना चाहती हूँ शब्द ही नहीं मिलते हैं मुझको  उससे बात करने के लिए चुप सा रह जाता हूँ  बस फटी आँखों से देखता हूँ  वो कहती कि  तुम भी अजीब हो  मुझे में ही समो जाते हो  खामोश हो जाते हो  बस खिलखिलाकर हंस देती है  ख़ामोशी. मैं चुप बस देखता रहता हूँ उसे. 

माँ तो यह भी है...

गंगा का पानी स्थिर है. किनारों पर जमी काई बयां कर रही है माँ की दशा.  आज भी हम सही अर्थों में उसे माँ का दर्जा नहीं दे पायें हैं. हाँ यह कहते नहीं थकते की यह तो हमारी माँ है. भारतीय समाज में आ रहा बदलाव हमें स्पष्ट रूप से वहां भी दिखता है. अर्थ प्रधान होते भारतीय समाज के लिए शब्दों का भावनात्मक स्वरुप बाज़ार भाव से निर्धारित होता है. हम पैसे खर्च कर अपनी माँ को माँ बनाये रखना चाह रहें हैं.  कलेजा मुंह  को आता हैं जब आप गंगा की स्थिति से रूबरू होते हैं. लगभग ढाई हज़ार किलोमीटर के अपने लम्बे और कठिन सफ़र में गंगा एक नदी की तरह नहीं बल्कि एक माँ की तरह व्यवहार करती आगे बढती है. जिस तरह से माँ के आँचल में हर संतान के लिए कुछ न कुछ होता है वैसा ही गंगा के साथ है. गंगा कभी अपने पास से किसी को खाली हाथ नहीं लौटाती. जो भी आता है कुछ लेकर ही जाता है. इतने के बावजूद अब गंगा हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती. हमने उसे मल ढोने  वाली एक धारा बना कर छोड़ा है.  राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के अनुसार गंगा बेसिन में रोजाना १२,००० मिलियन लीटर सीवेज उत्...