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भागलपुरी या अंगिका...एक विवेचना

Posted by poemsnpuja थोड़ा सा इतिहास में चलते हैं और मिथकों में तलाशते हैं...अंगिका अंग देश की भाषा है।अंगिका के बारे में बात करने से पहले अंग प्रदेश की बात करते हैं। अंग का पहला जिक्र गांधारी, मगध और मुजवत के साथ अथर्व वेद में आता है। गरुड़ पुराण, विष्णु धर्मोत्तर और मार्कंडेय पुराण प्राचीन जनपद को नौ भागों में बांटते हैं...इसमें पूर्व दक्षिण भाग के अंतर्गत अंग, कलिंग, वांग, पुंडर, विदर्भ और विन्ध्य वासी आते हैं।बुद्ध ग्रन्थ जैसे अंगुत्तर निकाय में अंग १६ mahajanpadon में एक था (चित्र देखें) अंग से जुड़ी हुयी सबसे prasiddh kahani महाभारत काल की है। पांडव और कौरव जब द्रोणाचार्य के आश्रम से अपनी शिक्षा पूर्ण करने लौटते हैं तो अर्जुन के धनुर्विद्या कौशल का प्रदर्शन देखने के लिए प्रजा आती है...यहाँ वे अर्जुन का प्रदर्शन देख कर दंग रह जाते हैं. पर तभी भीड़ में से एक युवा निकलता है और अर्जुन के दिखाए सारे करतब ख़ुद दिखाता है और अर्जुन से प्रतियोगिता करना चाहता है. द्रोणाचार्य ये देख चुके थे कि वह युवक बहुत प्रतिभाशाली है और अर्जुन को निश्चय ही हरा देगा...इसलिए वह उससे उसका कुल एवं गोत्र पूछत...

भारत को अंग्रेज़ी में इंडिया क्यों कहते हैं

भारत को इंडिया इसलिए कहते हैं क्योंकि स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं ने इस शब्द को अंग्रेज़ों की विरासत के रूप में देश का दूसरा नाम स्वीकार किया। अंग्रेज़ों के भारत पर शासन काल में इंडिया नाम प्रचलित और रूढ़ हो चुका था. जहाँ तक इंडिया शब्द के अंग्रेज़ी में आने की बात है इसके लिए ज़रा पीछे जाना होगा.भारत का जिन विदेशी व्यापारियों, आक्रमणकारियों, विजेताओं और यात्रियों आदि से संपर्क हुआ, उनके ज़रिए भारत के पुराने नाम सिंधु का उनके देशों में अपने ढंग से प्रचार हुआ. इसके लिए मुख्य रूप से दो स्रोतों का नाम लिया जा सकता है, ईरानी और यूनानी. ईरानी या पुरानी फ़ारसी में सिंधु शब्द का परिवर्तन हिंदू के रूप में हुआ और उससे बना हिंदुस्तान, जबकि यूनानी में ए बना इंडो या इंडोस. बस ए शब्द किसी तरह लेटिन भाषा में जा पहुँचा और इसी से बना इंडिया. युवा जोश से साभार

वादे और दावे

लोकतंत्र का उत्सव आने वाला है...चुनाव होने वाले हैं...एक बड़ी भीड़ खड़ी हो रही आप से वोट मांगने के लिए....कभी कभी सोचता हूँ की यह चुनाव आख़िर होते ही क्यों हैं...हम जिन्हें जिस शर्त पर चुन कर भेजते हैं इस बात की कोई गारेंटी नही है की वोह जीत जाने के बाद भी उन बातों को ही अमल में ही लायेंगे जो उन्होंने चुनाव लड़ते समय कहीं थी ....आप को नही लगता है की कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमे हमारे राजनीतिज्ञ जो कहे वोह कर दिखाने के लिए वोह बाध्य हो....अगर सभी वादे पूरे नही हो सकते हैं तो कम से कम कुछ वादे तो ज़रूर पूरे किए जायें....हो सकता है इस व्यवस्था से राजनीतिज्ञ पार्टियाँ लुभावने वादे करना छोड़ दे....जनता के हित के लिए किए जाने वाले वादे तो बहुत होते हैं लेकिन बात जब हकीकत की कसौटी पर परखी जाती है तो सरे दावे फ़ेलहो जाते हैं.....इस बारे में आप की क्या राय है....ज़रूर लिखिए .......

Pepsi and Coca Cola Contains PORK (PIG) extracts - PROVEN!!

Shocking / Bad News : Pepsi and Coca Cola contains extract from Pork (Pig) Most of the people avoid Pepsi and Coca-Cola for various reasons:- because of harmful chemical contents such as excessive carbonates , etc. Now there is yet another reason which is more dangerous. The scientific and medical research says that drinking Pepsi & Cola leads to cancer because the key element is taken from Pigs sausage. The pig is the only animal that eats dirt , dung and urine , which makes lethal and deadly fabric polluted germs and microbes. According to a report published in Jordanian magazine , the Head of Delhi University Science and Technology , Dr. Mangoshada scientifically proved that the key element in Pepsi and Cola contains extract from the intestines of Pig which causes cancer and other deadly diseases. The Indian university conducted tests on the impact of drinking Pepsi and Coca Cola which proved that drinking them lead to more rapid heart rate and low pressure. Also drinking 6 bott...

वोट डालिए...देश बचाए.....

आज बहुत दिनों के बाद लिख रहा हूँ....लिखने का मन तो बहुत करता है लेकिन लिख नही पाता हूँ...खैर छोडिए लोकसभा चुनाव होने वालें हैं ..एक पत्रकार होने के नाते मुघे काफी तैयारी करनी है....बहुत सारे हिसाब लगाने हैं.... इस चुनावमें हो सकता है बड़ी जिम्मेदारी उठानी पड़े..आप लोगों से एक बात कहना चाहता हूँ....मैंने कई बार और कई तरह के चुनाव देखे हैं...इन्हे काफी करीब तो नही लेकिन कुछ करीब से ज़रूर देखा है...एक बात जो मैंने महसूस की है वो है अब के चुनावों में लोगों क जोश न रहना...लगता है लोगों को महज शिकायत करने की आदत होती जा रही है....लेकिन इस शिकायत को दूर करने की कोशिश कोई नही करना चाह रहा है...मतदाता वोट देने के लिए नही जन चाहता है उसे लगता है की घर में रहा जाए तो अच्छा होगा.... बाहर निकल के वोट देने की जहमत नही उठाना चाहता है कोई ....वोट के साथ स्टेटस जुड़ गया है....अपने को संभ्रांत मानने वाला वर्ग वोटिंग करने के लिए नही जाता है जानते हैं क्यों ? पता नही मालूम नही ..आप को मालूम हो तो बताना...... लेकिन यह एक ग़लत प्रथा है....आज देश को कुछ ही लोग चला रहें हैं...हमारी यही स्थिति रही तो आख़िर हम ...

सत्ता सिर्फ बंदूक की नली से नहीं निकलती

संसदीय राजनीति युवा तबके के जरिए अपनी पस्त पड़ती राजनीति को ढाल बनाना चाहती है। वहीं एक दौर में युवाओं के सपनों को हवा देने वाली वामपंथी समझ थम चुकी है। और इन सबके बीच अपनी जमीन को लगातार फैलाने का दावा करने वाली नक्सली राजनीति के पास वैकल्पिक व्यवस्था का कोई खाका नही है। कुछ ऐसी ही वैचारिक समझ लगातार उभर रही है, जिसमें पहली बार माओवादियों की चिंता अपने घेरे में उभर रही है कि उनकी समूची राजनीति व्यवस्था का बुरा असर उन पर भी पड़ा है। और इसकी सबसे बड़ी वजह विकल्प की स्थितियों को सामने लाने के लिये सकारात्मक प्रयोग की जगह राज्य से दो-दो हाथ करने में ही ऊर्जा समाप्त हो रही है। खासकर पिछड़े और ग्रामीण इलाकों के लोगों को जिन वजहों से सत्तर-अस्सी-नब्बे के दशक तक साथ में जोड़ा जाता था, अब वह सकारात्मक प्रयोग संगठन में समाप्त हो गये है।वह दौर भी खत्म हो गया जब क्रांतिकारी कवि चेराबंडु राजू से लेकर गदर तक का साहित्य भी आम लोगों की जुबान में आम लोगों की परेशानियों को व्यक्त करता था। जिससे ग्रामीण आदिवासी खुद को अभिव्यक्त करने के लिये आगे आते थे। लेकिन गदर के गीत क्रांतिकारी गीतों की शृंखला में आख...

'जो अपराधी नहीं होंगे मारे जाएंगे'

कौन है महारथी। प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक। अखबार या न्यूज़ चैनल। बहस करने वाले और कोई नहीं खुद मीडियाकर्मी हैं। हर जेहन में यही है कि खबरें जब अखबार के पन्ने से लेकर टीवी स्क्रीन तक से नदारद है तो ऐसी बहस के जरिये ही अपने होने का एहसास कर लिया जाये। लेकिन पत्रकार के लिये एहसास होता क्या है, संयोग से इसी दौर में खुलकर उभरा है। ताज-नरीमन हमला, आम लोगों का आक्रोष, पाकिस्तान से लेकर तालिबान और ओबामा।इन सब के बीच लिट्टे के आखिरी गढ़ का खत्म होना। 27 जनवरी को जैसे ही श्रीलंकाई सेना के लिट्टे के हर गढ़ को ध्वस्त करने की खबर आयी दिमाग में कोलंबो से निकलने वाले 'द संडे' लीडर के संपादक का लेख दिमाग में रेंगने लगा। हर खबर से ज्यादा घाव किसी खबर ने दिया तो पत्रकार की ही खबर बनने की। पन्द्रह दिन पहले की ही तो बात है। लासांथा विक्रमातुंगा का आर्टिकल छपा । कोलंबो से निकलने वाले द संडे लीडर का संपादक लासांथा विक्रमातुंगा। जिसने अपनी हत्या से पहले आर्टिकल लिखा था। और हत्या के बाद छापने की दरखास्त करके मारा गया। बतौर पत्रकार तथ्यों को न छिपाना और श्रीलंका को पारदर्शी-धर्मनिरपेक्ष-उदार लोकतांत्रिक दे...