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संदेश

उत्तराखंड की हिलती बुनियाद

उत्तरखंड देवभूमि है. लेकिन यह देवभूमि आजकल परेशानियों से जूझ रही है. ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में सब कुछ स्वर्ग सा सुंदर है और यहां की जनता को कोई परेशानी ही नहीं है। देवभूमि का स्याह सच तो ये है कि 13 जिलों और 70 विधानसभाओं वाले इस प्रदेश के कई इलाकों में मूलभूत सुविधाएं भी लोगों को मयस्सर नहीं हैं। पहाड़ों के बीच में बसे कई ऐसे इलाके हैं जिनमें बिजली, सड़क और पीने का पानी तक नहीं मिलता। लोगों को कहीं आने जाने में जबरदस्त दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिन सड़कों को गांवों तक विकास की किरण लानी थीं वो खुद ही रास्ता भटक गईं। कुछ इलाकों में गिट्टी और तारकोल एक दूसरे में लिपटे तो दिख जाएंगे लेकिन सरकारी फाइलों के अलावा और कोई इन्हें सड़क मानने को तैयार नहीं होता।  पहाड़ों पर किसी तरह बस झूल भर रहे पुलों को देखकर और उनपर लोगों को आते जाते देख यकीन नहीं होता कि ये इक्कीसवीं सदी के भारत के गांव हैं। इन पुलों पर कभी कोई इलाकाई राजनीति का नुमाइंदा पांव नहीं रखता क्योंकि उसे गिर जाने का डर होता है। लेकिन वहां रहने वाले रोज ही ऐसे रास्तों से आते-जाते हैं। उत्तराखंड के कई गांव...

माँ, मजबूरी और मौत

Ganga Basin par baithak part-1

फंस सकते हैं तरुन विजय

फंस सकते हैं तरुन विजय

फंस सकते हैं तरुन विजय

फंस सकते हैं तरुण विजय

बहुत कुछ बदल गया इस बीच...

कई दिनों बाद ब्लॉग पर कुछ पोस्ट करने का मौका मिला. जीवन में ऐसी व्यस्तता हो गयी कि बहुत कुछ लिख नहीं पाया. जो कुछ लिखा वो महज एक नाम था. जीवन में बहुत कुछ बदला इस बीच. सामाजिक रूप से इस बदलाव को मेरे साथ मेरा पूरा समाज महसूस कर सकता. मुझे पता है कि आजकल समाज और सामाजिक होने का पहला सबूत यह है कि आपका फेसबुक प्रोफाइल होना चाहिए. वैसे इस लिहाज से मैं बेहद सामाजिक हूँ और मेरी फेसबुक प्रोफाइल भी है. इतने दिनों में मेरे साथ एक बड़ा बदलाव यह हुआ कि मेरी फेसबुक प्रोफाइल पर मेरा मैरिज स्टेटस बदल गया. पहले मैं 'अनमैरिड' था और अब 'मैरिड' हो गया हूँ. कहने को शब्दों का बहुत बदलाव नहीं है लेकिन ज़िन्दगी का बदलाव बहुत बड़ा है. आप के साथ आपका ऐसा बंटवारा जो आपको अच्छा लगे. ऐसा कम ही होता है. कोई वजह मिल जाना किसी भी काम के लिए अच्छा  होता है. नया साल भी मना लिया और अब होली भी बीत गयी. दो जून की रोटी के लिए जिन संस्थानों के साथ जुड़ता हूँ उनके नाम भी इस बीच बदल गए. शहर भी बदल गया. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हो चुके और सरकारें भी बदल गयीं. उम्मीद और विश्वास के साथ एक अनचाहा डर भ...

संपादक केबिन से बाहर बैठें तो !

मुझे नहीं पता कि संपादकों के केबिन में बैठने की परंपरा कब शुरू हुई लेकिन अगर यह परंपरा खत्म हो जाए तो अच्छा। केबिन में संपादक क्यों बैठते हैं इस बारे में अगर गंभीरता से सोचा जाए तो पत्रकारिता में कारपोरेट कल्चर और मीडिया संस्थानों के प्रबंधन का आपसी गठजोड़ सामने आयेगा। इसी का परिणाम पेड न्यूज हैं।  सिद्धांतों की पत्रकारिता में संपादक एक पद मात्र है। इस पद पर बैठा व्यक्ति खबरों और आम जनता के बीच एक सूत्र होता है। इसकी जिम्मेदारी खबरों की विश्वसनीयता बनाए रखने और समाज के प्रति होती है। जनहित के मुद्दों को प्रमुखता से प्रस्तुत करना इनका परम धर्म है। लेकिन वक्त बदलने के साथ संपादक की भूमिका बदल गई।  खबरों पर जब विज्ञापनदाता हावी होने लगे और पत्रकारिता का बीड़ा औद्योगिक समूहों ने उठा लिया तो संपादक की भूमिका गौड़ हो गई। प्रबंधन ऐसे पत्रकार की तलाश करने लगा जो मैनेजर की भूमिका भी बखूबी निभा सके। जिन पत्रकारों में मैनेजमेंट का गुण था उन्हें प्रबंधन ने संपादक की कुर्सी दे दी। अगर उस संपादक में पत्रकारिता का गुण कुछ कम भी हुआ तो चलेगा। यहां से खबरें मैनेज होने लगीं। खबरों का जन संदर्भ...

Some rare photos of Dev anand

Dev anand sahab with Sadhna in '' ASLI NAQLI'' Dev Anand sahab in a pensive mood during the filming of '' MAIN SOLAH BARAS KI'' in Scotland  Mr. Dev anand with his leading lady Sabrina ( who he introduced ) in '' MAIN SOLAH BARAS KI'' in Jaipur.  Dev sahab with SD Burman, Kishor kumar, Lata ji, poet Neeraj and RD Burman during the recording of ''PREM PUJARI''.  Dev sahab with Zeenat Aman in '' ISHK ISHK ISHK'' against the background of  Mt. Everst in 1976.  Dev sahab with Madhubala in '' KALA PANI''.  Dev sahab with Kalpana Kartik in ''HOUSE NO 44" Dev sahab with Geeta Bali in '' BAAZI'' Dev sahab in '' HUM DONO'' Dev sahab with Mumtaaz in '' HARE RAMA HARE KRISHNA''.  Dev sahab with Tina Munim ( who he introduced) in '' DES PARDES'' Dev sahab with Waheeda Rahman in ''GUIDE'...