कालीघाट की मुख्य सड़क छोड़कर गाड़ी जैसे ही हरीश चटर्जी लेन की पतली सी सड़क में घुसी.....मुहाने पर दस बाय दस के एक छोटे से कमरे में ममता बनर्जी का एक बड़े पोस्टर को कैनवास पर रंगता पेंटर दिखा। बेहद मगन होकर इस्माइल तृणमूल कांग्रेस के चुनाव चिन्ह 'तीन पत्तियों' में उस वक्त जामुनी-गुलाबी रंग को उकेर रहा था। ड्राइवर इशाक ने बताया, यह ममता की गली है। संकरी गली । इतनी संकरी की सामने से कोई भी गाड़ी आ जाये तो एक साथ दो गाड़ियों का निकलना मुश्किल है।ममता की गली के किनारे पर पेंटर की दुकान है तो हाजरा चौक पर निकलती इस गली के दूसरे छोर पर परचून की दुकान है। जहां दोपहरी में अतनू दुकान चलाता है। बीरभूम में बाप की पुश्तैनी जमीन थी, जिसे कभी सरकार ने कब्जे में ले लिया तो कभी कैडर ने भूमिहीनों के पक्ष में आवाज उठाकर कब्जा किया। स्थिति बिगड़ी तो इस परिवार को कलकत्ता का रुख करना पड़ा। ये परिवार कालीघाट में दो दशक पहले आकर बस गया । हरीश चन्द्र लेन यानी ममता गली में ऐसा कोई घर नहीं है, जिसके पीछे दर्द या त्रासदी ना जुड़ी हो। बेहद गरीब और पिछड़े इलाके में इस मोहल्ले का नाम शुमार है। सवाल है कि इसक
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर