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नवंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

टच वुड

धीरे धीरे अब मौसम सर्द होने लगा है  कमरे में आने वाली धूप अब अलसा गयी है  गहरे रंग के कपड़ों से आलमारी भर गयी है  ऊनी कपड़ों से आती नेफ्थलीन की महक तैर रही है  कमरे में  सुबह देर तक तुम्हारे आलिंगन में  बिस्तर पर पड़ा हूँ  ना तुम उठना चाहती हो  ना मैं  देखो हम साथ खुश हैं  तुम हर बार की तरह कहती हो टच वुड  मैं भी कहता हूँ  टच वुड  तुम्हारे साथ घर तक का सफ़र हमेशा लम्बा लगता है  हाँ, जब इसी रास्ते से  स्टेशन जाता हूँ तो राह छोटी हो जाती  मैं देर तक तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ  हम हमेशा साथ रहेंगे  तुम फिर कहती हो  टच वुड  मैं भी तुम्हारे साथ कहता हूँ  टच वुड  एक रिश्ते का ऐसा उत्सव  विकल्पहीन है यह सौंदर्य  तुम्हारी पतली ऊंगलियों के बीच में  अपनी ऊंगलियों को डाल कर  कितना कुछ पा जाता हूँ मैं  तुम्हारे चेहरे पर तैरती हंसी भी  बहुत अच्छी लगती है  इस बार मैं पहले कहूँगा  टच वुड  बोलो  अब तुम भी बोल...

माँ अब व्यस्त है

दो-चार दिनों पहले धूप सर्द सी लगी थी पड़ोस की एक महिला ने भी बताया था कि सर्दी आ गयी है  माँ अब व्यस्त है  बक्से में रखे  कम्बल, स्वेटर और मफलर निकालने में  वो इसे धूप में रखेगी  कई बार उलटेगी पलटेगी  भागती धूप के साथ  चटाई भी बिछाएगी  वो जानती है बच्चों को नेफ्थलीन की महक पसंद नहीं  वो पूरी तरह से इत्मीनान कर लेना चाहती है  बच्चों को खुश रखने का  कई बार बोल बोल कर आखिरकार वह पहना ही देगी  बच्चों को स्वेटर  इस बार अपनी पुरानी शाल में  अपना पुराना कार्डिगन पहने  वो सोचती रहेगी  बच्चों के लिए  एक नया स्वेटर लेने के लिए. 

हंगामा है क्यों बरपा

प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के चेयरमैन मार्कण्डेय काटजू का भारतीय मीडिया के संबंध में दिया गया बयान आजकल चर्चा में है। हैरानी इस बात की है कि जो लोग काटूज के न्यायाधीश के रूप में दिये गये फैसलों पर खुशी जताते थे आज उन्हीं में से कई लोग काटजू को गलत ठहरा रहे हैं। शायद सिर्फ इसलिये कि इस बार मार्कण्डेय काटजू ने उन्हीं लोगों को आईना देखने की नसीहत दे दी है। मुझे नहीं लगता है कि आईना देखने में कोई हर्ज है। आज भी प्रबल धारणा यही है कि आईना सच ही बताता है। ऐसे में भारतीय मीडिया इस अग्निपरीक्षा को स्वयं स्वीकार करे तो अच्छा होगा।   भारत के लोकतंत्र की नींव में घुन तो बहुत पहले ही लग था लेकिन बात तब और बिगड़ी जब लोकतंत्र के चैथे स्तंभ पर काई लग गई। खबरों का आम जनता के प्रति कोई सरोकार नहीं रहा। खबरों के लिहाज से देश कई वर्गों में बंट गया। खबरों का भी प्रोफाइल होने लगा। किसी ग्रामीण महिला के साथ बलात्कार कोई मायने नहीं रखता बजाए इसके कि किसी नामचीन व्यक्ति ने तेज गति से गाड़ी चलाई हो। मानवीय दृष्टि से महिला के साथ बलात्कार की घटना अधिक महत्वपूर्ण है लेकिन प्रोफाइल के नजरिये से नामचीन व्यक्ति ...