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‘देश‘ की जनता पत्थरों के नीचे दब रही है और नेता अपने ‘राज्य‘ के लोगों को बचाने के लिए कुत्तों की तरह लड़ रहे हैं। देहरादून मंे सिस्टम के सड़ने की बू तो बहुत पहले से आ रही थी लेकिन हमारे सिस्टम में कीड़े पड़ चुके हैं यह केदारघाटी में आए सैलाब के बाद पता चला। उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा आने के बाद एक-एक करके सियासी चोला ओढ़े कुकरमुत्ते देहरादून में पहुंचने लगे। उत्तराखंड में आपदा राहत के लिए भले ही इनके राज्यों ने हेलिकाप्टर न भेजे हों लेकिन चुनावी तैयारी को ध्यान में रखकर अपने अपने ‘वोटों‘ को बचाने के लिए सियासी ‘दलाल‘ पहुंच गए। इसके बाद शुरू हुआ इंसानों को बांटने का काम। केदारघाटी से लेकर ऋषिकेश तक देश की जनता को बांट दिया गया। कोई आंध्रा वाला हो गया तो कोई गुजरात वाला। इसके बाद जिंदगी का बंटवारा भी शुरू हो गया। आपदा में फंसे लोगों को उनके प्रदेश के आधार पर बचाया जाने लगा। अपने अपने राज्यों से आए सफेदपोशों ने अपने अपने राज्य के लोगों को बचाने के लिए हेलिकाप्टर से लेकर बसें तक लगाईं। किसी को यह याद नहीं रहा कि भारत के लोगों को बचाया जाए। नेताओं ने न सिर्फ भारत के संविधान की आत्मा को बांट दिया बल्कि जिसने लिखा था कि ‘हम भारत के लोग‘ को भी बदल दिया। अब तो ऐसा लगता है जैसे हर राज्य का अपना अलग संविधान हो गया है। ‘हम आंध्र प्रदेश के लोग‘, ‘हम गुजरात के नागरिक‘।
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