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संदेश

कर्नाटक में पूजा, मुंबई में बारिश

आजकल पूरे देश में बारिश के लिए यज्ञ और हवन का दौर चल रहा है......पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक और आन्ध्र में बहुत बड़े स्टार पर पूजा पाठ हो रहें हैं....ताकि भगवान खुश हो और बारिश हो...लेकिन बारिश हो कहाँ रही है मुंबई में...वोह भी इतनी की लोगों का जीना मुहाल हो जा रहा है.....अब इसे आप क्या कहेंगे? भगवान से मांग कोई रहा है भगवान दे किसी को रहा है.....वोह भी इतना की रखने की जगह ही नहीं मिल रही है यानि छप्पर फाड़ के.....अब डेल्ही हाई कोर्ट के फैसले को ही ले लीजिये...मैं कोर्ट का पूरा सम्मान कर रहा हूँ उसके निर्णय को सिर चूका कर मान रहा हूँ...लेकिन फिर भी देखिये न अधिकार चाहिए किसे और मिला किसे......अब भला समलैंगिक, वैधानिक मान्यता पाकर क्या नया करेंगे.... बलात्कार कानून में बदलाव की गुंजाईश है..पर मामला ठंडे बस्ते में है....माँगा किसने मिला किसे...बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई में लगने वाली देरी और तमाम परेशानियाँ कब ख़तम होंगी कौन जाने? यहाँ तो पूरा इंडिया को समलैंगिकों को कानूनी मान्यता मिलने पर यूं खुश दिखाया जा रहा है मनो हर नागरिक वही है.....बालीवुड की ख़ुशी तो बेहद अजीब है....नाचो इंडि...

उम्र का क्या दोष

क्यों हवाला देते हो उम्र का उम्र का क्या दोष आखिर इसे भी तो बचपन पसंद है यह मजबूरी इसकी भी तो है यह खुद को बढ़ने से रोक नहीं सकती हर वक़्त हर पल यह बढ़ रही है इसमें क्या गलती है इसकी हाँ तुम चाहो तो खुद को अपनी उम्र से अलग कर लो फिर तुम्हे बूढे होने का डर नहीं होगा लेकिन रुको जरा यह भी तो सोचो इसी उम्र ने ही तो तुम्हे सुख दिया है बचपन का फिर कैसे अलग करोगे रहने दो इस उम्र को अपने साथ शायद फिर बचपन लौट आये....... आशीष तिवारी

ज्ञानमती का हौसला

यूँ तो ज़िन्दगी हर कदम एक नई ज़ंग होती है... लेकिन इस ज़ंग को जीत पाने का हौसला कम ही लोगों में होता है..वोह भी तब जब ज़िन्दगी कि ज़ंग को लड़ने वाला कोई महिला हो.... उससे उसके ही समाज ने बहिष्कृत कर दिया हो और वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो... हाँ ठीक पढ़ा आपने वोह एच आई वी पोजिटिव भी हो....यह दांस्ता है बनारस के ज्ञानमती की.... ज्ञानमति युवा हैं...उच्च शिक्षा प्राप्त है...ज्ञानमती ने एमएस सी किया उसके बाद एम बी ए भी कर चुकी हैं....देखने में ज्ञानमती कहीं से भी किसी आम लड़की से अलग नही लगती हैं...लेकिन हमारा सभ्य समाज इन्हे अलग मानता है... जानते हैं क्यों क्योंकि ज्ञानमती को एड्स है .... ज्ञानमती को एड्स कैसे हुआ यह एक दर्दभरी कहानी है..दरअसल ज्ञानमती को सिजोफेर्निया कि बीमारी हो गई थी.... ..इसी बीमारी में ज्ञानमती के साथ हुयी एक दुर्घटना ने ज्ञानमती को एच आई वी पोजिटिव बना दिया...(पत्रकारिता के धर्मं को मानते हुए में ज्ञानमती के साथ हुए अपने समस्त वार्तालाप को यहाँ नही लिख सकता हूँ) जब बिमारी के इलाज के दौरान ज्ञानमती को यह पता चला कि वोह एच आई वी पोजिटिव हो गई हैं तो उनके ऊपर मानो पहाड़ ट...

इंसानियत की इबादतगाह

आज आपको एक ऐसी इबादतगाह के बारे मैं बताता हूँ जहाँ दरअसल इंसानियत की पूजा होती है....यह इबादतगाह है हमेशा से अपनी गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाने जाये वाले शहर बनारस में है....बनारस के चौक इलाके की एक तंग गली...इसी गली में है यह इबादतगाह....मैं बात कर रहा हूँ अनार वाली मस्जिद का.....इसको अनार वाली वाली मस्जिद कहने के पीछे कारण है इस मस्जिद में लगा अनार का पेड़....इसी पेड़ के चलते इस मस्जिद का नाम अनार वाली मस्जिद पड़ गया......यह एक छोटी सी मस्जिद है.....एक तरफ नमाज़ अदा करने के लिए एक छूता सा कमरा बना है तो वहीँ दूसरी ओर चार दरवेश को जगह मिली हुई है.......एक छोटा सा ही आँगन जहाँ किनारे में लगा अनार का पेड़ पूरी मस्जिद को अपने साये तले लिए हुए है.....इस मस्जिद के साथ जुडी हुई एक ख़ास बात यह है की इस पूरी मस्जिद की देखभाल एक हिन्दू के हाथ में है....लम्बी दाढी और लम्बे लम्बे बाल वाले बेचन बाबा....यही नाम है उस शख्स का जो इस मस्जिद की देखरेख करता है....बेचन बाबा यहाँ झाडू लगाने से लेकर नमाज़ अदा करने तक की हर जिम्मेदारी को उठातें हैं.......बेचन बाबा इस काम को पिछली चार पीढियों से कर रहें...

बाल संसद

आज आपको एक ऐसी संसद के बारे में बता हूँ जिसके बारे में आपने कभी नही सुना होगा....बात कर रहा हूँ दुनिया की पहली और एकलौती बाल संसद के बारे में....यह बाल संसद वाराणसी में है...इसके निर्माण में एक एन. जी.ओ. विशाल भारत संस्थान की मुख्य भूमिका है ...साथ ही वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश दुबे और अजय सिंह ने भी इस बाल संसद की अवधारणा को ज़मीन पर उतारने में प्रमुख रोल अदा किया है.... वाराणसी की यह बाल संसद पूरी तरह से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को पर आधारित है...इस बाल संसद में ६ से १३ साल का कोई भी बच्चा सम्मिलित हो सकता है...इस संसद की सभा में वाराणसी क्षेत्र से तीन विधयक और एक सांसद चुना जाता है....बाल संसद का प्रतिनिधत्व करने वालों को एक आचार संहिता को मानना पड़ता है..जैसे उसकी उम्र ६ से १३ साल के बीच हो..वोह अपने घर और क्षेत्र में ब्लैक लिस्टेड नही होना चाहिए...इसी तरह के कुछ और नियम है जिन्हें मनने वाला ही इस बाल संसद में सांसद या विधायक के लिए अपनी दावेदारी कर सकता है...जब इस संसद का चुनाव होता है तो लोकतान्त्रिक प्रणाली का पूरा ध्यान रखा जाता है....बच्चे अपने वोट से अपने विधायक और सां...

सवाल है जवाब नही

आज मन बहुत परेशान है.....बार बार पुण्य प्रसून बाजपाई का एक इंटरव्यू जेहन में आ रहा है...यह इंटरव्यू उन्होंने हालाँकि लगभग एक साल पहले एक वेब मैगजीन को दिया था.....लेकिन उसकी याद आज भी मुझे एकदम ताज़ा है...दरअसल उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा था की आज के पत्रकारों को शीशे के ऑफिस में बैठकर दुनिया देखने की आदत है....उन्हें अच्छी सैलरी चाहिए लेकिन पत्रकारिता नही करनी है.....मैं अभी नेशनल मीडिया में नया हूँ..हालाँकि जिस मीडिया में मैं हूँ वोह भी अभी इस देश के लिए पुराणी नही कही जा सकती है....जाहिर है बात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हो रही है....मैंने एस पी सिंह को बहुत नही जाना लेकिन पुण्य प्रसून बाजपाई को थोड़ा बहुत देख रहा होऊँ...भी एस पी सिंह के सहयोगी रहें हैं....सो इन्ही से कुछ पुरानी होती इस नई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखने के प्रयास कर रहा हूँ.....खैर बात दूसरी ओरे ले चलता हूँ....मुझे नेशनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जितना भी अनुभव हुआ उसमे मुझे अच्छे कम बुरे अनुभव अधिक मिले...इससे मेरा सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर वाराणसी में अपना पहला एक्सपेरिएंस लिया...जिस चैनल में थ...

गंगा में रेत के टीले

देव नदी गंगा को लेकर मेरी चिंता बढती जा रही है.कम से कम बनारस की जो स्तिथि मैं देख रहा हूँ वोह इस गंगा की दुर्दशा को साफ़ बयां करता है-लेकिन अफ़सोस की बात है की इस तरफ़ जितना ध्यान होना चाहिए उतना है नही.....गंगा में रेत के टीले निकल आयें हैं...गंगा की छाती पर निकले यह बड़े बड़े टीले गंगा को मिले घाव की तरह हैं......दरअसल गंगा के प्रवाह से हुए छेड़छाड़ और अत्यधिक पानी निकाले जाने से गंगा की यह दुर्दशा हो है....बात बनारस की ही ले ली जाए तो गंगा की हालत समझ में आ जायेगी....गंगा बनारस में जैसे ही प्रवेश कर रही है वहां पर गंगा मुडती है....यहाँ गंगा का प्रवाह बिना किसी बाधा के होना चाहिए था लेकिन यहाँ बना दिए गएँ पुल हैं...एक पुल तो बन चुका है और दूसरा अभी निर्माणाधीन है..इन दो पुलों के कारन गंगा का प्रवाह बाधित हो रहा है..नतीजा गंगा में आने वाला बालू यहाँ पर आकर इकट्ठा होता जा रहा है...बालू यह टीले अब बेहद बड़ा आकर ले चुके हैं..इन टीलों ने गंगा की धारा को दो भागों में बाँट दिया है.....अपने पुराने घाटों से गंगा लगातार दूर होती जा रही है....अब बनारस के बेहद महत्वपूर्ण और प्रशिध घाट को ही ले...
स्वर्ग से धरती पर उतरी देव नदी गंगा अब अपनी दयनीय स्थिती पर रो रही है...धर्मं और समाज के ठेकेदार इस देव नदी की सुध लेने की कौन कहे उसके नाम पर लूट खसोट में लिप्त हैं....आप को बनारस की बात बताता हूँ....बनारस यानि काशी॥यानि वाराणसी....यानि आनंदवन....इस बनारस में गंगा उलटी बहती है.....जी हाँ बनारस में गंगा उलटी बहती है..यहाँ गंगा उत्तर की ओ़र बहती है यहाँ गंगा का आकर भी बहुत खूबसूरत है..बनारस में गंगा अर्धचन्द्राकार रूप में है.....यानि एक छोर से खड़े होके अगर देखा जाए तो दूर तक गंगा और उसके किनारे बने लगभग ८० घाट एक पंक्ति में दिखाई देते हैं.....यही खूबसूरत नज़ारा देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं.....देशी विदेशी पर्यटक इन पक्के घाटों का मनोरम नज़ारा देख आशर्यचकित हो जाते हैं....वास्तु की दृष्टि से भी यह घाट बेहद महत्वपूर्ण हैं...लेकिन अब इन घाटों पर अब एक बड़ा खतरा आन पड़ा है....नदी वैज्ञानिक मान रहें हैं की यह घाट अब धीरे धीरे धंसते चले जायेंगे....यानि आनेवाला समय इन घाटों के लिये भयावह साबित हो सकता है .....गौर करने वाली बात यह है की इन घाटों की दुश्मन बनी है गंगा...वही गंगा जो कभी इन घाटों...

यही है बनारस

हमें ग़ुस्सा क्यों आता है ?

कुछ लोगों को औरों की अपेक्षा जल्दी ग़ुस्सा आता है और कई लोगों को तो इतना तेज़ ग़ुस्सा आता है कि वो सभ्यता की सभी सीमाएं लांघ जाते हैं.एक नए शोधकार्य का निष्कर्ष है कि कुछ लोगों को ऐसा ग़ुस्सा उनके मस्तिष्क में कुछ ख़राबी की वजह से आता है.अमरीकी मनोवैज्ञानिकों की राय में ग़ुस्से में नियंत्रण खो बैठने वाले लोग, या वो पुरुष जो अपनी पत्नी के साथ हिंसक व्यव्हार करते हैं, अपने मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से ऐसा करते हैं.एक लंबे अरसे से डॉक्टर ये भी कहते रहे हैं कि सिर पर लगी चोटें भी इस प्रकार के ग़ुस्से का एक कारण हो सकती हैं.लेकिन पहली बार अनियंत्रित ग़ुस्से को मस्तिष्क के काम करने के तरीक़े से जोड़ कर देखा जा रहा है.अमरीका में चिलड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ़ फ़िलेडेल्फ़िया के वैज्ञानिकों ने इस बारे में एक महत्वपूर्ण खोज की है.इन वैज्ञानिकों ने ऐसे मनोरोगियों के मस्तिष्क का अध्ययन किया जो इंटरमिटंट एक्सप्लोज़िव डिसऑर्डर (आईईडी) से पीड़ित हैं.इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अनजाने में अनियंत्रित ग़ुस्सा आ जाता है. कई बार हम देखते हैं कि भीड़ भरी गाड़ी में या लंबी क़तार में लगे कुछ लोग आसानी स...