ये वाक्या सन 1978 का है। मध्य प्रदेश के एक वकील हुआ करते थे मोहम्मद अहमद खां। साहब हुजूर ने अपनी पहली शादी को 14 साल गुजारने के बाद दूसरी शादी कर ली। बाद में अपनी पहली बीवी को तलाक दे दिया। अपने पांच बच्चों को लेकर ये महिला अपने पति से अलग हो गई। यही वो महिला थी जिसने तीन तलाक के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठायी। इस महिला का नाम था शाह बानो। नई शादी करने के बाद वकील अहमद ने कुछ दिनों तक शाह बानो को गुजारा भत्ता दिया। बाद में देना बंद कर दिया। शाह बानो उस वक्त साठ साल की उम्र पार कर चुकी थीं। शाह बानो ने गुजारा भत्ता के लिए निचली अदालत में अपील दायर की। ये 1978 की गर्मियों की बात रही होगी। वकील साहब ने इस्लाम की आड़ लेकर होशियारी दिखाई और शाह बानो को तीन तलाक दे दिया। इसके बाद अहमद खां ने कोर्ट से कहा कि अब वो उनकी बीवी हैं ही नहीं तो गुजारा भत्ता देने का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि इसके बावजूद कोर्ट ने 1979 में अहमद खां को शाह बानो को भत्ता देने का आदेश सुनाया। शाह बानो (pic by - scroll.in) 1980 में शाह बानो अपना भत्ता बढ़वाने के लिए ...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर