पिछले कुछ सालों में पत्रकारिता में जिन बदलावों को देखा उन्हें अब महसूस कर रहा हूँ....प्रिंट से लगायत इलेक्ट्रोनिक तक अब तस्वीर बदल रही है....जब मैं मॉस कॉम कि डिग्री लेकर निकला था तो लगता था कि बहुत बड़ा तीर मार लिया है...लेकिन बाद में समझ में आया कि जुगाड़ डिग्री के अभाव में सारी योग्यता बेमानी होती है.....पत्रकारिता कि डिग्री हाथ में थी और पैर नॉएडा के सेक्टर १६ कि सड़कों पर....इंडिया टीवी से लेकर जी न्यूज़ तक रिज्यूमे सिक्यूरिटी गार्ड को पकड़ा कर लौटता रहा.....शीशे कि बड़ी बड़ी खिडकियों से देख कर देश के गरीब लोगों कि तस्वीर दिखाने वाली इमारतों से जब कोई निकलता तो सोचता कि काश इसकी नज़र मुझ पर पड़ जाती तो मैं भी स्टार रिपोर्टर हो जाता...लेकिन इस सब के बीच कहीं कोई पराड़कर नहीं दिखा....काम काज के लिहाज से एक छोटे अखबार में जब उठने बैठने लगा तो कुछ आड़ी तिरछी लाइने भी खीचने लगा.....लेकिन जम नहीं सका लिहाजा वापस बनारस आ गया...लेकिन बनारस से ले कर दिल्ली तक चीज़ें साफ़ समझ में आने लगी....ख़बरों को जनमानस कि उपयोगिता के हिसाब से नहीं बल्कि प्रोफाइल के हिसाब से देखा जा रहा है....भारतीय मीडि
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर