मानिए या न मानिए लेकिन एहसास दिल्ली को हो रहा
होगा कि अरंविद केजरीवाल को इतना बड़ा जनमत देना उनकी भूल थी। दिल्ली के विकास के
लिए छटपटाने का दावा कर रहे अरविंद केजरीवाल का जितना ध्यान मनपसंद अफसरों की
तैनाती करने, कांग्रेस की गलतियां गिनने और उपराज्यपाल से विवाद में है उसका आधा
भी वो सही माएने में दिल्ली पर देते तो सूरत के बदल जाने का एहसास होने लगता। हैरानी
होती है अरविंद केजरीवाल को देखकर। दिल्ली अपनी आने वाली पीढ़ियों को ये कैसे बता
पाएगी कि उसके अरविंद केजरीवाल को चुनने की वजह क्या थी। सवाल ये भी उठेगा कि
अरविंद केजरीवाल को बदलने से दिल्ली क्यों नहीं रोक पाई और इस प्रयोग से दिल्ली को
मिला क्या।
सरकार में आते ही अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पूरा ध्यान कांग्रेस
सरकार की गलतियों तलाशनें में लगा दिया। हालात ये हैं कि अभी तक दिल्ली की अरविंद
केजरीवाल की सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान होने वाले विकास कार्यों का
खाका सार्वजनिक नहीं कर पाई है। अफसरों की तैनाती के विवाद इस बात की तस्दीक कर
रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की सरकार का ध्यान अपने मुताबिक अफसरों की तैनाती पर
अधिक है। हम ये मान सकते हैं कि अफसरों के कुनबे का कुछ हिस्सा जनता के साथ जुड़ाव
न रखता हो लेकिन सभी अफसर बेकार हैं ये
मानना मुश्किल है। अफसरों की इसी फौज ने दिल्ली की सूरत को खूबसूरत बनाया है। ऐसे
में अरविंद अफसरों से इतने नाराज क्यों है ये समझ से परे है। अरविंद केजरीवाल में
एक अच्छा प्रशासक होता तो बेईमान अफसर भी ईमानदारी से काम करने के लिए बाध्य होता।
अरविंद केजरीवाल के पास मौका था लेकिन वो स्वयं
को औरों से अलग साबित करने में असफल होते नजर आ रहे हैं। जंतर मंतर में उनकी
मौजूदगी में किसान की आत्महत्या ने भी समाज में उनके मौका परस्त हो रहे व्यवहार को
साबित किया है। आंदोलन में अरविंद के खास सहयोगी रहे योगेंद्र यादव को जिस तरह से
पार्टी ने किनारे किया उस कार्रवाई को सभी ने हिटलरशाही की ही संज्ञा दी क्योंकि
यही मुफीद लगा। इस देश के कई मौका परस्त नेताओं और पार्टियों की ही तरह अब अरविंद
केजरीवाल भी राजनीतिक तरण ताल में अर्द्ध नग्न तो नजर आने ही लगे हैं।
अरविंद केजरीवाल के कानून मंत्री की करनी को
उदाहरण के तौर पर लें तो साफ होता है कि केजरी बाबू के इर्द गिर्द झूठ का कारोबार
सीना ठोंक कर हो रहा है। अरविंद केजरीवाल अपने सहयोगियों को भी ये संदेश देने में
नाकाम रहे हैं कि आप की ईमानदारी पर दाग बर्दाश्त नहीं है।
सुचिता के साथ चलने वाली पारदर्शक सत्ता व्यवस्था
जनता का दिल बहुत जल्दी जीत सकती है। भारतीय लोकतंत्र की यही खूबी है। भारतीय
लोकतंत्र सत्ता को दण्डित करने में भी सक्षम है। अरविंद केजरीवाल की 67 सीटों वाली
सत्ता का भी दिल्ली की जनता पांच साल बाद फाइव फिंगर टेस्ट करेगी। जिस टू फिंगर
टेस्ट से केजरी बाबू की सत्ता का चरित्र पता चल रहा है कहीं फाइव फिंगर टेस्ट में वो
चरित्र पूर्णरुपेण सत्य न साबित हो जाए। संभलिए, केजरी बाबू।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-06-2015) को "बनाओ अपनी पगडंडी और चुनो मंज़िल" {चर्चा अंक-2007} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक