भोजपुरिया माटी के लोगों ने बचपन में ज़रूर ही खेल कूद के दौरान कई पद्यांश को सुना या बोला होगा..इनमे से कई लोग ऐसे होंगे जिनके शायद यह पद्यांश पूरी तरह याद ना हो या ज़िन्दगी कि भाग दौड़ में इसे भूल गएँ हो..ऐसे ही एक पद्यांश कि कुछ पंक्तियाँ आप लोगों के लिए लिख रहा हूँ ..पढ़िए और अपने माटी को याद करिए.....हाँ कुछ लोगों को मैं यह सलाह ज़रूर देना चाहूँगा कि भूल कर भी इसका हिंदी या अंग्रेजी में अनुवाद करने कि कोशिश ना करें........
ओका बोका तीन तड़ोका
लउवा लाठी चन्दन काठी
इजई विजई पान फूल
पचका द.....
अथेला बथेल
कवन खेल
जटुली खेल
केकरा में गेल .....
का चान का सुरुज
कतना में कतना/ बिगहा पचीस
हगे का
मूस के लेड़ी
तेल कतना
ठोपे- ठोप......
तार काटो तरकूल काटो
काटो रे बरसिंगा
हाथी पर के घुघुरा
चमक चले राजा
राजा के रजईया काटो
हिंच मरो हिंच मरो
मुसहर के बेटा.....
ओका बोका तीन तड़ोका
लउवा लाठी चन्दन काठी
इजई विजई पान फूल
पचका द.....
अथेला बथेल
कवन खेल
जटुली खेल
केकरा में गेल .....
का चान का सुरुज
कतना में कतना/ बिगहा पचीस
हगे का
मूस के लेड़ी
तेल कतना
ठोपे- ठोप......
तार काटो तरकूल काटो
काटो रे बरसिंगा
हाथी पर के घुघुरा
चमक चले राजा
राजा के रजईया काटो
हिंच मरो हिंच मरो
मुसहर के बेटा.....
कुछ क्षेत्रीय परिवर्तन के साथ यह बाल कविता हर जगहं प्रचलित है पूर्वांचल में !
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