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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक बार याद उन्हें भी कर लिया होता।

जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में जितनी बार नाम राहुल गांधी का लिया गया अगर उसका एक फीसदी हेमराज और सुधाकर को याद किया होता तो शायद हमें गर्व होता कि हमारे देश पर कांग्रेस ने कई साल तक राज किया है। हैरानी होती है कि कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के नेताओं ने विदेश और रक्षा नीति पर एक भी नोट जारी नहीं किया। जबकि मुल्क का एक बड़ा तबका ये उम्मीद लगाए बैठा था कि कांग्रेस सबसे पहले सुधाकर और हेमराज के मुद्दे पर अपना बयान जारी करेगी।  आखिर सुधाकर और हेमराज को याद न करने की मजबूरी कांग्रेस के लिए क्या हो सकती है। ये तो कांग्रेस के नेता ही जाने लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस के इस रवैए से शहीदों के प्रति उसके चरित्र का पता चल गया है। कांग्रेस से उम्मीद थी कि कम से कम राहुल बाबा के ही जरिए कांग्रेस इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करेगी। लेकिन कांग्रेस चुप रही।  मुझे लगता है कि कांग्रेस के पास कहने के लिए बहुत कुछ था भी नहीं। कांग्रेस और कांग्रेसी दोनों ही महज इस बात के चिंतन में लगे रहे कि राहुल को कैसे आगे लाया जाए। कांग्रेस इस देश की ही दुनिया की एक बड़ा राजनीतिक पार्ट...

बोलिए बाबा राहुल की जय

राजस्थान में कांग्रेस का चिंतन शिविर चल रहा है। कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता इन दिनों एक साथ चिंतन शिविर के ही बहाने सही एक जगह बैठ तो गए ही हैं। लोग बाग न जाने इन नेताओं को क्या क्या कह रहे हैं। चोर, उच्चके, चापलूस, वादाखिलाफ और न जाने क्या क्या। लेकिन मैं इन संबोधनों से जरा सा भी इत्तफाक नहीं रखता। हुजूर आप भी नहीं रखते होंगे। क्योंकि इन नेताओं को तो शायद इससे भी कोई बड़ा संबोधन मिलना चाहिए। खैर छोडि़ए हम इस चिंतन में न पड़े तो ही अच्छा।  कांग्रेस को अपने इस चिंतन शिविर का नाम शायद कुछ और रखना चाहिए था। शायद 'राहुल शिविर', 'मीट विथ राहुल बाबा', 'हाउ टू मेक राहुल बाबा अ पालिटीशियन' या कुछ ऐसा ही। ताकि इस देश के लोगों को पता तो चल जाता कि कांग्रेस का मतलब अब सिर्फ राहुल गांधी ही रहा गया है। इससे आगे और पीछे कुछ नहीं। चिंतन शिविर में कांग्रेस के नेता कहां तक तो दुनिया की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को और मजबूत बनाने की कोशिश करते तो वो महज गणेश परिक्रमा में ही लगे हुए हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी राजनीतिक पार्टी की क्या जवाबदेही हो सकती है इसके ब...

हिना रब्बानी खार, खैरियत मनाओ कि हिंदुस्तान में गांधी पैदा हुआ था

शक्ल खूबसूरत, सीरत बदसूरत मैडम हिना रब्बानी खार कह रही हैं कि भारत युद्ध पर आमादा है। बड़ा हैरतअंगेज और हास्यास्पद बयान ये है। मैडम साहिबा को विदेश मामलों का कितना ज्ञान है ये तो नहीं पता लेकिन इतना जरूर है कि मैडम को अपना लुक बनाए रखने का पूरा ध्यान रहता है। 1977 में जब मैडम हिना का जन्म हुआ उसके बाद उन्होंने आज तक उन्होंने कोई वास्तविक जंग देखी भी नहीं। हां, ये जरूर है कि कारगिल की जंग उन्होंने जरूर देखी होगी। हालांकि उस वक्त मैडम हिना महज 22 साल की ही रहीं होंगी। और उन्हें जंग की कितनी समझ रही होगी ये आप और हम समझ सकते हैं। मैडम की कुल जमा उमर अब भी 36 ही है। अब 36 की उमर में वो न तो 47 की समझ सकती हैं, न 65 को समझ सकती हैं, न 71 को। मैडम हिना ने मैसाच्युट्स यूनिवर्सिटी से व्यापार प्रबंधन में एमएससी की डिग्री ली है। मैडम पहले पाकिस्तान में वाणिज्य मंत्रालय संभाला करती थीं। कुछ दिनों से भारत के साथ रिश्ते सुधारने में लगा दी गईं हैं।  यहां भारतीयों का सौंदर्य प्रशंसक होना भी मैडम के ऐसे बयानों की वजह है। मैडम जब भारत आईं तो भारतीय मीडिया ने उनकी जो ग्लैमरस छवि पेश की, कि बस ...

दिन गलती गिनाने के नहीं पीएम साहब सबक सिखाने के हैं

ठीक ठाक से चुप रहने वाले जब पीएम मनमोहन सिंह जी ने पाकिस्तान की तरफ से  हो रही बर्बरता पर मुंह खोला तो लगा कि पीएम साहब का बयान पाकिस्तानी  राजदूत को सामने बैठाकर टाइप कराया गया है। बयान तैयार कराते वक्त एक एक  लाइन के बाद पाकिस्तानी राजदूत से पूछा गया होगा कि ठीक है न भाई साहब  कोई गलती तो नहीं है। कहीं कुछ अधिक तो नहीं हो रहा। फिर पाकिस्तान के  राजदूत ने कहा होगा कि आप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि हमने गलती की।  पाकिस्तानी राजदूत ने कहा होगा कि आप लिखिए कि आप अपनी गलती को मानिए।  इसके बाद पाकिस्तान कहेगा कि हमने कोई गलती की ही नहीं तो मानने का तो  सवाल ही नहीं उठता। बस हो गया काम। न भारत के पीएम को चुप रहने पर ताना  सुनना होगा और न ही पाकिस्तान को गलती मानने की जरूरत होगी। शायद पड़ोसी  के साथ रिश्ते सुधारने का इससे बेहतर तरीका हो भी नहीं सकता।  यूं भी इस मुल्क का मुस्तकबिल कुछ ऐसा ही रहा है। हम कहने को शेर हैं  लेकिन गीदड़ों की धमकियों से मांद में छुप जाते हैं। इसके बाद शांती पसंद  होने का हवाला देकर अपनी इज्जत बचाने की कोश...

माफ करना हेमराज इस देश के लोग तुम्हारे लिए इंडिया गेट पर नहीं आ सकते।

यकीनन ये सोच कर दुख होता है लेकिन ये सोचना तो पड़ेगा ही। एक छोटा सा सवाल है कि क्या इस देश की सरहद को सलामत रखने वालों का सिर हमारे लिए अहमियत नहीं रखता ? क्या हमारे जवान का सिर इस लायक भी नहीं कि उसके लिए इंडिया गेट पर नहीं उतर सकते ?  हमारे देश में भ्रष्टाचार है इसमें कोई दो राय नहीं है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी इससे प्रभावित होती है इसमें भी कोई दो राय नहीं है। हमारा गणतंत्र, भ्रष्टतंत्र में बदल चुका है लिहाजा हमारी नाराजगी जायज है। इस भ्रष्टाचार की ही देन है कि हमें अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव के दर्शन हुए। इस देश में लाखों लोगों ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए देश के अलग अलग हिस्सों में कभी धरना दिया तो कभी प्रदर्शन किया। हमारा हासिल हमें अभी पता नहीं। फिलहाल हम खुश हैं कि हमने आवाज तो उठाई।  दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप हुआ तो देश उबल पड़ा। युवाओं की बड़ी संख्या देश के अलग अलग हिस्सों से इंडिया गेट पर आई और आवाज उठाई। पत्थरों से घिरे लोकतंत्र पर ऐसी चोट लोक की हुई कि पूरा तंत्र हिल गया। देश में एक नई बहस शुरू हो गई।  लेकिन इस सबके बाद ये सवाल ...