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कांग्रेस को अपने इस चिंतन शिविर का नाम शायद कुछ और रखना चाहिए था। शायद 'राहुल शिविर', 'मीट विथ राहुल बाबा', 'हाउ टू मेक राहुल बाबा अ पालिटीशियन' या कुछ ऐसा ही। ताकि इस देश के लोगों को पता तो चल जाता कि कांग्रेस का मतलब अब सिर्फ राहुल गांधी ही रहा गया है। इससे आगे और पीछे कुछ नहीं। चिंतन शिविर में कांग्रेस के नेता कहां तक तो दुनिया की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को और मजबूत बनाने की कोशिश करते तो वो महज गणेश परिक्रमा में ही लगे हुए हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी राजनीतिक पार्टी की क्या जवाबदेही हो सकती है इसके बारे में सोचने की बजाए कांग्रेस ये सोच रही है कि राहुल गांधी को कैसे राजनीतिक जिम्मेदारी सौंपी जाए।
राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस ने जो चरित्र दिखाया है उससे साफ हो गया है कि कांग्रेस जनता से बेहद दूर महज व्यक्तिगत चिंतन में लगी है। कांग्रेस का यह चरित्र दिखाता है कि वो जनता के बीच किसी नेता को कैसे थोपती है। वही नेता जिसको कई राज्यों में जनता ने सिरे से नकार दिया। न यूपी में चली न गुजरात में चली। इसके बावजूद कांग्रेसी चाहती है कि कांग्रेस को लोग अब राहुल के नाम से जाने।
आम आदमी महंगाई से मर रहा है। कांग्रेस को इस बात से कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस के चिंतन शिविर में इस बात पर चर्चा नहीं हुई। हां, यह जरूर है कि सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार के बारे में अपनी पीड़ा व्यक्त की है। मुझे समझ नहीं आता कि सोनिया जी की इस पीड़ा पर देश कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करे। कांग्रेस का शुक्रिया अदा क्या ऐसे करें कि भाई पहले आपने हमें एक भ्रष्टतंत्र दिया और अब उसपर आप दुख जता रहे हैं। इसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं।
कांग्रेस के चिंतन शिविर में न कोई ताजगी है और न ही आम आदमी के लिए कोई उम्मीद। है तो बस परिवारवाद की पुरानी परिपाटी को कायम रखने की कोशिश और गणेश परिक्रमा का कांग्रेसियों का जज्बा। बढि़या होता कि कांग्रेस अपना नाम बिना किसी चिंता के राहुल कांग्रेस कर लेती। हम भी उम्मीद छोड़ देते।
और हां, अगर आप बोल सकते हों तो बोलिए..........राहुल बाबा की जय
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