यकीनन ये सोच कर दुख होता है लेकिन ये सोचना तो पड़ेगा ही। एक छोटा सा सवाल है कि क्या इस देश की सरहद को सलामत रखने वालों का सिर हमारे लिए अहमियत नहीं रखता ? क्या हमारे जवान का सिर इस लायक भी नहीं कि उसके लिए इंडिया गेट पर नहीं उतर सकते ?
हमारे देश में भ्रष्टाचार है इसमें कोई दो राय नहीं है। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी इससे प्रभावित होती है इसमें भी कोई दो राय नहीं है। हमारा गणतंत्र, भ्रष्टतंत्र में बदल चुका है लिहाजा हमारी नाराजगी जायज है। इस भ्रष्टाचार की ही देन है कि हमें अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव के दर्शन हुए। इस देश में लाखों लोगों ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए देश के अलग अलग हिस्सों में कभी धरना दिया तो कभी प्रदर्शन किया। हमारा हासिल हमें अभी पता नहीं। फिलहाल हम खुश हैं कि हमने आवाज तो उठाई।
दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप हुआ तो देश उबल पड़ा। युवाओं की बड़ी संख्या देश के अलग अलग हिस्सों से इंडिया गेट पर आई और आवाज उठाई। पत्थरों से घिरे लोकतंत्र पर ऐसी चोट लोक की हुई कि पूरा तंत्र हिल गया। देश में एक नई बहस शुरू हो गई।
लेकिन इस सबके बाद ये सवाल भी आ गया कि आखिर ऐसे मुद्दों पर सरकार से जवाब की उम्मीद करने वाली भीड़ आखिर हेमराज और सुधाकर सिंह की शहादत को इतने हल्के में क्यों ले रही है। क्या अब इस देश की जनता ने मान लिया है कि देश की सरहद पर हमारे जवान शहीद होते रहे हैं और होते भी रहेंगे। क्या ऐसी घटनाओं से अब हमें कोई फर्क नहीं पड़ता ? मैं कहीं से नहीं कहता कि दिल्ली में गैंगरेप की घटना और मेंढ़र में जवानों की शहादत में कोई समानता है। लेकिन इतना तो आप सब मानेंगे कि इस देश के लोगों के लिए ये दोनों ही घटनाएं बेहद माएने रखती हैं। क्या हम उस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे जो दर्द हेमराज के परिवारजनों से सहा है। कोई जब सेना में भर्ती होता है उसी वक्त इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाता है कि उसकी कभी अपने फर्ज को निभाते हुए शहादत भी हो सकती है। लेकिन इस बात के लिए कोई तैयार नहीं होता कि शहादत के बाद किसी जवान का सिर कलम करके दुश्मन सेना के सैनिक ले जाएं। क्या गुजरी होगी उस परिवार पर जिसने अपने सपूत का सिरविहीन शव हाथ में लिया होगा। इस दर्द को क्या अभी आपने महसूस किया। मथुरा में हेमराज की पत्नी, मां और परिवार के अन्य लोग अनशन पर बैठ जाते हैं लेकिन इस देश के सिस्टम को बदलने के लिए इंडिया गेट पर प्रदर्शन करने वाली भीड़ की एक फीसदी भीड़ भी मथुरा नहीं पहुंचती। क्या महज इसलिए कि मथुरा दिल्ली नहीं है। क्या मथुरा जाने वाले सभी रास्ते बंद हो गए हैं ? आखिर क्या वजह है कि देश का एक व्यक्ति भी प्रधानमंत्री से इस बात का जवाब नहीं चाहता कि आखिर पड़ोसी मुल्क के साथ वो कौन से सुधरे रिश्ते बना रहे हैं जो हमारे जवानों की जान पर भारी पड़ रही है। कहां सोए हैं अन्ना हजारे ? बाबा रामदेव को क्या ये खबर नहीं मिली ? वोटों का कोई बड़ा फायदा नहीं होने वाला शायद अरविंद केजरीवाल इसीलिए चुप हैं।
मेरी सोच और मेरी अभिव्यक्ति, मैं किसी पर थोप नहीं सकता। लेकिन ये भी सच है कि इसे अभिव्यक्त करने से मुझे कोई रोक भी नहीं सकता। हम भीड़तंत्र के सहारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं। खुश हैं कि भीड़ में हम भी शामिल हैं। लेकिन याद रखिएगा कि जो भीड़ से इतर होते हैं पहचान उन्हीं की होती है। दो जवानों की शहादत इस देश के लगभग सवा अरब लोगों के लिए कोइ माएने नहीं रखती। देशभक्ति का जज्बा अब हमारे भीतर महज रस्मी जज्बा है इस बात में भी कोई दो राय नहीं। कोई एक शख्स भी नहीं पहुंचा दिल्ली ये पूछने कि लिए पीएम साहब आप क्यों चुप हैं ? क्या अभी दो-चार और जवानों का सिर पाकिस्तान के सैनिकों को सौंपना चाहता हैं ? क्या हमारे मुल्क की सेनाएं लाचार हैं या फिर आपने उन्हें लाचार बना दिया है ? जवाब तो देना ही होगा पीएम साहब आज नहीं तो कल। जवाब की ये ख्वाहिश अकेली ही सही लेकिन मजबूत जरूर है।
और हां, भीड़ में शामिल हर उस शख्स के लिए.....................भगत और आजाद कभी इंडिया गेट पर प्रदर्शन नहीं करते। वो असेंबली में धमाके करते हैं। गोरों से आजादी के बाद अब वक्त काले लोगों की गुलामी से मुक्त होने का है। माफ करना हेमराज इस देश के लोग तुम्हारे लिए इंडिया गेट पर नहीं आ सकते।
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