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एक माँ थी !

आज माँ का दिन है ... अफ़सोस है की मैं यह बात आपको शाम का अँधेरा होने के बाद बता रहा हूँ लेकिन इस बात का यकीन भी है की आप की जानकारी मेरे बताये जाने का मोहताज नहीं होगी ... आज एक लड़की का दसवां भी है ... या शायद एक बेटी का भी ? आज एक औरत को पेरोल भी मिली है या शायद एक माँ को अपनी बेटी के दसवें और तेरहवें में शामिल होने की कानूनी अनुमति भी मिली है ? हालाँकि मेरा कुछ भी लिखना इस नज़रिए से देखा जायेगा की मैं निरुपमा को न्याय दिलाने की बात करने वाला हूँ या फिर दकियानूसी विचार धारा का पोषक हूँ .... लेकिन इन दोनों ही तरह की बातों से अलग होकर मैं कुछ लिखने की कोशिश ज़रूर कर रहा हूँ .... पैराग्राफ बदलते ही निरुपमा का नाम आ गया ... मुझे जहाँ तक लगता है की आप सभी निरुपमा से वाकिफ होंगे इसीलिए इस नाम को लिखने से पहले कोई भूमिका नहीं लिखी .... वैसे मैंने निरुपमा को उसकी दुखद मौत के बाद जाना है ... निरुपमा की मौत की खबर सुनते ही मेरे

गंगा के लिए निर्णायक आन्दोलन की ज़रुरत

मैं जब इस पोस्ट को लिख रहा हूँ उसके कुछ ही देर बाद दुनिया की सबसे पुरानी जीवंत नगरी काशी में विश्व की पवित्रम नदियों में से एक 'गंगा' की दुर्दशा पर चिंतन करने के लिए देश के धर्माचार्य, नदी वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और बुद्धजीवी एक साथ बैठेंगे....गंगा के इर्द गिर्द रहने वाली करोड़ों लोगों की आबादी से लेकर सनातन संस्कृति में आस्था रखने वाले भी इस तरह की बैठकों से बड़ी उम्मीदें लगा कर रखते हैं....लेकिन यह उम्मीदें कितनी साकार होती हैं यह तो उन्हें पता ही है.... दरअसल गंगा को लेकर किये जा रहे सरकारी प्रयासों का सच यह है की गंगा का जल अब आचमन योग्य भी नहीं बचा है....यह एक हालिया शोध से स्पष्ट हो चुका है... गंगा के किनारे कई छोटे बड़े शहर बसे हुए हैं जिनके जल मल को माँ का दर्जा रखे वाली गंगा रोज अपने आँचल में रख रही है.... अब तक गंगा को साफ़ करने के लिए केंद्र सरकार एक हज़ार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च कर चुकी है...यह कैग की रिपोर्ट है....गंगा के लिए ही देश की सबसे महंगी कार्ययोजना गंगा एक्शन प्लान(गैप) को हरी झंडी दी गयी थी...गंगा एक्शन प्लान दो चरणों में चला थ

भाषाई आन्दोलन खड़ा करे मीडिया

पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से मीडिया ने अपने पाँव पसारे हैं उससे साथ ही लोगों की मीडिया से उम्मीदें बढ़ी हैं ... अब मीडिया को ख़बरों को दिखाने के साथ कुछ और जिम्मेदारियों को भी उठाना होगा ... पिछले दिनों एक सवाल सामने आया कि क्या मीडिया भाषाई आन्दोलन खड़ा करने का माध्यम बन सकती है ? हालाँकि इस सवाल का जवाब ढूँढने से पहले हमें इस बात पर ज़रूर विमर्श कर लेना चाहिए कि आखिर भाषा है क्या ? क्या भाषा महज अपनी भावनाओ को व्यक्त करने का जरिया मात्र है ? प्रख्यात साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने अपने उपन्यास ' अपना मोर्चा ' में इस बारे में कुछ लाईने लिखी हैं उनका यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा ...' भाषा का अर्थ हिंदी या अंग्रेजी नहीं है ... भाषा का अर्थ है जीने कि पद्यती , जीने का ढंग ..... भाषा यानि जनतान्त्रिक अधिकारों कि भाषा , आज़ादी और सुखी जिंदगी के हक कि भाषा ... ..' यह पंक्तियाँ बताती हैं हैं कि किसी समाज के लिए भाषा का क्या महत्व है ...