जिस काशी को स्वयं भगवान भोले नाथ ने अपने रहने का स्थान बनाया अगर उसी काशी की राजनीतिक आइने में छवि धूमिल की जाए तो दुख होता है। काशी, बनारस, वाराणसी ना सिर्फ एक शहर है बल्कि पूरी एक सभ्यता है। आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण दखल रखने वाली एजेंसियां भी ये मान चुकी हैं कि ये शहर मानव सभ्यता की शुरुआत से अब तक निरंतर बना हुआ है। इतने के बाद भी अगर काशी पर असभ्य होने का कलंक झेलना पड़े तो असहनीय पीड़ा होती है। पिछले कुछ वर्षों में काशी को लेकर भ्रांतियों को प्रचारित करने की मानों मुहिम चलाई जा रही हो। ये साबित करने की कोशिश की जा रही है कि काशी के निवासियों को शहरी जीवन जीने के तौर तरीके नहीं पता। काशी एक पिछड़ा और धारा से कटा हुआ शहर है। विश्व में इसकी छवि अच्छी नहीं है। काशी को लेकर ऐसी भ्रांतियों क्यों फैलाई जा रहीं हैं ये तो ठीक ठीक नहीं बताया जा सकता लेकिन लगता है कि राजनीतिक द्दंद में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए काशी की सनातन सभ्यता का मानमर्दन करने की कुचेष्टा की जा रही है। प्रचारित किया जा रहा है कि काशी में साफ सफाई नहीं रहती है। इससे बढ़कर ये साबित करने का प्रयास है...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर