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बिना प्रोटोकॉल के जलती चिताएं और प्रोटोकॉल निभाने की सीख देता देश का चौकीदार

क्या होता है प्रोटोकॉल, जानते हैं आप? नहीं जानते न? बहुत सी लाशें हैं जो बिना प्रोटोकॉल के ही श्मशान तक पहुंच गईं। यूं तो लाशों की बात लिखनी तो सबसे अंत में चाहिए थी लेकिन नथुनों में भरी इंसानी लाशों की गंध आपको रुकने नहीं देती तो कलम अपने आप सबसे पहले यही पंक्ति लिख देती है। कलम को भी शायद प्रोटोकॉल नहीं आता।  आप जानते हैं लाशें कैसे जलाई जाती हैं? कभी किसी जलती चिता के पास खड़े होकर इंसानी लाश से उठती गंध को जाना है आपने? यही वो अंतिम एहसास होता है जो आपके अपने आपके साथ छोड़ जाते हैं। बिना किसी प्रोटोकॉल के। अच्छा आप इतना तो जानते ही होंगे कि लाशों का भी अपना सम्मान होता है। वही सम्मान जो हम उन्हें अनंत यात्रा पर विदा करने से पहले देते हैं। लेकिन आप ये भी जानते होंगे कि मौजूदा वक्त में वो सम्मान भी हम अपने अपनों को देना चाहते हैं उसमें भी ‘प्रोटोकॉल’ ही आड़े आता है।  अच्छा बताइए, आपका कोई अपना ऑक्सीजन की कमी से तड़प रहा हो, तिल तिल कर मरने की तरफ बढ़ रहा हो तो आप कौन सा प्रोटोकॉल फॉलो करते हैं। या फिर कौन सा प्रोटोकॉल फॉलो करना चाहिए? अपने परिजन को गोद में लिए धीरे धीरे...

काशी के बारे में भ्रांतियों से बचिए

जिस काशी को स्वयं भगवान भोले नाथ ने अपने रहने का स्थान बनाया अगर उसी काशी की राजनीतिक आइने में छवि धूमिल की जाए तो दुख होता है। काशी, बनारस, वाराणसी ना सिर्फ एक शहर है बल्कि पूरी एक सभ्यता है। आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण दखल रखने वाली एजेंसियां भी ये मान चुकी हैं कि ये शहर मानव सभ्यता की शुरुआत से अब तक निरंतर बना हुआ है। इतने के बाद भी अगर काशी पर असभ्य होने का कलंक झेलना पड़े तो असहनीय पीड़ा होती है। पिछले कुछ वर्षों में काशी को लेकर भ्रांतियों को प्रचारित करने की मानों मुहिम चलाई जा रही हो। ये साबित करने की कोशिश की जा रही है कि काशी के निवासियों को शहरी जीवन जीने के तौर तरीके नहीं पता। काशी एक पिछड़ा और धारा से कटा हुआ शहर है। विश्व में इसकी छवि अच्छी नहीं है। काशी को लेकर ऐसी भ्रांतियों क्यों फैलाई जा रहीं हैं ये तो ठीक ठीक नहीं बताया जा सकता लेकिन लगता है कि राजनीतिक द्दंद में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए काशी की सनातन सभ्यता का मानमर्दन करने की कुचेष्टा की जा रही है। प्रचारित किया जा रहा है कि काशी में साफ सफाई नहीं रहती है। इससे बढ़कर ये साबित करने का प्रयास है...

Dantewada’s Tribal Women Will Now Be E-Rickshaw Drivers! Know More

The town of Dantewada in Chhattisgarh takes its name after goddess Danteshwari, who is the presiding deity of the Danteshwari Temple located in the region. With the same name comes a unique public transport system, Danteshwari Sewa, which will employ tribal women as ‘e-rickshaw’ drivers. In one of the worst hit Naxal regions of the country, the initiative is a first, designed by Dantewada district administration to provide employment to tribal women from remote villages in the district. Titled Dantewada Advanced Network of Transport Empowered SHG, the project has roped in close to 200 self-help groups (SHG) and will introduce public transport facility of e-rickshaws in the interior parts of the region and involve women who are members of these groups in the respective areas. According to District Collector Saurabh Kumar and Zilla Panchayat chief executive officer Gaurav Singh, the first phase of the project is all set to be flagged off by chief minister Raman Singh wher...

Chennai to Get its First Special Park For Disabled Children

Kilikili, a Kannada term, translates to the warbling laughter of a child. It is also the name of a registered trust, formed by parents of children with special needs. Driven by volunteers and supported by professionals, its aim is to make play areas accessible to all children, regardless of their disabilities. Taking stock of the lack of such facilities in Chennai, the Greater Chennai Corporation is working with  Kilikili  to create such a public play space near Santhome. The special park will not only be used by children with disabilities, but by all kids, the Times of India  reported . The park is part of Chennai’s Smart City Mission endeavor. The wheelchair-friendly park will cost Rs 1.3 crore to build. Among other play equipment, it will have apparatus that stimulate the sensory development of children. Kilikili managing trustee Kavitha Krishnamoorthy told ToI that the park would also be open to youngsters without special needs as well, to allow all ch...

VARANASI - CITY OF MOKSHA

The land of Varanasi (Kashi) has been the ultimate pilgrimage spot for Hindus for ages. Often referred to as Benares, Varanasi is the oldest living city in the world. These few lines by Mark Twain say it all: "Benaras is older than history, older than tradition, older even than legend and looks twice as old as all of them put together". Hindus believe that one who is graced to die on the land of Varanasi would attain salvation and freedom from the cycle of birth and re-birth. Abode of Lord Shiva and Parvati, the origins of Varanasi are yet unknown. Ganges in Varanasi is believed to have the power to wash away the sins of mortals.    Ganges is said to have its origins in the tresses of Lord Shiva and in Varanasi, it expands to the mighty river that we know of. The city is a center of learning and civilization for over 3000 years. With Sarnath, the place where Buddha preached his first sermon after enlightenment, just 10 km away, Varanasi has been a symbol of Hind...

यहां फुटपाथ वाले बच्चे निकालते हैं अखबार, रिपोर्टर भी खुद और संपादक भी

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के लिए हम जाने-माने कॉलेजों में एडमिशन लेते हैं और महंगी-महंगी फीस देकर डिग्रियां हासिल करते है. तब भी वह मुकाम नहीं पा पाते जो पाना चाहते है. एक चैनल से लेकर एक अखबार छापने के लिए कई जतन करने पड़ते है…पूरा का पूरा ऑफिस खोलने में लाखों रुपये लगाते है, फिर उसमें स्टाफ को हायर करते है जिसमें हर महीने लाखों रुपये खर्च होते है लेकिन दिल्ली के गैतम नगर में रहने वाले बच्चों के कारनामे सुनाोगे तो आपको याकीन नहीं होगा. यहां फुटपाथ वाले बच्‍चे निकालते हैं अखबार, रिपोर्टर और संपादक भी खुद..नाम है बालकनामा बच्‍चे निकालते हैं अखबार कभी-कभी बच्‍चे वो काम कर जाते हैं जिसकी कल्‍पना हम और आप नहीं कर सकते। जहां चाह है वहीं राह है…इसे भलीभांति समझते हैं दिल्‍ली के गौतम नगर में रहने वाले बच्‍चे। इनका न तो घर है न कोई ठिकाना। बस जो कुछ भी है, वो है अंदर की जिज्ञासा। इसी को साथ लेकर बच्‍चों के एक समूह ने दैनिक अखबार निकला दिया। जिसका नाम है ‘बालकनामा’ इसमें काम करने वाले रिपोर्टर से लेकर फोटो जर्नलिस्‍ट या एडिटर तक सब बच्‍चे ही हैं। हिंदी और अंग्रेजी में छपता...

सामने आए निखिल दधीच, ट्वीटर पर हंगामे के बाद अब डरे सहमे हैं फिर भी माफी नहीं मांगेंगे

पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद निखिल दधीच के एक ट्वीट को लेकर जबरदस्त हंगामा मचा था। निखिल दधीच ने एक ट्वीट कर गौरी लंकेश पर अभद्र टिप्पणी की थी। हालांकि अब हंगामे के बाद निखिल दधीच सफाई दे रहें हैं कि उन्होंने गौरी लंकेश को टारगेट कर ये ट्वीट नहीं किया था। निखिल ने आरोप लगाया है कि उनके ट्वीट को जबरदस्ती राजनीतिक रंग दिया गया। ट्वीट पर हंगामे के बाद निखिल दधीच का दावा है कि वो और उनका परिवार बेहद तनाव में है। हालात ये हैं कि वो ऑफिस में होकर भी काम नहीं कर पा रहें हैं। the quint नाम की वेबसाइट के साथ बातचीत में निखिल ने दावा किया है वो नरेंद्र मोदी की विचारधारा से प्रभावित हैं और इसी लिए उन्हें फॉलो करते हैं। हालांकि उन्हें नहीं पता कि पीएम मोदी उन्हें ट्वीटर पर क्यों फॉलो करते हैं। निखिल ने किसी भी तरह की माफी मांगने से साफ इंकार किया है। निखिल ने कहा है कि इस मसले पर उन लोगों को माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने उनके ट्वीट को राजनीतिक रंग दिया है। आप निखिल की पूरी बातचीत सुनने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं। https://youtu.be/7utBaBUOtEA%20

वो शहनाई का जादूगर था, इंसानी जज्बातों का रखवाला भी, वो बिस्मिल्ला था

बिस्मिल्लाह खां को यूं तो पूरी दुनिया जानती है लेकिन जो लोग उनसे मिले थे वो बिस्मिल्ला खां को उनके संगीत के साथ साथ उनके इंसानी जज्बातों के प्रति संवेदनशीलता के लिए भी मानते थे। मेरा सौभाग्य रहा कि जिस शहर में बिस्मिल्ला खां ने शहनाई के सुर साधे उसी शहर में मेरी भी आंख खुली। बिस्मिल्ला खां को करीब से देखा तो महसूस हुआ कि ये दुनिया बिस्मिल्ला खां को जितना जानती है कुछ कम ही जानती है। शहर बनारस की तंग गली में एक छोटे से मकान में रहने वाले बिस्मिल्ला खां अपने घर के ड्राइंग रूम में बांह वाली बनियान या बंडी पहने मिल जाते। कमरे में उनके मिले पुरुस्कारों और सम्मान की तस्वीरे लगी थीं। बिस्मिल्ला खां की शहनाई उनके संगीत के शिखर पर तो ले आई थी लेकिन बतौर इंसान वो बिल्कुल सरल थे। बनारसी अंदाज और ठसक हर ओर से झलकती। बातों में मुलायमियत थी ही। रह रह कर ठहाके लगाकर हंसते फिर प प प प करते शहनाई की धुन गुनगुना देते। बनारस और गंगा के प्रति उनका लगाव गजब का था। एक बार उन्हें अमेरिका में रहने का निमंत्रण दिया गया। बिस्मिल्ला खां ने निमंत्रण देने वाले से पूछा कि सब तो ठीक है लेकिन अमेरिका मे...

गौरी लंकेश ने मरने से पहले लिखा था ये लेख, ये उनके आखिरी शब्द हैं

गौरी लंकेश नाम है पत्रिका का। 16 पन्नों की यह पत्रिका हर हफ्ते निकलती है। 15 रुपये कीमत होती है। 13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आख़िरी साबित हुआ। हमने अपने मित्र की मदद से उनके आख़िरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि आपको पता चल सके कि कन्नडा में लिखने वाली इस पत्रकार की लिखावट कैसी थी, उसकी धार कैसी थी। हर अंक में गौरी ‘कंडा हागे’ नाम से कालम लिखती थीं। कंडा हागे का मतलब होता है जैसा मैने देखा। उनका संपादकीय पत्रिका के तीसरे पन्ने पर छपता था। इस बार का संपादकीय फेक न्यूज़ पर था और उसका टाइटल था- फेक न्यूज़ के ज़माने में- इस हफ्ते के इश्यू में मेरे दोस्त डॉ वासु ने गोएबल्स की तरह इंडिया में फेक न्यूज़ बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है। झूठ की ऐसी फैक्ट्रियां ज़्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं। झूठ की फैक्ट्री से जो नुकसान हो रहा है मैं उसके बारे में अपने संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी। अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी। उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया। फैलाने वाले संघ के लोग थे। ये झूठ क्या है? झूठ ये है कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी वहीं गणेश जी की प्रतिम...

गौरी लंकेश को मार दिया गया, फिर बोधिसत्व की ये कविता क्या कह गई

गौरी लंकेश की हत्या के बाद बोधिसत्व की एक कविता  अपना   शुभ   लाभ   देख   कर   मैं   चुप   हूँ   गौरी   लंकेश एक   एक   कर   मारे   जा   रहे   हैं   लोग और   मैं   चुप   हूँ मैं   चुप   हूँ इसीलिए   किसी   भी खतरे   में   नहीं   मैं   गौरी   लंकेश  ? मैं   देख   नहीं   रहा   उधर लोग   मारे   जा   रहे   हैं   जिधर जिधर   जहाँ   आग   लगी   है जिधर   संताप   का   सुराज   है वह   दिशा   ओझल   है   मुझसे   । सुनों   गौरी   लंंकेश   । मैं   बोलूँगा   तो पद्मश्री   नहीं   मिलेगा   मुझे मैं   बोलूँगा   तो पुरस्कार   नहीं   मिलेगा   मुझे मैं   बोलूँगा   तो भारत   रत्न   नहीं   बन   पाऊँगा   । ...