भारतीय समाज में बुद्धजीवी का दर्जा पा चुकी अरुंधती रॉय ने कहा है कि कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न हिस्सा रहा ही नहीं है. गिलानी दिल्ली में सेमिनार में कह रहें है कि उन्हें आज़ादी से कम कुछ भी नहीं चाहिए. गिलानी अगर ऐसी बात कहें तो कोई हैरानी नहीं होती लेकिन अरुंधती ऐसा कहें तो आश्चर्य होता है. हालांकि इसके पहले भी अरुंधती रॉय एक ऐसा ही बयान दे चुकी हैं. तब उन्होंने मावोवाद का समर्थन किया था. कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा ना मानने सम्बन्धी बयान वहां पर अपनी जान कि बाज़ी लगा रहे जवानों के लिए एक तमाचा है. साथ ही शेष देश के लोगों के लिए क्षोभ और शर्मिंदगी की वजह है. चौंदहवी सदी में कश्मीर में इस्लाम के प्रवेश के बाद से लेकर आज तक कश्मीर हमेशा ही अपनी शांति के लिए जलता रहा है. सन १८४६ में कश्मीर में सिखों और अंग्रेजो के बीच संघर्ष हुआ. मुद्दा कश्मीर पर अंग्रेजों के अधिकार से जुड़ा था. बाद में अंग्रेजों ने ७५ लाख रुपये में राजा गुलाब सिंह को कश्मीर दे दिया. समय बीतता गया और सन १९२५ में गुलाब सिंह की ही पीढ़ी हरी सिंह को राजा बनाया गया. इसी समय एक बार फिर से घाटी में मुस्लिम सियासत शुरू
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर