हमारे देश में कहा जाता है कि राष्ट्रीय खेल हाकी है...लेकिन ऐसा लगता नहीं है.....उम्र के इस पड़ाव पर हूँ कि अपने देश में किसी खेल को लेकर कोई प्रतिक्रिया दे सकूं...... मेरा यकीन करिए हाकी को हम सब जिस जगह लेकर आयें हैं वो वहीँ है....वहां से कहीं नहीं गयी....हम का मतलब है हम...सरकार नहीं...सरकार और हाकी इंडिया को दोष शायद हमलोगों को नहीं देना चाहिए....मुझे याद आता है कि जिंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं किया करती....लेकिन हमने तो हाकी को दशकों इंतज़ार करा दिया.....आखिर बेचारी हाकी यहाँ आ गयी तो इसमें दोष किसका.....अब आप ही सोचिये कि हममे में से कितने लोग अपने घर के बच्चों को हाकी कि स्टिक पकड़ने देते हैं.....हाँ बचपन में बैट और गेंद का गिफ्ट अपने घर के बच्चों को ज़रूर देते हैं...कुछ लोग तो यूं ही दे देते हैं कुछ यह सोच कर कि बड़ा होकर कहीं क्रिकेटर बन गया तो घर में पैसे ही पैसे होंगे......अब ऐसे में गरीब देश का अमीर खेल क्रिकेट आगे जायेगा कि हाकी.....हाकी इंडिया ने जब देश के खिलाडियों को खेलने के लिए पैसा ना देने कि बात कही तो साथ ही यह भी बोला कि खेलना है तो देश हित में खेलें...मैं थोड़ा बढा कर बोलूं तो कहा कि खेलना है तो देश हित में खेलो वरना जायो चूल्हे भांड में.....कभी सब्जी कि दूकान पर जाईये...वोह भी ऐसी जो खूब चलती हो...महंगी वहां जायेंगे तो सब्जी वाला आपको झोला लेकर आते हुए देखेगा ......जब किसी सब्जी के दाम को लेकर आप मोल भाव करेंगे तो थोड़ी देर बाद तुनक कर बोलेगा की लेना है तो लो नहीं तो जायो...हुज़ूर इस देश में खेलों की यही स्थिति है...खेला है तो खेलो नहीं तो जायो....लेकिन इन्हें इस बात का कुछ डर भी होता है की अगर खिलाडी होंगे ही नहीं तो इनकी रोजी रोटी कैसी चलेगी......दलाली भी तो करनी है.....वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं पद्म पति शर्मा जी...उन्होंने अपने ब्लॉग पर जो हॉकी के बारे में
लिखा तो शीर्षक दिया की उठो परगट उठो....यह सोच तो इस देश के हर खिलाडी में होनी चाहिए.......चाहें किसी खेल से जुड़ा हो....ओलंपिक में एक मेडल मिला था शूटिंग में...अभिनव बिंद्रा ने दिलाया था.....बेचारे इस बार वर्ल्ड कप में नहीं जा पाएंगे....हमारे बनारस में एक लड़का है सतीश..बहुत अच्छा निशानेबाज है..मैंने उसकी स्टोरी की थी...यू पी सरकार के पास इस लड़के को शूटिंग किट दिलाने भर का पैसा नहीं...वैसे यह लड़का स्टेट लेवल में गोल्ड जीत चुका है....बनरस में ही एक धाविका है रानी यादव...उससे दूसरी पी टी उषा कहा जाता है...बेचारी के घर में मेडल्स की भरमार है.....लेकिन प्रैक्टिस के लिए अच्छे जूते नहीं है....इनके लिए यही कहना है न खेलना है तो खेलो नहीं तो...हाँ जब अपने दम पर कुछ बड़ा कर लिया तो देश हित में हमारे साथ फोटो खिंचवा लेना...
लिखा तो शीर्षक दिया की उठो परगट उठो....यह सोच तो इस देश के हर खिलाडी में होनी चाहिए.......चाहें किसी खेल से जुड़ा हो....ओलंपिक में एक मेडल मिला था शूटिंग में...अभिनव बिंद्रा ने दिलाया था.....बेचारे इस बार वर्ल्ड कप में नहीं जा पाएंगे....हमारे बनारस में एक लड़का है सतीश..बहुत अच्छा निशानेबाज है..मैंने उसकी स्टोरी की थी...यू पी सरकार के पास इस लड़के को शूटिंग किट दिलाने भर का पैसा नहीं...वैसे यह लड़का स्टेट लेवल में गोल्ड जीत चुका है....बनरस में ही एक धाविका है रानी यादव...उससे दूसरी पी टी उषा कहा जाता है...बेचारी के घर में मेडल्स की भरमार है.....लेकिन प्रैक्टिस के लिए अच्छे जूते नहीं है....इनके लिए यही कहना है न खेलना है तो खेलो नहीं तो...हाँ जब अपने दम पर कुछ बड़ा कर लिया तो देश हित में हमारे साथ फोटो खिंचवा लेना...
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