सुना है समय हर जख्म भर देता है
तुम्हे भी तो एक जख्म मिला था
तुम सिसक के रोई थी
आँखों में कुछ बूँदें ठहर कर
पलकों से नीचें ढलक गयीं थी
बेसुध सी तुम
वक़्त का ख्याल भी नहीं रख पाई थी
तुम्हारे दोनों हाथ खाली थे
सिवाय हवा के उनमे कुछ कैद नहीं रह पाया था
हर रिश्ता तो दूर ही था
लोग कहते रहे
वक़्त हर जख्म भर देगा
पर
क्या भर गया हर जख्म ?
नहीं ना
शायद समय भी पुरुष है ।
तुम्हे भी तो एक जख्म मिला था
तुम सिसक के रोई थी
आँखों में कुछ बूँदें ठहर कर
पलकों से नीचें ढलक गयीं थी
बेसुध सी तुम
वक़्त का ख्याल भी नहीं रख पाई थी
तुम्हारे दोनों हाथ खाली थे
सिवाय हवा के उनमे कुछ कैद नहीं रह पाया था
हर रिश्ता तो दूर ही था
लोग कहते रहे
वक़्त हर जख्म भर देगा
पर
क्या भर गया हर जख्म ?
नहीं ना
शायद समय भी पुरुष है ।
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