अतीत के पन्ने
साँझ ढलते ही
तेज़ी से बंद कर लेते हो तुम
अपने मन के कमरे के दरवाज़े
फिर पलटते हो पन्ने
सुनहरी यादों के
और मैं ...........
तुम्हारी सांसों संग बन समीर
खिंच आती हूँ भीतर तक
देखती हूँ कमरा ..........
फैले हैं ढेरों पन्ने
आत्मीयता के बिस्तरे पर
और ..........
करीब ही रक्खी है
उम्मीद की मद्धिम लालटेन भी
जिसकी हलकी रौशनी काफी है .............
संजोने को हर सामान !
(यह कविता एक मित्र के द्वारा लिखी गयी है )
मेरे जेहन में उतरने दो
मेरे कमरे में हर ओर
एहसास है तुम्हारी मौजूदगी का
कुर्सियों पर तुम्हारी याद
ठहरी है
मेरे ह्रदय के स्पंदनो से
इनकी मित्रता गहरी है
आलमारी पर रखी किताबें
यकीनन बेतरतीब हो चली हैं
पर इनमे पड़े कुछ पुराने कागजों में
तुम्हारे हस्ताक्षर आज भी करीने से रखे हैं
कमरे कि दीवार पर टंगे आईने में
तुम्हारा अक्श मुस्कुरा का उभर आता है
नेपथ्य में प्रसन्नता के वही
भाव फिर संवर जाता हैं
क्लिप बोर्ड पर लगे कोरे कागज
और उनपर रखी कलम
तुम्हारी उपस्थिति का उत्सव मना रहें हैं
नीली स्याही से कई रंग भरी भावनाओं का
वर्णन लिखे जा रहें हैं
शायद खुली खिड़की अब
बंद करने कि ज़रुरत नहीं
तुम्हारे एहसास से भीगी इस हवा को
इस खुशबु को कैद करने कि
ज़रुरत नहीं
इसे बिखरने दो
जेहन में गहरे उतरने दो.....
(आशीष तिवारी )
dono hi rachnaon ne man moh liya...apka slideshow bhi bahut badhiya...
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