आखिर किस आधार पर बात हो माओवादियों से? क्या बसों पर हमले और ट्रेन्स पर हमले को लेकर बातचीत होगी ? पिछले दिनों जब प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे उस समय कहीं से भी नहीं लगा था कि केंद्र सरकार आतंरिक सुरक्षा के मामले में कोई बड़ा कदम उठाने जा रही है... पश्चिमी मिदनापुर के जिस इलाके में यह हादसा हुआ है उस ट्रैक को पिछले छह महीने के भीतर माओवादियों ने कई बार निशाना बनाया....कभी देश के इतिहास में पहली बार किसी ट्रेन का अपहरण किया तो कभी चलती ट्रेन पर गोलियां बरसाईं...और अब यह करतूत...क्या सरकार को इस बात को मान चुकी है कि बातचीत होती रहे खून खराबा तो चलता ही रहेगा...आखिर कौन सी बातचीत हो रही है....? क्या किया जा रहा है?....नक्सल और माओवाद जैसी समस्या से निबटने में सरकार का कोई भी कदम क्यों नहीं निर्णायक साबित हो रहा है.....पश्चिमी मिदनापुर में हुआ रेल हादसा साफ़ बता रहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार पूरी तरह से देश में खतरे का घंटा बजा रहे इन वैचारिक आतंकवादियों के आगे घुटने टेक चुकी है...और अब तो खुली छूट है नागरिकों का खून बहाने की ...विचारों की लड़ाई में अब बम धमाके होते हैं ....निरीह लोगों की जाने ली जाती हैं.....सरकार को पता था कि माओवादियों ने इस सफ्ताह को 'काला सफ्ताह' घोषित कर रखा है...लेकिन उसके बावजूद सरकार ट्रेन को निशाना बनने से नहीं रोक पायी...क्या कहेंगे आप इसे? क्या यह सरकार की नाकामी नहीं है? बयां दिए जा रहें है मुआवजा घोषित हो रहा है...रेलवे में नौकरी भी मिल जाएगी.....लेकिन जो लोग मारे गए उनके जाने से रिश्तों में आये खालीपन को भीख में मिली नौकरी भर देगी क्या?
रोजाना हमारे सुरक्षा बलों की कुर्बानी ली जाये...देश के नागरिक अपने ही देश में कहीं भी निशाना बनाये जा सकते हैं....लेकिन सरकार को इस बात की कोई परवाह नहीं है.....एक नागरिक की मौत हो या एक सौ नागरिकों की सरकार तो बातचीत में यकीन करती है ना...वोह तो बस बातचीत करती है... शर्म आती है ऐसी सरकार पर जो अपने ही देश में नागरिकों को सुरक्षित नहीं रख सकती.....नपुंसक राजनीती के गर्भ से कभी किसी देश को विकास रुपी संताने नहीं दी जा सकती......हे इस देश के शांति प्रिय नागरिकों अब तो चेतो...मुर्दे की मानिंद खामोश रहने से अब कुछ नहीं होगा...अगर हम जिंदा कौम के नागरिक हैं तो इंतज़ार क्यों?
रोजाना हमारे सुरक्षा बलों की कुर्बानी ली जाये...देश के नागरिक अपने ही देश में कहीं भी निशाना बनाये जा सकते हैं....लेकिन सरकार को इस बात की कोई परवाह नहीं है.....एक नागरिक की मौत हो या एक सौ नागरिकों की सरकार तो बातचीत में यकीन करती है ना...वोह तो बस बातचीत करती है... शर्म आती है ऐसी सरकार पर जो अपने ही देश में नागरिकों को सुरक्षित नहीं रख सकती.....नपुंसक राजनीती के गर्भ से कभी किसी देश को विकास रुपी संताने नहीं दी जा सकती......हे इस देश के शांति प्रिय नागरिकों अब तो चेतो...मुर्दे की मानिंद खामोश रहने से अब कुछ नहीं होगा...अगर हम जिंदा कौम के नागरिक हैं तो इंतज़ार क्यों?
अगर हम जिंदा कौम के नागरिक हैं तो इंतज़ार क्यों?
जवाब देंहटाएंYahi prashn pareshaan karta hai..
xcelant thinkin really diffrent thought..........
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